- किताब-कॉपी के बस्ते की बजाय चुने गए कचरे के बोरे से झुक गया कंधा

- किताबों की जगह कंधों पर प्लास्टिक का बोरा टांगे घूमते हैं गली-गली

PATNA : दोनों भाई तेजी से रोड पार करते हैं। गांधी मैदान के पास। उस पार पहुंचते हैं जिधर बस स्टैंड है। दोनों के कंधे पर प्लास्टिक का एक बोरा है। बोरे में कागज के टुकड़े हैं और चुने गए प्लास्टिक हैं। कंधा झुका हुआ। चिल्मन की उम्र मुश्किल से पांच साल होगी और असलम की सात साल। दोनों को अपनी उम्र नहीं मालूम। दोनों के झुके कंधे उन बच्चों की याद दिलाते हैं जो कंधे पर किताब-कॉपियों का भारी बोझ लिए दिखते हैं। ये दोनों उन खुशकिश्मतों में नहीं जिनके कंधे पर किताब कॉपियों का बोझ हो। इनकी चिंता में तो बस यही शामिल है कि कैसे बोरा जल्दी से भर जाए और ब्0-भ्0 रुपए मिल जाएं। ब्0-भ्0 रुपए मिल गए तो समझिए दिन ढल गया। इसके बाद तो बस रात होने का इंतजार। इन्हें क्या पता मिशनरी की पढ़ाई और उन स्कूलों में एडमिशन के नखरों के बारे में।

अपनी बात एक्सप्रेस करना भी नहीं सीखा

दोनों नन्हे भाई मजदूरों से गांधी मैदान के पास ही सड़क किनारे आई नेक्स्ट ने बात की। ठीक से अपनी बात एक्सप्रेस करना भी नहीं सीखा और चल निकले कमाने-धमाने। आरटीई हो या सरकार के बाकी सिस्टम जिस पर लाखों खर्च होते हैं बाल श्रम को मिटाने में। वह सब इन दोनों बच्चों से भी बौने साबित होते हैं। सरकार इतनी छोटी है ये इन बच्चों को देखकर लगता है। गंदे बच्चे। मुस्कान बिखेरते। हर सवाल पर शर्माते। आधा बोलते आधा पेट में रखते। चिलचिलाती गर्मी किसे कहते हैं या एसी की ठंड क्या होती है ये सब से बेपरवाह हैं। इनको एजुकेटेड करने के लिए ना जाने पटना में कितने अफसर, अध्यक्ष लाल बत्तियों, ब्लू बत्तियों की सवारी फरमाते हैं इन्हें कुछ नहीं पता। ये तो बच्चे हैं।

एबीसीडी जानते हैं, पर बोल नहीं पाया

पापा क्या करते हैं तुम्हारे? ये सवाल पूछते ही चिल्मन कह उठता है ठेला चलाते हैं। अंटा घाट में। मां क्या करती है? मां, मां खाना बनाती है। स्कूल जाते हो? चुप। हां एबीसीडी जानते हैं, कहता है असलम। लेकिन पूछने पर एबीसीडी से आगे नहीं बता पाता। पटना में ये हाल है जनाब। ये राजधानी है। सारे नारे और सारी पालिसियां यहां से नीचे तक उतरती हैं सूबे में। सेंशस ख्0क्क् की रिपोर्ट में पटना में म्भ्,ब्ख्0 बाल मजदूर भ्-क्ब् आयु वर्ग की आबादी में हैं। यहां ब्.ब्म् परसेंट बाल श्रमिक हैं। बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग के अनुसार आंध्र, यूपी, एमपी के बाद बिहार चौथा राज्य है जहां बाल श्रमिक क्क् लाख से ज्यादा हैं। क्ख् जून फिर से आ गया है। इस दिन खूब खर्च होगा। लेकिन चिल्मन-असलम तो क्ख् जून को भी निकलेंगे दो जून की रोटी के लिए। पूरे सिस्टम को धता बताते रोड पार कर जाएंगे। धूप के बारे में, लू के बारे में, सफाई के बारे में आप बतियाते रहिए। चिल्मन और असमल दोनों भाई कंधे पर बोरा डालेंगे और बीन डालेंगे शहर का कचरा। कचरे से हर दिन कागज और प्लास्टिक उठा रहे हैं ये। हर दिन सिस्टम को बोरे में कस ले जा रहे हैं कबाड़ीखाना और ब्0-भ्0 रुपए में बेच आ रहे हैं। राजधानी में सरकार को हरा रहे हैं ये!