-सिटी में हर ओर दिख जाएंगे काम करते हुए छोटे-छोटे बच्चे

-कुछ के पास पेट पालने की है बेबसी तो कुछ से जबरन कराया जा रहा है काम

- चाइल्ड लेबर एक्ट की उड़ाई जा रही हैं धज्जियां, नहीं है कोई सुनने वाला

-मासूम बच्चों का हब है कैंट स्टेशन व रोडवेज बस स्टेशन के आस पास के होटल, लॉज

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घर से भागकर गलत हाथों में पड़ने वाले मासूमों को रेस्क्यू कर वापस उनके घर तक पहुंचाने या फिर उनको सही रास्ते पर लाने के लिए प्रदेश सरकार के आदेश पर चलाया जा रहा आपेशन मुस्कान मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में ही औंधे मुंह गिर गया है। इस बात का खुलासा सोमवार को तब हुआ जब आई नेक्स्ट ने इस ऑपेशन स्माइल की सच्चाई जानने के लिए शहर के अलग-अलग इलाकों में स्टिंग आपेशन किया। हमारे इस स्टिंग में वो सच सामने आया जो शायद काफी लंबे वक्त से छुपा था। हर जगह बच्चों को मजदूरों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था। जूठे बर्तन धुलने से लेकर दूसरे कामों में इन बच्चों का इस्तेमाल लोग अपने तरीके से कर रहे हैं।

स्पॉट-1

कैंट स्टेशन के सामने

बनारस कैंट स्टेशन वो प्लेस है जहां हर पल हजारों की भीड़ रहती है। पिछले दिनों खानापूर्ति के नाम पर इस इलाके के एक ढाबे पर श्रम विभाग के साथ पुलिस ने छापेमारी कर तीन बच्चों को रेस्क्यू करने का दावा किया। दावा ये भी था कि ये ऑपरेशन आगे भी जारी रहेगा और बच्चे कहीं काम करते दिखे तो दोषी के खिलाफ कार्रवाई होगी लेकिन ये दावा सिर्फ दावा ही था। आई नेक्स्ट के स्टिंग में जब हम कैंट स्टेशन के आस पास के इलाके में टहले तो हमारे होश उड़ गए। यहां होटलों, ढाबों और ठेलों तक पर बच्चों से मजदूरों सरीखे काम लिया जा रहा था।

स्पॉट-2

सिगरा थाने से कुछ दूर

हमने दूसरा स्पॉट सिगरा इसलिए चुना क्योंकि कुछ ही दिन पहले सिगरा पुलिस ने बच्चों के रेस्क्यू करने का अभियान चलाकर तीन बच्चों को मुक्त कराया था। हमने सोचा कि हो सकता है यहां हमें कुछ सख्ती दिखे लेकिन हम यहां तब चौंक पड़े जब सिगरा थाने से महज 50 कदम की दूरी पर लगे छोले भठूरे के ठेले, बाटी चोखा के ठेले पर बच्चे काम करते दिखे। इसके अलावा थाने के ठीक सामने चाय की दुकान पर भी किशोर से ही काम लिया जा रहा था।

ये है ऑपरेशन मुस्कान

- आपरेशन मुस्कान प्रदेश सरकार की ओर से उन बच्चों के लिए चलाया जा रहा रेस्क्यू ऑपरेशन है जो बच्चे किसी कारण से अपना घर छोड़कर भागे हों

- इन बच्चों को अक्सर कोई गैंग या तो भीख मांगने, कार साफ कराने या फिर कूड़ा बीनने के काम में लगा देता है या फिर होटल, ठेले वाले इनसे काम कराने लगते हैं।

- ऐसे बच्चों को ही इन लोगों के चंगुल से मुक्त कराकर उनकी काउंसलिंग कराने के बाद उनके मां बाप तक वापस पहुंचाना इस अभियान का मकसद है।

- पिछले साल यूपी में इस कैंपेन के तहत 19 हजार बच्चों का रेस्क्यू किया गया था।

- जिसका सेकेंड फेज 1 जनवरी से 31 जनवरी तक चलाने का आदेश सचिव लेवल पर हर जिले को दिया गया है।

- इसके बाद भी बनारस में इस अभियान का असर अब तक नहीं देखने को मिल रहा है।

हर तरफ छीन रहा है बचपन

- शहर का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां बाल मजदूर न हों

- बिल्डर्स के लिए पसंदीदा शहर बने बनारस में रियल स्टेट इंडस्ट्री में गिट्टी, बालू, ईंट ढोने का काम बच्चे कर रहे हैं

- सैकड़ों की संख्या में रैग पिकर्स बच्चे हैं जिनकी उम्र 15 वर्ष से कम होती है

- ईट- भट्ठा पर काम करने वालों में पुरुष- महिलाओं के साथ बच्चे भी नजर आते हैं

- शहर में मौजूद होटल, रेस्तरां, गेस्ट हाउस, पेइंग गेस्ट हाउस में बच्चों से काम लिया जाता है

- हर तरह की दुकानों में सामान आदि ढोने की जिम्मेदारी मासूम कंधों पर होती है

- डाई, केमिकल, बीड्स आदि के कारखानों में बच्चे खतरनाक काम कर रहे हैं

- पंचर बनाने वाले, बारात में लाइट ढोने वाले, घाटों पर माला- फूल बेचने का काम नन्हे मुन्ने ही कर रहे हैं

नियम तो बहुत है लेकिन

- स्कूल न जाने वाले छह से 12 साल के बच्चे जो किसी तरह का काम करते हैं वह चाइल्ड लेबर की श्रेणी में आते हैं

- बाल मजदूर की इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने 1998 में नेशनल चाइल्ड लेबर प्रोटेक्शन एण्ड रेगुलेशन एक्ट बनाया

- जिसके तहत बाल मजदूरी को एक अपराध माना गया तथा रोजगार पाने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष कर दी गई

- बीच में इस एक्ट में कुछ जरूरी बदलाव किए गए हैं

- चाइल्ड लेबर एक्ट के मुताबिक नियोक्ता जो इसमें शामिल हो उसे छह महीने की कैद और जुर्माना की सजा हो सकती है

(जैसा कि सीनियर लॉयर नीलकण्ठ तिवारी ने बताया)