ब्रिटिश हुकूमत के दौरान छावनी परिषद स्थित अस्पताल क्रांतिकारियों और आमजनों के इलाज का मुख्य केंद्र था. अस्पताल परिसर और स्कूल की दीवार से सटे विशाल बरगद के पेड़ के नीचे अंग्रेज डॉक्टरों द्वारा स्वास्थ्य कैम्प लगाया जाता था, जहां बिना किसी भेदभाव इलाज किया जाता था. इसके अलावा स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख गतिविधियों का गवाह भी बरगद का यह वृक्ष है. इस विशाल पेड़ की छांव में विराजमान हथेरा डीह बाबा को लेकर भी तमाम किवंदंतियां हैं.

दो सौ साल से ज्यादा है पुराना

ब्रिटिशकाल के दौरान सन् 1811 में छावनी अस्पताल का निर्माण हुआ था. उसके पहले से विशाल बरगद का पेड़ मौजूद है. सदर निवासी संजय कुमार ने बताया कि उनके दादा बताते थे कि ब्रिटिशकाल में इसी पेड़ के नीचे अंग्रेज डाक्टरों द्वारा अक्सर स्वास्थ्य कैम्प लगाया जाता था, जहां मुफ्त में लोगों का इलाज होता था. क्षेत्रीय नागरिकों के अलावा दूर से भी लोग इलाज कराने के लिए आते थे. पहचान छिपाकर क्रांतिकारी भी इलाज कराने के लिए आते थे. अंग्रेजों द्वारा नाम व पता पूछने पर सदर का बताते थे.

पेड़ की देखरेख करता था कल्लू वाल्मीकि

बरगद का वृक्ष आजादी की दास्तां का गवाह भी है. छावनी अस्पताल में सदर निवासी कल्लू वाल्मीकि सबसे छोटा कर्मचारी था. देखरेख के अभाव में यह पेड़ सूखने लगा, जिस पर कल्लू की नजर पड़ी. अंग्रेज डाक्टरों की इजाजत लेकर कल्लू ने पेड़ की खूब सेवा की. इसके चलते पेड़ फिर हरा-भरा हो गया. पेड़ के नीचे छावनी इलाके के हथेरा डीह बाबा का मंदिर भी है. हिन्दू परम्परा में बरगद के विशाल वृक्ष को पूज्य माना जाता है. मान्यता है कि इसके पूजन और इसकी जड़ में जल देने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसी पेड़ के नीचे हथेरा बाबा का मंदिर है. बाबा की पूजा छावनी क्षेत्र में आने वाले 52 गांवों के लोग करते थे. कल्लू वाल्मीकि के सपने में डीह बाबा आए और उन्होंने मंदिर बनाने को कहा. कल्लू ने आसपास के लोगों और अंग्रेज डॉक्टरों से सहयोग राशि लेकर मंदिर का निर्माण कराया. अस्पताल का हर कर्मचारी इनके दर्शन के बाद ही ड्यूटी शुरू करता है. बाबा हर मुराद पूरी करते हैं. शादी के बाद नव जोड़े यहां दर्शन करने जरूर आते हैं.