RANCHI: जेल की सलाखें.जिसके पीछे बंद एक आम आदमी के सपने दम तोड़ने लगते हैं, उम्मीदें हवा हो जाती हैं और भविष्य का सामना करने के नाम पर सिहरन होने लगती है वहां उसे दर्द से छुटकारे के उपाय सिखाए जाएंगे। बाल बंदियों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए सरकार नए प्रयोग करने को तत्पर है। उन्हें रोजगार देने की मुहिम में अब डुमरदग्गा स्थित बाल सुधार गृह के बाल कैदियों को फीजियोथेरेपी की ट्रेनिंग दी जा रही है। जाने-अनजाने अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की यह जिम्मेदारी झालसा निभा रहा है। राजधानी के डुमरदगा स्थित बाल सुधार गृह में हुनरमंद बाल कैदियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए अनोखी पहल की जा रही है।

समाज कल्याण विभाग का सपोर्ट

समाज कल्याण विभाग के सहयोग से झालसा द्वारा किए जा रहे इस अनोखी पहल से जल्द ही ये बच्चे हुनरमंद होकर स्वावलंबी हो जाएंगे। झालसा के इस प्रयास ने उन मासूमों को नई जिंदगी दी है जिन्होंने जाने-अनजाने अपराध की दुनिया में कदम रख दिया है। बहरहाल हुनरमंद बनते ये बच्चे नि:संदेह कल के भविष्य हैं, जिसे संवारने के लिए समाज को भी आगे आना होगा।

कंप्युटर व सोहराय पेंटिंग की ट्रेनिंग

बाल सुधार गृह में कम्प्यूटर और सोहराय पेंटिंग की ट्रेनिंग ले चुके बच्चों का अतीत भले ही अपराध से जुड़ा हुआ हो, मगर आज ये बच्चे समाज की मुख्यधारा से जुड़ने जा रहे हैं। जस्टिस डीएन पटेल ने राजधानी के डुमरदगा स्थित बाल सुधार गृह जाकर न्यायिक कायरें और निजी संस्थानों में होने वाले काम में इन्हें वर्क वेस्ड पेमेंट के आधार पर काम में लगाने की बात कही थी। जस्टिस पटेल ने पुनर्वास पर जोर दिया जिससे बाल सुधार गृह से निकलने के बाद ये बच्चे हुनरमंद होकर समाज की मुख्यधारा में लौट सकें।

65 बच्चों को मुख्यधारा में लाना चुनौती

डुमरदगा स्थित इस बाल सुधार गृह में वर्तमान में 65 बच्चे बंद हैं। इनकी आपराधिक प्रवृति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों यहां से चार बच्चे फरार हो गए थे। इनके माइंड सेट में बदलाव करते हुए इन्हें अपराध की दुनिया से हटाकर शैक्षणिक माहौल में लाने का प्रयास किया जा रहा है, जो एक चुनौती बनी हुई है।

वर्जन

बच्चे तो बच्चे हैं, भले उनके रास्ते बदल गए हैं और वे लोग अपराध की दुनिया में एंटर कर गए हैं। ऐसे बच्चों को फिर से वापस सभ्य समाज में लाने की मुहिम एक चुनौती है। झालसा का पूरा प्रयास है कि बच्चों की आंतरिक क्षमता को डेवलप कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जाए।

मनीषा रानी, अधिवक्ता, झालसा