- दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से परिचर्चा में शामिल हुए लोग

- बोले, स्कूल, प्रशासन, पुलिस व पैरेंट्स के संयुक्त प्रयास से होगा काम

LUCKNOW :

हाल ही में गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में हुई सात साल के छात्र प्रद्युम्न की नृशंस हत्या के मामले को लेकर पूरे देश के लोगों में काफी आक्रोश है। दिल दहला देने वाली घटना के बाद स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा, उनकी जिम्मेदारी, जिला प्रशासन, पुलिस विभाग का रवैया आदि पर चर्चा का दौर चल रहा है। इसी मुद्दे को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने 'खतरे में बच्चे' नाम से एक सीरीज चलाई थी, जिसमें मानकों के विपरीत चल रहे स्कूलों, स्कूली वैनों की दुर्दशा, नौनिहालों की सुरक्षा, स्कूल के साथ पुलिस व पैरेंट्स जैसे तमाम मुद्दों को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसी के तहत सैटरडे को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट की ओर से परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें स्कूल प्रशासन के साथ पैरेंट्स और स्वयं सेवी संस्थाओं के कई लोगों ने खुलकर अपने विचार रखे। साथ ही इस तरह की घटनाएं भविष्य में दोबारा न हो इसके लिए एक संयुक्त प्रयास की बात कही।

जमीनी स्तर पर काम करने की ज्यादा जरूरत

ऐसी घटनाएं दोबारा न हो इसके लिए हमें साथ मिलकर काम करना होगा। स्कूलों में पैरेंट्स टीचर मीटिंग के दौरान सिर्फ बच्चों की पढ़ाई की बात न की जाये। साथ ही उसके बर्ताव स्कूल में उसकी सुरक्षा आदि मुद्दों पर पैरेंट्स को चर्चा करनी चाहिए। इस तरह की घटनाओं को रोकना हमारी जिम्मेदारी है। मगर उसके लिए पैरेंट्स, जिला प्रशासन, स्कूल प्रशासन, पुलिस, एनजीओ आदि सबको मिलकर काम करना होगा। इसके लिए सबकी जिम्मेदारी तय करनी बहुत जरूरी है। स्कूलों में वेरिफिकेशन का काम होना चाहिए सिर्फ ड्राइवर ही नहीं स्टॉफ का भी वेरिफिकेशन होना चाहिए। जो इन नियम को नहीं फॉलो कर रहे हैं उन पर कार्रवाई हो। अभी हमारी ओर से स्कूलों में निरीक्षण किया गया। इस दौरान खाली मिलने वाले कमरों को बंद कराया गया है। साथ ही परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए हैं। जिन पर लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। यह बहुत बड़ा इश्यू है जिसपर हम सबको मिलकर काम करना होगा। जहां तक कार्रवाई की बात है तो तत्काल कार्रवाई की जायेगी। मेरा मानना है कि कागजी कार्रवाई से ज्यादा धरातल पर काम करना चाहिए।

डॉ। मुकेश कुमार सिंह, डीआईओएस

पैरेंट्स को भी समझनी होगी जिम्मेदारी

बच्चों की जिम्मेदारी स्कूल प्रशासन के साथ पैरेंट्स को भी समझनी होगी। बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद उनकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती है। जहां तक स्कूल वैन की बात है तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि लगभग सभी स्कूल के पास उनके ड्राइवर और उनसे आने वाले बच्चों का रिकार्ड मौजूद रहता है। समस्या यहां नहीं है, समस्या यह है कि जो बच्चे प्राइवेट गाडि़यों से आते हैं उनकी मॉनिटरिंग कौन करता है। इसमें पैरेंट्स का रोल अहम हो जाता है। वे चंद पैसे बचाने के लिए प्राइवेट वैन का इस्तेमाल करते हैं। एक समस्या यह भी है अगर हम इन प्राइवेट गाडि़यों को रोकते हैं तो पैरेंट्स स्कूल प्रशासन पर इल्जाम लगाने लगाते हैं कि वह अपना बिजनेस बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा पैरेंट्स बच्चों को स्कूल हॉवर्स से एक घंटा पहले ही गेट पर लाकर खड़ा कर देते हैं। एक दिन पहले ही मैंने आरटीओ, डीएम और संबधित थानों में प्राइवेट गाडि़यों पर कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है। स्कूलों के साथ पैरेंट्स को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

सुशील कुमार, निदेशक, लखनऊ पब्लिक स्कूल एंड कॉलेजेस

बच्चों को गुड और बैड टच के बारे में बताएं

पैरेंट्स और स्कूल में टीचर्स को बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में अवेयर करना चाहिए। हमारी संस्था की ओर से 100 दिन 100 स्कूल एक अभियान चलाया जा रहा है जिसमें हम लोगों ने देखा है कि 5 से 11 साल के बच्चों के साथ ऐसे केस ज्यादा होते हैं क्योंकि इतने छोटे बच्चों को सही गलत का फर्क नहीं पता होता है। ऐसे में पैरेंट्स को सोचने की जरूरत है कि वे अपने बच्चों को किस तरह से ट्रीट करें। अक्सर देखा गया है कि पैरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के बाद वह अपनी जिम्मेदारी से दूर हो जाते हैं। हम जितना स्कूलों को जिम्मेदार मानते हैं उतनी ही हमारी जिम्मेदारी है। बच्चों को घर पर पैरेंट्स गुड और बैड टच के बारे में बताएं और उनको अवेयर करें। साथ ही समय-समय पर स्कूलों में जाकर सबसे बात करें।

ऊषा विश्वकर्मा, रेड बिग्रेड

पैरेंट्स और बच्चों के बीच इंट्रेक्शन जरूरी

कई बार देखा गया है कि बच्चे अपने पैरेंट्स के साथ ही कंफर्ट महसूस नहीं करते हैं। ऐसे में वे अपने साथ होने वाली किसी भी गलत हरकत को पैरेंट्स से शेयर नहीं कर पाते हैं। पैरेंट्स और बच्चों के बीच इंट्रेक्शन बहुत जरूरी है। जहां तक स्कूल की बात है तो उसमें पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग के नाम पर बस बच्चों के मा‌र्क्स पर फोकस किया जाता है। इसके अलावा न टीचर्स बच्चों के बारे में बात करती हैं न ही पैरेंट्स स्कूल के बारे में कोई बात करते हैं। स्कूल जेल खाना हो गये है। सुरक्षा को दरकिनार कर भव्यता में जी रहे हैं। ऐसे में सीसीटीवी कैमरे लगवाने की बात करने वालों को समझना चाहिए कि इससे कोई बदलाव नहीं आयेगा। उसके लिए स्कूल को समाज से जुड़ना होगा।

रचना कौर, समाजसेवी

जिला स्तर पर निगरानी कमेटी बने

दो महीने से हम लोग स्कूलों में यौन हिंसा, जागरूकता अभियान चला रहे हैं। जिसमें ज्यादातर जो केस मिले हैं वे फोर्थ क्लास कर्मचारियों के खिलाफ आये हैं। छोटे छोटे बच्चों को पता ही नहीं होता है कि बैड टच क्या है। ऐसे में जब हम उनको पिक्चर और फिल्म के जरिये बताते हैं कि यह गलत और यह सही है तब वे बच्चे बताते हैं कि हमारे वैन वाले भईया या गार्ड हमारे साथ गलत हरकत करते हैं। कई बार तो स्कूलों में हम लोगों ने जब कंप्लेंट की तो वे हमारे ऊपर ही हावी हो गये। कई बार बच्चे डर में विरोध नहीं कर पाते। ऐसे में स्कूल में एक सजेशन बॉक्स होना चाहिए। जिसमें बच्चे अपनी कंप्लेंट डाल सकें। इसके अलावा जिला स्तर पर कमेटी बननी चाहिए जो स्कूलों में निगरानी रखे।

अजीत कुशवाहा, चाइल्डलाइन

स्कूलों पर करें सख्ती

प्राइवेट स्कूलों में नियमों का पालन नहीं किया जाता है। वे अपने हिसाब से स्कूलों का संचालन कर रहे हैं। पैरेंट्स की बात सुनी नहीं जाती है। पैसे कमाने की होड़ लगी हुई है। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाता है। पैरेंट्स एसोसिएशन की ओर से कई बार इसको लेकर कंप्लेंट की गई मगर सुनवाई नहीं होती है। शहर में संचालित स्कूलों में कई ऐसे हैं जो बिजनेस कर रहे हैं। उनके लिए बच्चों की सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है। अभी एक केस हुआ है तो सब जाग गये हैं, लेकिन धीरे धीरे फिर वहीं पुराने पैटर्न पर आ जाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि स्कूलों पर सख्ती से कार्रवाई की जाये।

प्रदीप श्रीवास्तव, पैरेंट्स एसोसिएशन

बच्चों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता हो

स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। कई बार स्कूल में शिकायत की जाती है मगर उसकी सुनवाई नहीं होती है। जब कोई बड़ी घटना हो जाती है तो सबकी नींद खुलती है। अगर शुरू से ही इन मुद्दों पर ध्यान दिया जाये तो ऐसी घटनाएं होने की बहुत कम आशंका होगी। जहां तक प्राइवेट स्कूल वैन की बात है तो उसमें भी स्कूल प्रशासन को सख्त कदम उठाना चाहिए। उनको बैन कर देना चाहिए। तब लोग खुद ब खुद स्कूलों द्वारा ऑथराइज्ड वैनों से अपने बच्चों को भेजेंगे।

भूपेंद्र सिंह सिकरवार, आदर्श अभिभावक संघ

बच्चों की सुरक्षा प्राथमिकता

स्कूलों में हम बच्चों को शिक्षा के लिए भेजते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि वो वहां सुरक्षित रहेंगे। वहीं बच्चों के साथ हो रही घटनाओं से पैरेंटस का मनोबल व विश्वास कम हो रहा है। इसके लिए कई ऑप्शन है। अगर आपको किसी स्कूल में कोई प्रॉब्लम नजर आती है और वहां आपकी बात नहीं सुनी जा रही है तो आप कोर्ट का सहारा ले सकते हैं। लगभग दो साल पहले एक स्कूल में बच्चे की छत से गिरकर मौत हो गई थी, घटना के दो साल बाद कोर्ट के आदेश पर केस दर्ज हुआ है।

सुरेश पांडे, महामंत्री अवध बार एसोसिएशन

कोर्ट का लें सहारा

हमारे बच्चों की सुरक्षा अहम है उसके लिए अगर हमें कोर्ट भी जाना पड़ा तो घबराना नहीं चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि पैरेंट्स स्कूल में गलत होते हुए भी चुप रहते हैं कि कहीं उनके बेटे को स्कूल से निकाल न दिया जाये। ऐसे में हमें इस मोह से निकलना होगा। आपका एक सख्त कदम औरों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन सकता है। जब आपकी कहीं सुनवाई न हो तो कोर्ट में आपकी बात को सुना जायेगा।

अवनीश , पूर्व उपाध्यक्ष लखनऊ बार एसोसिएशन