छात्रसंघ भवन पर सजी चौपाल, युवाओं ने रखी अपनी बात

छात्रों के लिए बेरोजगारी का मुद्दा सबसे बड़ा, सरकार बनाए कानून

vikash.gupta@inext.co.in

ALLAHABAD: इलेक्शन कमीशन ने उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में चुनाव की घोषणा कर दी है। ऐसे में नेता और दल तो पूरी तरह से चुनावी मैदान में आ चुके हैं। जनता जनार्दन भी चुनावी महासमर में गोते लगाना शुरु कर चुकी है। गली गली और चौराहे चौराहे चुनावी पंचौरे की शुरुआत हो चुकी है। जिसमें कोई दल तो कोई नेता के जीत हार का दावा कर रहा है। इसमें लोगों के अपने अपने मुद्दे हैं तो युवा भी कामकाज का हिसाब किताब लेने के लिये ताल ठोंक रहे हैं।

रौं में आये तो निकलते रहे मुद्दे

ऐसी ही एक चुनावी चौपाल इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ भवन पर जमी नजर आई। वैसे तो छात्रसंघ भवन पर अमूमन किसी न किसी इश्यू पर डिस्कशन होता ही रहता है। लेकिन यह चौपाल पूरी तरह से आगामी विधानसभा चुनाव पर बेस रही। इसमें चर्चा का विषय आम युवा छात्रों के हित से जुड़े मुद्दे रहे। चर्चा के दौरान छात्र रौं में आये तो फिर एक के बाद एक मुद्दे निकलते ही चले गये। बातचीत की शुरुआत बेरोजगारी से हुई। इसमें शामिल अरविंद सरोज का कहना था कि सरकारें आती हैं जाती हैं। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। चर्चा के केन्द्र में सबसे पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग लपेटे में आया।

परीक्षा के लिये आन्दोलन तो रिजल्ट के लिये भी पापड़ बेलो

अरविन्द ने कहा मुट्ठीभर वैकेंसी निकालेंगे और उसमें भी तमाम तरीके की लफड़ेबाजी। कभी परीक्षा करवाने के लिये आन्दोलन करो तो कभी रिजल्ट निकलवाने के लिये पापड़ बेलो। कहा कि पढ़े लिखों की भीड़ बढ़ती जा रही है। लेकिन कोई भी सरकार आये उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। इस पर धीरज यादव ने कहा कि हम ही तो असली वोटर हैं। लेकिन किसी का भी चुनावी मेनिफेस्टो उठाकर देख लो। सबका एक ही हाल है। शिक्षा को बेहतर कैसे बनायें और बेरोजगारी दूर करने के लिये क्या करेंगे? यह किसी के घोषणा पत्र में प्रमुखता से नहीं है। इस पर एक ने कहा कि नहीं सभी दल शिक्षा और रोजगार को मुद्दा बना रहे हैं। इस पर धीरज ने कहा ऐसे कैसे बना रहे हैं। हर चीज के लिये तो ढिंढोरा पीटेंगे। लेकिन यह बात इतने दबे स्वर में बोली जाती है कि आम छात्रों को सुनाई ही न दे। ये क्या बात हुई?

हम तो पढ़ पढ़कर मरे जा रहे

धीरज का गुस्सा यहीं पर नहीं थमा बोले माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, अधिनस्थ शिक्षा सेवा चयन आयोग लखनऊ सबका एक जैसा हाल है। दरोगा भर्ती से लेकर सिपाही भर्ती तक करप्शन में डूबी है। मेधावी पढ़ पढ़कर मरे जा रहे हैं और अफसर पैसे ले लेकर नहीं थक रहे। बात घूमी तो उदय प्रकाश ने रुम रेंट की बात उठा दी। कहा, कब से चिल्लाया जा रहा है कि रुम रेंट एक्ट बनना चाहिये। मैं खुद 62 लोगों के साथ जेल गया। लेकिन हुआ कुछ नहीं। अब छात्र पढ़ाई के लिये फीस का जुगाड़ करे कि कमरे का किराया चुकता करने के लिये परेशान रहे।

बताओ तो किस अफसर का बच्चा जा रहा सरकारी स्कूल

पढ़ाई और बेरोजगारी के टॉपिक पर चल रहा डिस्कशन आगे बढ़ा तो बात इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश की तरफ मूव कर गई। जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सरकारी अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ेंगे। यह मसला उठाने वाले अंजनी कुमार मिश्रा पूरे तैश में दिखे। उनका कहना था कि भला बताओ तो कौन से अफसर का बच्चा आज सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है। बोले कि कोर्ट ने तो फैसला सुना दिया। लेकिन यह सरकार और अफसरों की जिम्मेदारी थी कि वह इसका इम्पलीमेंटेशन करवाते। लेकिन हुआ कुछ नहीं। वहीं प्रदीप ने कहा कि बताओ शहर में छात्र आ तो जाते हैं। लेकिन उनके रहने के लिये हास्टल ही नहीं है जो हैं भी वहां भी सोर्स और जुगाड़ ही चल रहा है।

पहले खुद तो होईये एकजुट

इस बीच बात फिर से घूमकर बेरोजगारी पर चली गई। इसपर दिनेश ने कहा कि कई फार्म ऐसे हैं। जिनकी फीस ही इतनी है कि गरीब छात्र फार्म ही नहीं डाल सकता। इनका जोर रोजगार का अधिकार कानून बनाने पर रहा। चर्चा में शामिल सौरभ पटेल ने अपनी बात रखते हुये कहा कि देश में युवाओं की आबादी का डंका पूरे देश में पीटा जा रहा है। लेकिन भाईयों दिक्कत ये है कि जब वोट देने की बात आती है तो हम भी जात पात, प्रत्याशी और दल देखना शुरु कर देते हैं। इसपर पवन कुमार गुप्ता ने सौरभ के समर्थन में कहा कि हां, बात बिल्कुल सही है। जब तक यूथ एकजुट होकर छात्र हित से जुड़े मसलों पर वोट देने की नहीं ठानेगा कुछ होगा नहीं और यहीं से चर्चा समाप्त हो गई।

सामने आए मुद्दे

नियुक्तियों में ट्रांसपेरेंसी क्यों नहीं

छात्रों की समस्याएं नजरअंदाज क्यों

रोजगार अधिकार कानून बनाया जाय

क्यों नहीं अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूलों में