RANCHI : सीआईडी इंस्पेक्टर उमेश ठाकुर और उनकी पत्‍‌नी माधुरी ठाकुर की दरिंदगी और हैवानियत ने इंसानियत को तार-तार कर डाला है। इन दोनों पर एक 12 साल की बच्ची को नौ महीनों तक गरम चाकू और सलाखों से दागते और बाल नोच डालने का आरोप है। इंस्पेक्टर दंपती की बेरहमी से बच्ची बुरी तरह घायल है। उसके शरीर से जिस कदर पस निकल रहा है, उसे देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

ऐसे सामने आया मामला

यह मामला तब सामने आया जब बच्ची के इस प्रताड़ना की सूचना किसी व्यक्ति ने चाइल्डलाइन के हेल्पलाइन नंबर 1098 पर दी। सूचना मिलने पर चाइल्डलाइन ने इसकी जानकारी श्रम विभाग की रेस्क्यू टीम और सीडबल्यूसी को दी। इसके बाद रेस्क्यू टीम इंस्पेक्टर के घर पहुंचकर बच्ची को रेस्क्यू किया गया। इसके बाद बच्ची को लेकर टीम नामकुम थाना पहुंची और मामला दर्ज कराया। फिलहाल बच्ची को सीडब्ल्यूसी कोर्ट में प्रस्तुत करने के बाद शेल्टर होम भेज दिया गया है।

जेल भेज दो, वरना मार डालेंगे

बच्ची ने सिसक-सिसक कर बताया कि इंस्पेक्टर दंपति उसे चाकू और सलाखे गरम कर शरीर के हर एक कोने में जलाया। चीखने पर मुंह बंद कर दिया जाता था। बाल खींच-खींच कर नोचे और डंडे से पीटा जिससे सिर भी फट गया। बच्ची ने रेस्क्यू टीम से कहा है कि इन्हें जेल भेज दो वरना हमे मार डालेंगे।

बच्ची के ब्यान पर केस

नामकुम थानेदार आरके दूबे ने बताया कि बच्ची के ब्यान के आधार पर इंस्पेक्टर उमेश ठाकुर और उसकी पत्‍‌नी माधुरी ठाकुर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है।

दलाल ने बेचा था बच्ची को

बच्ची गुमला जिले के सिसई हेठेटोला की रहने वाली है। उसे लगभग नौ महीने पहले गुमला के ही एक युवक ने लाकर सीआइडी इंस्पेक्टर उमेश ठाकुर के हाथों बेच दिया था। इसके एवज में उसे मोटी रकम भी दी गई थी। सीडब्ल्यूसी ने बच्ची को बेचने वाले युवक के खिलाफ भी मामला दर्ज कराने का निर्देश दिया है।

सीआईडी में पोस्टेड है इंस्पेक्टर

आरोपी उमेश ठाकुर सीआइडी में पदस्थापित है। पत्‍‌नी माधुरी ठाकुर ने बताया कि फिलहाल ट्रेनिंग के लिए वे हैदराबाद गए हैं। पत्‍‌नी का कहना था कि बच्ची उसके किसी रिश्तेदार की बच्ची है। उसके परिजनों की सहमति से उसे घर पर रखा था। इंस्पेक्टर दंपति अमेठिया नगर स्थित गुलमोहर अपार्टमेंट के चौथे तल्ले में रहते हैं।

पैरवी के लिए आते रहे कॉल्स

बच्ची को रेस्क्यू किए जाने के बाद सीडब्ल्यूसी के एक अधिकारी को मामले का दबाने के लिए कई बड़े अधिकारियों के फोन कॉल्स आते रहे। फोन के जरिए दबाव बनाया जा रहा था कि मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई जाए। इसी प्रकार श्रम विभाग और चाइल्डलाइन के रेस्क्यू टीम के अधिकारियों के फोन भी पैरवी के लिए घनघनाते रहे।