-चाइल्ड लेबर्स को लेकर प्रशासन के साथ बच्चों के उत्थान का दावा करने वाले एनजीओज भी पड़े हैं सुस्त

- प्रशासन से सपोर्ट न मिलने की बात कहकर ही एनजीओ झाड़ ले रहा है अपना पल्ला

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बचपन जिसे पूरी जिंदगी का सबसे हसीन पल कहा जाता है। ये ऐसा वक्त होता है जिसमे रहते हुए हर किसी को जिंदगी की कोई टेंशन नहीं सताती। बस हर पल मौज मस्ती और हंसी खुशी के बीच लाइफ चलती रहती है लेकिन अपने शहर बनारस में बहुत से मासूमों का ये बचपन चाइल्ड लेबर के ठप्पे के बीच कहीं खो गया है। इनके चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाले तमाम दावेदार भी अब इनसे जैसे कन्नी काटने लगे हैं। शायद यही वजह है कि प्रशासन की ओर से चाइल्ड लेबर्स को मुक्त कराने के लिए चलाये जा रहे ऑपरेशन मुस्कान के फेल होने के बाद बच्चों को अच्छी जिंदगी देने के लिए लंबे-चौड़े फंड लेने वाले एनजीओज भी कुछ नहीं कर रहे हैं। जिसके बाद ये सवाल उठने लगा है कि किस काम हैं ये एनजीओज जब कुछ कर ही नहीं सकते बचपन को बचाने के लिए।

रजिस्टर्ड हैं कई फिर भी

बनारस में बच्चों के उत्थान के लिए कई एनजीओ काम कर रहे हैं। इनमें रजिस्टर्ड एनजीओज की संख्या दो दर्जन से भी ज्यादा है। इसके बाद भी ऑपरेशन मुस्कान को सफल बनाने के लिए अब तक सही ढंग से कोई एनजीओ आगे नहीं आया है। जिसके कारण ये अभियान ठप पड़ा हुआ है। हालांकि इस बारे में पूछे जाने पर जिम्मेदार अधिकारी टीमें बनाकर कार्रवाई की बात कर रहे हैं लेकिन सही मायने में हो क्या रहा है, ये सबके सामने है। आंकड़ों की बात करें तो एक जनवरी से लेकर 31 जनवरी तक चलने वाले ऑपरेशन मुस्कान कैंपेन के तहत 19 दिन बीत जाने के बाद भी ऑन रिकार्ड अब तक एक बच्चा ही रेस्क्यू कर अपने घर भेजा गया है। जबकि शहर भर में छोटे बच्चे 'छोटू' बनकर काम कर रहे हैं और एनजीओ से लेकर प्रशासन तक सब आंखें मूंदे बैठे हुए हैं।

हमने टीमें बनाकर शहर के शिवपुर, सिगरा और कई जगहों पर बाल मजदूरों को पॉइंट आउट भी किया है लेकिन प्रशासन पूरा सहयोग दे तब ही कार्रवाई कर सकते हैं।

फादर सुनील कुमार, सेंटर हेड, चाइल्ड लाइन

हम ह्यूमन ट्रैफिकिंग और चाइल्ड लेबर जैसे अभिशाप को समाज से मिटाना चाहते हैं। इसके लिए हमारी तरफ से काम भी किया जा रहा है लेकिन आन जानते हैं अकेले कोई काम मुश्किल होता है। फिर भी हमारा प्रयास है कि छोटे बच्चे बाल मजदूरी के बंधन से मुक्त हो।

मंजू, प्रोग्राम कोआर्डिनेटर, गुडि़या संस्था