पी में मुकदमों की पेंडेंसी में कानपुर कोर्ट नम्बर वन है। इसकी प्रमुख वजह चेक बाउन्स के बढ़ते मामले भी हैं। कानपुर की हर कोर्ट में दो से तीन हजार मामले सिर्फ चेक बाउन्स के चल रहे है। कई केस में तो आरोपियों की गैरहाजिरी से तारीख पर तारीख लग रही है, जबकि चेक बाउन्स के केस मेें छह महीने में निर्णय देने का नियम है। वहीं, थानों में भी चेक बाउन्स की एफआईआर से उनका ग्राफ बढ़ रहा है। हालात को देखते हुए हाईकोर्ट ने जल्द से जल्द मुकदमों का निस्तारण करने के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए हैं.
पेशी पर तो जाना पड़ेगा
कोर्ट में चेक बाउंस के केस में आरोपी को पेशी के लिए समन भेजा जाता है। ज्यादातर केस में आरोपी समन रिसीव नहीं करते है। जिससे वे पेशी से बच जाते हैं और मुकदमे में तारीख पर तारीख लगती रहती है। सीनियर एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा के मुताबिक, आरोपियों के इस दांवपेंच का हल निकाल लिया गया गया है। अब हाईकोर्ट ने कोरियर और ईमेल से समन भेजने का निर्देेश दिया है। जिससे आरोपी को समय पर समन रिसीव हो जाता है.
फाइनेंस कंपनी कराती हैं मामला दर्ज
फाइनेंस कम्पनी कस्टमर से लोन का पैसा वसूलने के लिए चेक बाउंस का केस दर्ज कराती है। इसमें वे कस्टमर के खिलाफ कई जिलों में मुकदमा दर्ज करा देती है। तिलक नगर के रवींद्र जडेजा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उन्होंने बाइक फाइनेंस कराई थी। वे आखिरी की दो किश्तें टाइम पर अदा नहीं कर पाए, तो फाइनेंस कम्पनी ने उनके खिलाफ चेक बाउंस का केस दर्ज करा दिया। वे कानपुर कोर्ट में तारीख पर गए, तभी उनको दिल्ली कोर्ट से भी पेशी से लिए समन भेज दिया गया। उनके खिलाफ कानपुर और दिल्ली दोनों शहर में मुकदमा दर्ज है। इस तरह फाइनेंस कम्पनी दबाव बनाने के लिए एक आदमी के खिलाफ कई जिलों में केस दर्ज करा देती है. 
18 साल से सिर्फ तारीख मिल रही
बिरहाना रोड में रहने वाले विजय सिंह ने इलाहाबाद बैंक से दस लाख का लोन लिया था, लेकिन वे समय पर किश्त नहीं जमा कर पाए। उनके खिलाफ बैंक ने 1995 में चेेक बाउंस का केस दर्ज कराया था। आरोपी के घर बदल देने से उसको समन रिसीव नहीं हो पाया। जिससे मुकदमे में सालों से तारीख पर तारीख लग रही है. 
यह तो सिर्फ बानगी है। इसी तरह से सैकड़ों मुकदमों में तारीख पर तारीख लग रही है। कई आरोपियों के घर की कुर्की भी हो गई है, लेकिन वे कोर्ट में हाजिर नहीं हुए। जिससे मुकदमे का निस्तारण नहीं हो पा रहा है. 
छह महीने में निस्तारण करने का है नियम
एडवोकेट टीनू शुक्ला के मुताबिक चेक बाउंस यानि एनआई एक्ट के मुकदमों को छह महीने में निस्तारित करने का नियम है, लेकिन यह व्यवहारिक तौर पर अमल नहीं हो पाता। आरोपी कानूनी दांवपेंच के सहारे पेशी पर गैरहाजिर हो जाते है। जिससे मुकदमे में अगली डेट लग जाती है. 
थानों में बढ़ रहा है एफआईआर का ग्राफ
चेक बाउंस के केस में आरोपी को नोटिस देने के बाद केस दर्ज हो जाता है। इसमें कोर्ट के जरिए आसानी से एफआईआर दर्ज हो जाती है। जिससे थानों में एफआईआर का ग्राफ भी बढ़ रहा है। एक थानाध्यक्ष के मुताबिक फाइनेंस कम्पनी के अलावा सूदखोर भी चेक बाउंस के केस दर्ज कराते हैं। वे चेक लेकर ब्याज में रुपए बांट देते हैं। बाद में रुपए न मिलने पर दबाव बनाने के लिए चेक बाउंस की एफआईआर दर्ज करा देते हैं. 
वर्जन
सिटी की हर कोर्ट में चेक बाउंस के करीब ढाई हजार केस दर्ज हैं। आरोपी तरह-तरह के कानूनी दांवपेंच चलकर पेशी से गैरहाजिर हो जाते हैं। जिससे मुकदमों की पेंडेंसी बढ़ रही है. 
विनय अवस्थी, पूर्व संयुक्त मंत्री, बार एसोसिएशन
यूपी में मुकदमों की पेंडेंसी में कानपुर कोर्ट नम्बर वन है। इसकी प्रमुख वजह चेक बाउन्स के बढ़ते मामले भी हैं। कानपुर की हर कोर्ट में दो से तीन हजार मामले सिर्फ चेक बाउन्स के चल रहे है। कई केस में तो आरोपियों की गैरहाजिरी से तारीख पर तारीख लग रही है, जबकि चेक बाउन्स के केस मेें छह महीने में निर्णय देने का नियम है। वहीं, थानों में भी चेक बाउन्स की एफआईआर से उनका ग्राफ बढ़ रहा है। हालात को देखते हुए हाईकोर्ट ने जल्द से जल्द मुकदमों का निस्तारण करने के लिए कई दिशा निर्देश जारी किए हैं.

पेशी पर तो जाना पड़ेगा

कोर्ट में चेक बाउंस के केस में आरोपी को पेशी के लिए समन भेजा जाता है। ज्यादातर केस में आरोपी समन रिसीव नहीं करते है। जिससे वे पेशी से बच जाते हैं और मुकदमे में तारीख पर तारीख लगती रहती है। सीनियर एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा के मुताबिक, आरोपियों के इस दांवपेंच का हल निकाल लिया गया गया है। अब हाईकोर्ट ने कोरियर और ईमेल से समन भेजने का निर्देेश दिया है। जिससे आरोपी को समय पर समन रिसीव हो जाता है।

फाइनेंस कंपनी कराती हैं मामला दर्ज

फाइनेंस कम्पनी कस्टमर से लोन का पैसा वसूलने के लिए चेक बाउंस का केस दर्ज कराती है। इसमें वे कस्टमर के खिलाफ कई जिलों में मुकदमा दर्ज करा देती है। तिलक नगर के रवींद्र जडेजा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उन्होंने बाइक फाइनेंस कराई थी। वे आखिरी की दो किश्तें टाइम पर अदा नहीं कर पाए, तो फाइनेंस कम्पनी ने उनके खिलाफ चेक बाउंस का केस दर्ज करा दिया। वे कानपुर कोर्ट में तारीख पर गए, तभी उनको दिल्ली कोर्ट से भी पेशी से लिए समन भेज दिया गया। उनके खिलाफ कानपुर और दिल्ली दोनों शहर में मुकदमा दर्ज है। इस तरह फाइनेंस कम्पनी दबाव बनाने के लिए एक आदमी के खिलाफ कई जिलों में केस दर्ज करा देती है. 

18 साल से सिर्फ तारीख मिल रही

बिरहाना रोड में रहने वाले विजय सिंह ने इलाहाबाद बैंक से दस लाख का लोन लिया था, लेकिन वे समय पर किश्त नहीं जमा कर पाए। उनके खिलाफ बैंक ने 1995 में चेेक बाउंस का केस दर्ज कराया था। आरोपी के घर बदल देने से उसको समन रिसीव नहीं हो पाया। जिससे मुकदमे में सालों से तारीख पर तारीख लग रही है. 

यह तो सिर्फ बानगी है। इसी तरह से सैकड़ों मुकदमों में तारीख पर तारीख लग रही है। कई आरोपियों के घर की कुर्की भी हो गई है, लेकिन वे कोर्ट में हाजिर नहीं हुए। जिससे मुकदमे का निस्तारण नहीं हो पा रहा है. 

छह महीने में निस्तारण करने का है नियम

एडवोकेट टीनू शुक्ला के मुताबिक चेक बाउंस यानि एनआई एक्ट के मुकदमों को छह महीने में निस्तारित करने का नियम है, लेकिन यह व्यवहारिक तौर पर अमल नहीं हो पाता। आरोपी कानूनी दांवपेंच के सहारे पेशी पर गैरहाजिर हो जाते है। जिससे मुकदमे में अगली डेट लग जाती है. 

थानों में बढ़ रहा है एफआईआर का ग्राफ

चेक बाउंस के केस में आरोपी को नोटिस देने के बाद केस दर्ज हो जाता है। इसमें कोर्ट के जरिए आसानी से एफआईआर दर्ज हो जाती है। जिससे थानों में एफआईआर का ग्राफ भी बढ़ रहा है। एक थानाध्यक्ष के मुताबिक फाइनेंस कम्पनी के अलावा सूदखोर भी चेक बाउंस के केस दर्ज कराते हैं। वे चेक लेकर ब्याज में रुपए बांट देते हैं। बाद में रुपए न मिलने पर दबाव बनाने के लिए चेक बाउंस की एफआईआर दर्ज करा देते हैं. 

सिटी की हर कोर्ट में चेक बाउंस के करीब ढाई हजार केस दर्ज हैं। आरोपी तरह-तरह के कानूनी दांवपेंच चलकर पेशी से गैरहाजिर हो जाते हैं। जिससे मुकदमों की पेंडेंसी बढ़ रही है. 

विनय अवस्थी, पूर्व संयुक्त मंत्री, बार एसोसिएशन