बाल मजदूरों को पढ़ाने के लिए खोले गए थे स्कूल

बजट के अभाव में दम तोड़ गई राष्ट्रीय बाल मजदूर परियोजना

BAREILLY:

ढाबा, होटल व अन्य व्यवसायों से जुड़कर रोजी रोटी चला रहे बाल मजदूरों को एजुकेशन की मेन स्ट्रीम से जोड़ने के लिए वर्ष 2008 में राष्ट्रीय बाल मजदूर परियोजना लागू हुई थी। एनजीओ के माध्यम से योजना परवान चढ़ी, लेकिन कुछ ही वर्षो में बजट के संकट के चलते योजना को बंद करना पड़ गया। इसी के साथ ही बाल मजदूरों की पढ़ाई की आस भी धूमिल हो गई।

बजट का संकट

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना को बाल श्रमिकों के उत्थान के लिए 2008 में शुरू किया गया, तीन चरण में चली इस परियोजना के तहत 3100 मजदूर बच्चों की पढ़ाई कराई गई। परियोजना के तहत पढ़ाने का जिम्मा 62 एनजीओ को दिया गया। लंबे चौड़े बजट वाली इस परियोजना को तीन साल बाद केंद्र सरकार ने बंद कर दिया, इसके पीछे योजना का बजट और इसकी पॉलिसी रिवाइज करके फिर शुरू करना वजह बताई गई। लेकिन तीन साल पूरे हो जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने इस अति महत्वपूर्ण योजना को शुरू करने की सुध नहीं ली है।

कहां गए 3100 मजदूर बच्चे

श्रम विभाग के अनुसार, 2011 में परियोजना बंद होने के बाद 3100 मजदूर बच्चों को मेनस्ट्रीम स्कूलों में एडमिट करा दिया गया था। परियोजना अधिकारी का ट्रांसफर हो जाने के बाद अब इन बच्चों के नाम व किन प्राइमरी स्कूलों में इनका दाखिला हुआ, की जानकारी इनके पास नहीं है। वहीं दूसरी ओर बेसिक शिक्षा विभाग के पास भी ऐसे बच्चों के परिषदीय स्कूलों में दाखिले का कोई ब्योरा नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि ये 3100 बच्चे कहां गायब हैं। इस मामले में परियोजना के प्रभारी श्रम अधिकारी का चार्ज संभाल रहे एडीएमई से जानकारी चाही, लेकिन अधिकारी के अवकाश पर होने से जानकारी नहंीं मिल सकी।