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KANPUR: आज के ट्रेंड में हर कोई पढ़ाई से जुड़ा है और जो नहीं जुड़ा है वो इससे जुडऩा चाहता है। कुछ किताबी नॉलेज से जुड़कर खुश रहता है तो कोई किताबों की दुनिया में खुद को अनकम्फर्टेबल महसूस करता है। ऐसे बच्चों की मदद करने के लिए अपना ड्रीम टैबलेट लेकर आए हैं श्रीकांत तलपड़ी और अपने इस ड्रीम टैबलेट को उन्होंने नाम दिया है चिंपल्स। ऐसे आया आइडिया चिंपल्स के फाउंडर श्रीकांत तलपड़ी अपने करियर की शुरुआत में सिलिकॉन वैली में काम करते थे। करीब 8-9 साल वहां काम करने के बाद उनके मन में अपने देश में पहुंचकर अपनी ही कम्युनिटी के लिए कुछ अच्छा करने का आइडिया आया। वह इंडिया में बच्चों के एजुकेशन सिस्टम को और हाईटेक बनाने को लेकर कुछ करना चाहते थे। हालांकि ये उनके लिए एक रिस्की टास्क था, लेकिन अपने पैशन को पूरा करने से वह पीछे नहीं हटे। वह यहां के बच्चों को टेक्नोलॉजी की हेल्प से लिट्रेट करना चाहते थे और इसके लिए वह पूरी तरह तैयार भी थे।

इस आइडिया के साथ की शुरुआत

इस आइडिया के साथ श्रीकांत इंडिया आ गए। उनका आइडिया यहां के उन बच्चों को लिट्रेट करना था जिनके लिए पढ़ाई आसान नहीं थी, लेकिन इन बच्चों तक भी एजुकेशन को पहुंचाने का श्रीकांत का तरीका थोड़ा डिफरेंट होने वाला था। उन्होंने सोच रखा था कि वह इसके लिए अपनी कंपनी में एक क्रिएटिव टीम रखेंगे, जो एक स्पेशल तरह का सॉफ्टवेयर डेवलप करेगी। इस स्पेशल सॉफ्टवेयर को वह कुछ टैबलेट्स में अपलोड कराएंगे और उन बच्चों तक पहुंचाएंगे। इन सॉफ्टवेयर की हेल्प से उनकी पढ़ाई का तरीका बच्चों के लिए इंट्रेस्टिंग और डिफरेंट होने वाला था।

ये था दूसरा बड़ा चैलेंज

अपने स्टार्टअप को लेकर श्रीकांत का विजन अब पूरी तरह से क्लियर हो चुका था, लेकिन उनके सामने अगली बड़ी चुनौती थी बच्चों तक पहुंचाने के लिए कई टैबलेट्स का इंतजाम करना। इसके लिए भी उनके पास एक नया आइडिया आया। उन्होंने विदेश से 35 डॉलर की कीमत पर ऐसे टैब्स कलेक्ट करने शुरू किए, जिनकी लाइफ कम से कम तीन साल की तो हो। ऐसे टैब्स पर उन्होंने उन सॉफ्टवेयर्स को अपलोड कराया, जो खास बच्चों के प्लेइंग इंट्रेस्ट को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। इस तरह उनका दूसरा बड़ा चैलेंज पूरा हुआ।

ऐसे रखा नाम चिंपल्स

श्रीकांत महात्मा गांधी के बहुत बड़े फॉलोवर हैं। इस मामले में भी उन्होंने उन्हीं को फॉलो किया। महात्मा गांधी की आइडियॉलजी थी कि हर काम को हद से हद सिंपल रखा जाए। अब श्रीकांत ने इस सिंपल के साथ चिंपैंजी के नाम को जोड़ दिया। चिंपैंजी का नाम उन्होंने इसलिए जोड़ा, क्योंकि हर काम को खेल के साथ करना उसका नेचर होता है। अब सिंपल और चिंपैंजी को मिलाकर बन गया नाम चिंपल्स।

एजुकेशन फील्ड में ऐसे अलग हैं ये औरों स

बच्चों को सॉफ्टवेयर पर फनी तरीके से पढ़ाई कराने का काम तो बहुत लोग करते हैं, लेकिन चिंपल्स और से अलग है क्योंकि इनका एम गांवों के उन बच्चों तक पहुंचना है जो अभी लिखना-पढऩा जानते ही नहीं हैं। ऐसे बच्चों को खेल के साथ पढ़ाना श्रीकांत के लिए अगला बड़ा चैलेंज था। वैसे अब वह इंडिया के 40 गांवों तक पहुंच चुके हैं। अब उन्हें इसके आगे अपने कदम बढ़ाने हैं।

ऐसा होता है चिंपल्स के टैब्स पर स्टडी का फंडा

अभी तक इनकी टीम के बनाए गए सॉफ्टवेयर्स में बच्चों की पढ़ाई के लिए कई इंट्रेस्टिंग तरीके दिए चुके हैं। जैसे स्क्रीन पर कलरफुल लैटर्स देना और बच्चों से उन लैटर्स को डेकोरेट करने के लिए कहना। इसके बाद बच्चों को स्क्रीन पर कुछ पपेट्स और मॉनस्टर्स दिए जाते हैं। बच्चों को इनपर इनकी आंखें और मूंछें वगैरह लगानी होती हैं। इसके बाद इन्हीं मॉनस्टर्स और पपेट्स से बच्चे टैब्स पर कई तरह के एजुकेशनल और फनी गेम भी खेलते हैं।

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ऐसी है फ्यूचर प्लानिंग

एक सर्वे में डेवलपिंग कंट्रीज में सॉफ्टवेयर की मदद से बच्चों को पढ़ाने की राह पर 198 इंस्टीट्यूशंस की एंट्री में टॉप 5 को बेस्ट सलेक्ट किया गया। इंडिया से चिंपल्स को इसमें टॉप 5 में सलेक्ट किया गया। अपने ड्रीम को इंडिया के 40 गांव तक पहुंचाने वाले श्रीकांत का सपना अब अपने इस प्रोजेक्ट की हेल्प से देश के हर एक बच्चे को लिट्रेट होते देखना है।

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