- भीषण गर्मी में गलियारे में सोते हैं मरीज और परिजन

- दिन में तपन के चलते एक-एक पल काटना मुश्किल

<- भीषण गर्मी में गलियारे में सोते हैं मरीज और परिजन

- दिन में तपन के चलते एक-एक पल काटना मुश्किल

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में इलाज कराने आए मासूमों को न दिन में चैन और न रात में सुकून मिल रहा है। कलेजे के टुकड़ों की यह हालत परिजनों से देखी नहीं जा रही है। वार्डो में पड़ने वाली तेज गर्मी के चलते बच्चे और उनके परिजन तिलमिलाने को विवश हैं।

गलियारे में बीत रही रात

हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में तो एसी लगा हुआ है लेकिन पहली मंजिल पर बने वार्ड नंबर सात और पांच के मरीजों को केवल पंखा नसीब है। उनमें भी आधे खराब पड़े हैं। ऐसे में मासूमों को हॉस्पिटल के गलियारे में रात गुजारनी पड़ रही है। वार्ड नंबर सात के बेड नंबर एक में भर्ती हनुमानगंज के सूर्य बहादुर की बेटी आयुषी आठ महीने की है। क्भ् मई से उसका डायरिया का इलाज चल रहा है। सूर्य बहादुर बताते हैं कि वार्ड में न कूलर है न एसी। ऐसे में ब्ख् डिग्री तापमान पर दिन और रात दोनों समय गलियारे में बच्ची को लेकर टहलना पड़ता है।

हजारों खर्च, फिर भी सुविधा नहीं

वार्ड नंबर सात में कुल क्म् बेड हैं। वार्ड में लगे क्फ् में से 8 पंखे ही चल रहे हैं। बाकी खराब पड़े हैं। मुंगरा बादशाहपुर से आई मुन्नी देवी का ढाई साल का बेटा आयुष पेट में सूजन के चलते वार्ड में नौ दिन पहल भर्ती हुआ था। मुन्नी देवी बताती हैं कि गर्मी की वजह से रात वार्ड में काटना मुश्किल है तो गलियारे में मच्छर बहुत काटते हैं। कुछ ऐसा ही हाल बेनीगंज के एकेश्वर त्रिपाठी का है। उनका नौ महीने का बेटा दिव्यांश भी डायरिया के चलते इसी वार्ड में एडमिट हुआ था। वह भी बच्चे को लेकर दिनभर हॉस्पिटल कैंपस में भटकते रहते हैं।

मजबूरी में इमरजेंसी में ठहर गए

प्रतापगढ़ से आए एक परिजन ने बताया कि उनकी चार महीने की बच्ची को दिमागी बुखार था। क्ख् दिन पहले इमरजेंसी वार्ड में एडमिट कराया था। हालत में सुधार होने के बाद हॉस्पिटल प्रशासन ने मरीज को वार्ड नंबर सात में शिफ्ट कर दिया। महज एक या दो दिन में वापस गर्मी से बच्चे की हालत खराब होने लगी। ऐसे में रिक्वेस्ट करके वापस बच्चे को इमरजेंसी वार्ड में एडमिट कराया गया।

कम पड़ गया ओआरएस का स्टॉक

गर्मी के सीजन में तेजी से उल्टी दस्त के मरीजों के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में उनको दवाओं के साथ-साथ ओआरएस के घोल की तुरंत जरूरत पड़ती है। कुछ परिजनों ने बताया कि कभी-कभी ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं कि ओआरएस भी बाहर से खरीदकर लाना पड़ता है।