Case study one

कर्नलगंज की रहने वाली प्रीती शुक्ला अपनी बच्ची को रिसीव करने खुद उसके स्कूल जाने लगी हैं। अपनी स्कूटी से वह बच्ची को सुबह छोड़ती हैं और दोपहर में लेकर आती हैं। वह अब बच्ची को एक पल के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देतीं और न ही किसी रिश्तेदार पर भरोसा करके उसके पास छोड़ती हैं.

Case study two
जार्जटाउन के रमाशंकर सिंह ने अपनी पुरानी स्कूटर को फिर से ठीक करा लिया है। इसे अब वह अपनी पोती को स्कूल छोडऩेंं और उसे वहां से लाने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं। वह नहीं चाहते कि उनकी पोती के साथ कुछ ऐसा वैसा हो। इसीलिए वह साए की तरह अपनी पोती के साथ लगे रहते हैं। थोड़ी धूप सहनी पड़ती है फिर भी उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है.

Case study three

अशोक नगर में रहने वाली रूमा वर्मा अपनी बेटी को बाहर तभी निकलने देती हैं जब वह खुद बाहर निकलें। उसे फ्रेंड्स के साथ खेलने की परमिशन भी घर तक ही सीमिति है। बच्ची कई बार मां के इस बिहैवियर पर रीएक्ट करती है। इसके बाद भी रूमा रीएक्ट नहीं करती बल्कि उसे समझा-बुझाकर शांत करने की कोशिश करती हैं. 

Allahabad: कौन अपना है और कौन पराया? समझ में नहीं आ रहा है। किस एतबार किया जाए किस पर नहीं? न जाने कौन कब हैवान बन जाए। बाद में भले ही उसे फांसी हो जाए लेकिन बच्ची के साथ कुछ ऊंच-नीच हो गया तो उसका जीवन तो तबाह हो जाएगा। वह जिंदगी भर एक दर्द के साथ जीती रहेगी और उसका चेहरा देखकर कोई पैरेंट्स अपने को कभी माफ नहीं कर सकेगा। आखिर जीवन भर की कमाई बच्चों का भविष्य ही तो है। जब बच्चे और उसका भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा तो कुछ भी कमा लें, क्या फायदा। पिछले एक महीने के दौरान इलाहाबाद में बच्चों खासतौर से बच्चियों के साथ ताबड़तोड़ हुई घटनाओं में पैरेंट्स को हिलाकर रख दिया है। वे इन शब्दों में अपनी बात रखते हैं और उनकी यह चिंता किसी भी दिन स्कूल क्लोज होने के समय तपती दुपहरी में उसकी मौजूदगी खुद बयां कर देती है। आई नेक्स्ट ने थर्सडे को चेक किया तो कुछ ऐसा ही सामने आया. 

खुद ले ली सारी जिम्मेदारी
बच्ची चाहे जितनी छोटी क्यों न हो, पैरेंट्स अब उसके साथ किसी भी तरह की अनहोनी न हो, इसको लेकर एलर्ट हो गए हैं। स्कूलों में इसका इफेक्ट खासतौर पर दिखने लगा है। बच्ची को घर से स्कूल छोडऩे की जिम्मेदारी हो या फिर स्कूल से घर ले जाने का काम, पैरेंट्स अब ये काम खुद करने लगे हैं। बच्ची को उनके लिए एक पल भी अकेला छोडऩा गंवारा नहीं है। अभी हाल ही में बच्चियों के साथ लगातार हुई कई घटनाओं ने उन्हें बच्चियों की सुरक्षा को लेकर एलर्ट होने पर मजबूर कर दिया है। न चाहते हुए भी वे बच्चियों पर तमाम तरह के बाउंडेशन लगाने का मजबूर हो गए हैं.

छिन रहा बचपन
हैवानियत की सारी हदों को पार करते हुए नन्हीं बच्चियों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है। इस तरह की घटनाओं ने पैरेंट्स के दिलोदिमाग में इतना खौफ भर दिया है कि वे बच्चियों की सुरक्षा को लेकर उन्हें घरों में कैद करने को मजबूर हो गए हैं। घर से बाहर खेलने पर पाबंदी तो लगाई ही जा रही है। ट्यूशन के बाहर जाने पर भी रोक लगाया जा रहा है। कुछ पैरेंट्स खुद अपनी बच्चियों को पढ़ाने लगे हैं, तो कुछ घर में ही ट्यूटर लगा दिया है। पैरेंट्स की हर कोशिश है कि अधिक से अधिक समय तक उनकी बच्ची उनके आंखों के सामने रहे। या फिर ऐसी जगह रहे, जहां वह पूरी तरह से सुरक्षित हो.

Care का side effect

ये बात और है कि पैरेंट्स की इस केयर ने बच्चियों पर कुछ खतरा कम कर दिया है। लेकिन, इसके बदले पैरेंट्स और खुद उन बच्चियों को बहुत खुश चुकाना पड़ रहा है। पैरेंट्स का टाइम व पैसा बर्बाद हो रहा है तो बच्चियों की आजादी छिन गई है। उनकी फिजिकल एक्टिविटी जहां न के बराबर हो गई है वहीं सोशल इंटरेक्शन भी लगभग बंद सा हो गया है। साइकोलॉजिस्ट दीपक पुनेठा की मानें तो ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बच्चों का पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पूरी तरह बंद हो जाएगा। वे किताबी कीड़ा बनकर रह जाएंगे। लेकिन, मजबूर पैरेंट्स ये सब जानते व समझते हुए बच्चियों की सुरक्षा को लेकर घरों तक सीमित रखने को मजबूर हैं.

Parents रखें ख्याल
-बच्चों को अनावश्यक घर से बाहर भेजने से बचें
-पड़ोसी व रिश्तेदारों के साथ बहुत अधिक मिक्सअप न हों
-बच्चों के मामले में पड़ोसियों की एक्टिविटी पर नजर रखें 
-घर में आने वाले ट्यूटर, ड्राइवर व नौकर पर भी रहे नजर
-बच्चों के साथ एंज्वॉय करने के लिए निकाले खुद का टाइम
-बच्चों के साथ इस तरह मिक्स हों कि वह अपनी हर बात आपसे शेयर करें
-बच्चे कुछ बड़े हों तो उन्हें ह्यूमन बॉडी के बारे में भी बताएं
-उनके साथ डांट व पिटाई के बजाए फ्रेंडली बिहैव करें
-बच्चों में आदत डालें कि वे बाहरी लोगों के साथ मिक्सअप न हों
-स्कूल से लेकर घर तक बच्चों की एक्टिविटी पर भी ध्यान दें

कारण - 
-इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले मानसिक रूप से बीमार होते हैं
-अनएजुकेटेड होना भी इसका एक बहुत बड़ा कारण है. 
-सोसाइटी व कानून के प्रति लोगों में डर का खत्म होना
-लोगों में सामाजिक चेतना व नैतिक शिक्षा का अभाव 
-सोसाइटी में आधे अधूरे रूप में वेस्टर्न कल्चर की एंट्री 
-फैमिली मेंबर्स में एक दूसरे के प्रति दिल से जुड़ाव का कम होना
-लोगों में विलासिता के प्रति बढ़ता लगाव

लोगों पर आत्म अनुशासन नहीं रह गया है। यही कारण है कि वे एक पशु की तरह बिहैव कर रहे हैं। टीवी सीरियल्स व फिल्मों में परोसी जा रही अश्लीलता और सोसाइटी से खत्म होता डर इसका मेन कारण है। अधिक उम्र बीत जाने के बाद कामभावना का उत्पन्न होना एक आम बात है। लेकिन उसे कंट्रोल करना मानव की प्रवृत्ति होती है, जो खो देने वाला मानव एक पशु के समान हो जाता है। जिससे इस तरह की उम्मीद की जा सकती है. 
प्रो। दीपा पुनेठा, 
साइकोलॉजिस्ट
Case study one

कर्नलगंज की रहने वाली प्रीती शुक्ला अपनी बच्ची को रिसीव करने खुद उसके स्कूल जाने लगी हैं। अपनी स्कूटी से वह बच्ची को सुबह छोड़ती हैं और दोपहर में लेकर आती हैं। वह अब बच्ची को एक पल के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देतीं और न ही किसी रिश्तेदार पर भरोसा करके उसके पास छोड़ती हैं।

Case study two

जार्जटाउन के रमाशंकर सिंह ने अपनी पुरानी स्कूटर को फिर से ठीक करा लिया है। इसे अब वह अपनी पोती को स्कूल छोडऩेंं और उसे वहां से लाने के लिए इस्तेमाल करने लगे हैं। वह नहीं चाहते कि उनकी पोती के साथ कुछ ऐसा वैसा हो। इसीलिए वह साए की तरह अपनी पोती के साथ लगे रहते हैं। थोड़ी धूप सहनी पड़ती है फिर भी उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है।

Case study three

अशोक नगर में रहने वाली रूमा वर्मा अपनी बेटी को बाहर तभी निकलने देती हैं जब वह खुद बाहर निकलें। उसे फ्रेंड्स के साथ खेलने की परमिशन भी घर तक ही सीमिति है। बच्ची कई बार मां के इस बिहैवियर पर रीएक्ट करती है। इसके बाद भी रूमा रीएक्ट नहीं करती बल्कि उसे समझा-बुझाकर शांत करने की कोशिश करती हैं. 

खुद ले ली सारी जिम्मेदारी

बच्ची चाहे जितनी छोटी क्यों न हो, पैरेंट्स अब उसके साथ किसी भी तरह की अनहोनी न हो, इसको लेकर एलर्ट हो गए हैं। स्कूलों में इसका इफेक्ट खासतौर पर दिखने लगा है। बच्ची को घर से स्कूल छोडऩे की जिम्मेदारी हो या फिर स्कूल से घर ले जाने का काम, पैरेंट्स अब ये काम खुद करने लगे हैं। बच्ची को उनके लिए एक पल भी अकेला छोडऩा गंवारा नहीं है। अभी हाल ही में बच्चियों के साथ लगातार हुई कई घटनाओं ने उन्हें बच्चियों की सुरक्षा को लेकर एलर्ट होने पर मजबूर कर दिया है। न चाहते हुए भी वे बच्चियों पर तमाम तरह के बाउंडेशन लगाने का मजबूर हो गए हैं।

छिन रहा बचपन

हैवानियत की सारी हदों को पार करते हुए नन्हीं बच्चियों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है। इस तरह की घटनाओं ने पैरेंट्स के दिलोदिमाग में इतना खौफ भर दिया है कि वे बच्चियों की सुरक्षा को लेकर उन्हें घरों में कैद करने को मजबूर हो गए हैं। घर से बाहर खेलने पर पाबंदी तो लगाई ही जा रही है। ट्यूशन के बाहर जाने पर भी रोक लगाया जा रहा है। कुछ पैरेंट्स खुद अपनी बच्चियों को पढ़ाने लगे हैं, तो कुछ घर में ही ट्यूटर लगा दिया है। पैरेंट्स की हर कोशिश है कि अधिक से अधिक समय तक उनकी बच्ची उनके आंखों के सामने रहे। या फिर ऐसी जगह रहे, जहां वह पूरी तरह से सुरक्षित हो।

Care का side effect

ये बात और है कि पैरेंट्स की इस केयर ने बच्चियों पर कुछ खतरा कम कर दिया है। लेकिन, इसके बदले पैरेंट्स और खुद उन बच्चियों को बहुत खुश चुकाना पड़ रहा है। पैरेंट्स का टाइम व पैसा बर्बाद हो रहा है तो बच्चियों की आजादी छिन गई है। उनकी फिजिकल एक्टिविटी जहां न के बराबर हो गई है वहीं सोशल इंटरेक्शन भी लगभग बंद सा हो गया है। साइकोलॉजिस्ट दीपक पुनेठा की मानें तो ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब बच्चों का पर्सनैलिटी डेवलपमेंट पूरी तरह बंद हो जाएगा। वे किताबी कीड़ा बनकर रह जाएंगे। लेकिन, मजबूर पैरेंट्स ये सब जानते व समझते हुए बच्चियों की सुरक्षा को लेकर घरों तक सीमित रखने को मजबूर हैं।

Parents रखें ख्याल

-बच्चों को अनावश्यक घर से बाहर भेजने से बचें

-पड़ोसी व रिश्तेदारों के साथ बहुत अधिक मिक्सअप न हों

-बच्चों के मामले में पड़ोसियों की एक्टिविटी पर नजर रखें 

-घर में आने वाले ट्यूटर, ड्राइवर व नौकर पर भी रहे नजर

-बच्चों के साथ एंज्वॉय करने के लिए निकाले खुद का टाइम

-बच्चों के साथ इस तरह मिक्स हों कि वह अपनी हर बात आपसे शेयर करें

-बच्चे कुछ बड़े हों तो उन्हें ह्यूमन बॉडी के बारे में भी बताएं

-उनके साथ डांट व पिटाई के बजाए फ्रेंडली बिहैव करें

-बच्चों में आदत डालें कि वे बाहरी लोगों के साथ मिक्सअप न हों

-स्कूल से लेकर घर तक बच्चों की एक्टिविटी पर भी ध्यान दें

कारण - 

-इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले मानसिक रूप से बीमार होते हैं

-अनएजुकेटेड होना भी इसका एक बहुत बड़ा कारण है. 

-सोसाइटी व कानून के प्रति लोगों में डर का खत्म होना

-लोगों में सामाजिक चेतना व नैतिक शिक्षा का अभाव 

-सोसाइटी में आधे अधूरे रूप में वेस्टर्न कल्चर की एंट्री 

-फैमिली मेंबर्स में एक दूसरे के प्रति दिल से जुड़ाव का कम होना

-लोगों में विलासिता के प्रति बढ़ता लगाव

लोगों पर आत्म अनुशासन नहीं रह गया है। यही कारण है कि वे एक पशु की तरह बिहैव कर रहे हैं। टीवी सीरियल्स व फिल्मों में परोसी जा रही अश्लीलता और सोसाइटी से खत्म होता डर इसका मेन कारण है। अधिक उम्र बीत जाने के बाद कामभावना का उत्पन्न होना एक आम बात है। लेकिन उसे कंट्रोल करना मानव की प्रवृत्ति होती है, जो खो देने वाला मानव एक पशु के समान हो जाता है। जिससे इस तरह की उम्मीद की जा सकती है. 

प्रो। दीपा पुनेठा, साइकोलॉजिस्ट