यह प्रक्षेपण चीन की उस बीदो प्रणाली का हिस्सा है जिसकी शुरुआत पिछले साल दिसंबर में 13 उपग्रहों के प्रक्षेपण के साथ हुई थी। इस प्रणाली का मकसद है कि चीन धीरे-धीरे अमरीका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस की जगह 'लोकेशन' जानने के लिए बीदो या कॉंम्पस प्रणाली का इस्तेमाल करे।

यदि वह कामयाब रहता है तो अमरीका और रूस के बाद दुनिया में चीन मात्र तीसरा देश होगा जो अपना ऐसा तंत्र बना पाएगा। इस तंत्र के माध्यम से चीन पूरी दुनिया पर नजर भी रख सकता है लेकिन इसके लिए उसे 2020 तक ऐसे 35 उपग्रहों के प्रक्षेपण की जरूरत होगी। चीन का मानना है कि बीदो तंत्र के पूरा हो जाने से उसकी अमरीका के जीपीएस पर निर्भरता खत्म हो जाएगी।

कॉम्पस

बीदो को कॉम्पस नाम से भी जाना जाता है और इसका विकास नागरिक और सैन्य दोनों मकसदों के लिए किया जाएगा। दोनों उपग्रहों का प्रक्षेपण सोमवार को दक्षिण पश्चिम प्रांत सिचुआन के शिचांग प्रक्षेपण केंद्र से किया गया।

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक नया उपग्रह 'लांग मार्च-3ए' रॉकेट के जरिए छोड़ा गया। एजेंसी के मुताबिक ये दोनों उपग्रह बीदो यानी कॉम्पस तंत्र की उत्कृष्टता में बढ़ोत्तरी करेंगे।

रूस, यूरोप के तंत्र

आंशिक रूप से ही सही, लेकिन बीदो तंत्र के विकसित होने के साथ ही चीन अब अमरीका और रूस के बाद दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा जिसके पास खुद का नेवीगेशन तंत्र है।

रूस के ग्लोनास उपग्रह तंत्र की कक्षा में 31 उपग्रह हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 24 ही काम कर रहे हैं। अब रूस दस अरब डॉलर के खर्च से 2020 तक 30 और उपग्रहों को चालू करने के प्रयास कर रहा है।

यूरोप भी गेलीलियो नाम से अपना नेवीगेशन तंत्र बना रहा है जिसने पिछले साल अक्तूबर में अपने दो उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था। इनकी साल 2015 तक 26 गेलीलियो उपग्रह प्रक्षेपित करने की योजना है।

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