ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराण के अनुसार, ये देवी सभी ‘बालकों की रक्षा’ करती हैं और उन्हें लंबी आयु देती हैं।

षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठ मैय्या कहा गया है। षष्ठी देवी को ‘ब्रह्मा की मानसपुत्री’ भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं।

पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्यायनी भी है। इनकी पूजा नवरात्र में षष्ठी तिथि को होती है। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण समाज में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का प्रचलन है।

विधिपूर्वक छठ व्रत न करने पर मिलता है कुफल
नियम पूर्वक व्रत करने पर वह व्रत सम्पूर्ण फल देता है अन्यथा उसका कुफल भी प्राप्त होता है। ऐसा पुराणों मे उल्लेख है कि राजा सगर ने सूर्य षष्ठी व्रत का परिपालन सही समय से नहीं किया परिणामस्वरूप उनके साठ हजार पुत्र मारे गये। यह व्रत सैकड़ों यज्ञों का फल प्रदान करता है।

पंचमी के दिन भर निराहार रहकर सायं या लोकप्रचलित एकाहार (फलाहार या हविष्य अन्नाहार प्रथानुसार आधार ग्रहण कर) व्रत करके दूसरे दिन षष्ठी को निराहार व्रत रहें। सायं काल सूर्यास्त के दो घंटा लगभग पूर्व पवित्र नदी, उसके अभाव में तालाब या झरना में, जिसमें प्रवेश करके स्नान किया जा सके, जाकर संकल्प करके भगवान सूर्य का पूजन कर ठीक सूर्यास्त के समय विशेष अर्घ्य प्रदान करें।

व्रत से मिलते हैं सभी सुख

स्कन्द पुराण में कहा गया है कि यह व्रत सर्वत्र इस रूप में विख्यात एवं प्रशंसनीय है कि यह सभी प्राणधारियों के मनोवांछित फल को प्रदान करता है तथा सभी सुखों को प्रदान करता है।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र

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