एक प्रस्ताव के मुताबिक सिंध प्रांत के बच्चों को चीनी सीखनी होगी- जब वे छठी कक्षा में पहुँच जाएँगे यानी 10 या 11 साल की उम्र में। ये प्रस्ताव दो साल बाद लागू होगा।

शिक्षा के मुद्दे पर पाकिस्तान में प्रांतीय सरकारों के पास कई अधिकार होते हैं। इसमें पाठ्यक्रम तय करना और बजट का बटवारा शामिल है।

सिंध में अधिकारियों का कहना है कि चीनी सीखना ज़रूरी बनाने में पाकिस्तान-चीन के गहरे रिश्ते झलकते हैं और इससे आने वाली पीढ़ियों को फ़ायदा होगा।

बीबीसी संवाददाता के मुताबिक इस नए क़दम पर मिलीजुली प्रतिक्रिया आई है। कुछ लोगों का मानना है कि ये सही दिशा में उठाया गया क़दम है क्योंकि चीनी भाषा का ज्ञान होने से पाकिस्तान चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था में भागीदार बन सकेगा।

लेकिन बहुत से लोग इसे लेकर आशंकित भी हैं। इन लोगों का कहना है कि प्रांतीय सरकार ने ये फ़ैसला राजनीति के आधार पर लिया है न कि शिक्षा की ज़रूरतों को देखते हुए।

कुछ विशेषज्ञों की ये भी आशंका है कि चीनी सिखाने के फ़ैसले को लागू करवाना मुश्किल होगा और देश के सीमित शैक्षणिक संसाधनों पर इसका असर पड़ेगा।

फ़िलहाल पाकिस्तान की आधी से ज़्यादा आबादी पढ़-लिख नहीं सकती। पिछले साल आई बाढ़ के कारण सिंध के स्कूलों पर ख़ासतौर पर बुरा असर पड़ा है। कई स्कूल नष्ट हो गए हैं।

अगर पाकिस्तान में कक्षाओं में चीनी भाषा सिखानी है तो इसके लिए अच्छे ख़ास निवेश की ज़रूरत है- शिक्षकों के रूप में और शिक्षण सामग्री के रूप में। आशंका ये है कि इससे पहले से ही कम संसाधनों पर और दबाव पड़ेगा।

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