हम आजादी की खुली हवा में सांस ले सकें इसके लिए चंद्रशेखर आजाद सरीखे न जाने कितने देशभक्तों ने अपने जान न्योछावर कर दिये लेकिन हमारी बेशर्मी देखिये कि उनकी हमें कद्र नहीं है। कहीं किसी शहीद की मूर्ति गंदगी के अंबार के बीच खड़ी है तो कहीं उनके नाम का शिलापट्ट गंदे नाले में डूबा हुआ है। जी हां, कोई कहानी नहीं इसमें सौ फीसदी सच्चाई है। दुर्गाकुंड इलाके के नवाबगंज की ओर जाने वाले रास्ते पर अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद मार्ग के नाम का शिलापट्ट नाली में पड़ा हुआ है जो व्यवस्था की बेशर्मी को बयां करने के लिए काफी है।

हजारों लोगों का है आना जाना

खास बात यह कि इस रोड से डेली हजारों लोगों का आना जाना होता है। तकरीबन सभी अपनी आंखों से आजादी के इस महानायक के नाम को खराब होते देख रहे हैैं लेकिन किसी ने भी उसे नाली से निकालने की कोशिश नहीं की। नाले के पास ही एक मल्टीस्टोरी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स भी है लेकिन वहां की व्यवस्था देख रहे लोगों को भी यह शिलापट्ट दिखायी नहीं देता। पूछने पर लोकल लोगों ने बताया कि पिछले कई दिनों से वह इस शिलापट्ट को नाली में पड़ा देख रहे हैं लेकिन हम क्या कर सकते हैं। जब जिम्मेदार लोगों को ही इसका ध्यान नहीं है तो हमारी क्या बिसात? चंद्रशेखर आजाद मार्ग लिखा यह शिलापट्ट कब लगाया गया था यह भी कोई नहीं बता सका।

संवेदनहीन है सिस्टम

ऐसा नहीं कि चंद्रशेखर आजाद के नाम के शिलापट्ट के प्रति ही संवेदनहीनता दिखायी जा रही है। शहर में लगे दूसरे महान पुरुषों की मूर्तियों और उनके नाम के शिलापट्ट के साथ भी प्रशासनिक संवेदनहीनता उजागर हो रही है। इसका एक बड़ा एग्जाम्पल  बेनियाबाग के मैदान में बने गांधी चौरा पर देखा जा सकता है। यहां बापू की अस्थियां अंतिम दर्शन को रखी गयी थीं। लेकिन यहां चारों तरफ गंदगी है। लोग इस पवित्र स्थान को चप्पलों से रौंदते हैैं। लेकिन प्रशासन को इतनी समझ नहीं कि इस स्थल के चारों ओर एक दीवार बनाकर संरक्षित किया जाए। इस तरह की शहर में और भी मूर्तियां और स्मारक हैं जो बेशर्म व्यवस्था की शिकार हैं।  

जगाने के बाद भी नहीं खुली आंख

एक जिम्मेदार बुजुर्ग शहरी की सूचना पर आई नेक्स्ट ने 25 नवम्बर 2013 को पेज नम्बर चार पर चंद्रशेखर आजाद के नाम वाले इस शिलापट्ट की तस्वीर छापी थी। उम्मीद थी कि इसे देखने के बाद शायद निगम के अफसर, कर्मचारी या आस-पास के गैरत वाले लोग कुछ करें। मगर 25 नवम्बर से लेकर 9 दिसम्बर तक के बीच किसी ने भी इस मामले में कुछ करना तो दूर सोचा तक नहीं। मेयर हो या स्थानीय विधायक, या फिर क्षेत्रीय सभासद, किसी ने भी कुछ नहीं किया।  

पार्षद की माने तो खिसकता है ये पत्थर!

शिलापट्ट के बारे में स्थानीय पार्षद अनिल कुमार शर्मा से बातचीत में एक नयी बात पता चली। पहले तो उन्होंने शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में लगे ट्रांसफार्मर को शिलापट्ट की बदहाली का जिम्मेदार बताया। फिर ये भी कहा कि उन्होंने बहुत पहले ही इस शिलापट्ट को नाली में पड़ा देखा था और उसे नाली में से हटाकर किनारे भी रखा था। लेकिन शिलापट्ट अपने आप सरकता है और नाली में फिर से चला जाता है। सवाल ये है कि क्या इस पत्थर के टुकड़े में पैर लगे हैं? भूकम्प भी तो नहीं आया तो ये सरक जाए। पार्षद की बात में कितनी सच्चाई है अंदाजा लगा सकते हैं आप।

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चंद्रशेखर आजाद के नाम के साथ इस तरह का बर्ताव निंदनीय है। मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी। आपने मुझे बताया है इसलिए में इस बाबत कंसर्निंग डिपार्टमेंट के ऑफिसर्स से बात करुंगा। चंद्रशेखर आजाद जैसा महान व्यक्त्वि किसी भी विधायक किसी भी पार्षद या किसी भी सांसद की सीमा से परे है।

श्यामदेव राय चौधरी, स्थानीय विधायक

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बहुत दिनों से यह शिलापट्ट नाली में गिरा है। लेकिन किसी ने इसे उठाया ही नहीं। हम क्या कर सकते हैं।

राजू चौरसिया, शॉपकीपर

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आपने बताया है तब मेरी नजर पड़ी है। यह बहुत गलत है। संवेदनहीन होते जा रहे हैं हम।

अभय कुमार द्विवेदी, स्टूडेंट

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हां मैंने नाली में पड़ा यह शिलापट्ट देखा है। सोचा कि इसे उठाकर किनारे भी रख दूं। लेकिन अकेला यह मुझसे उठेगा नहीं।

विकास चौबे, स्टूडेंट