खरना के साथ शुरू होगा निर्जल व्रत  

नहाए-खाए के बाद दूसरे दिन थर्सडे को खरना के साथ निर्जल व्रत शुरू हो जाएगा। खरना में व्रती महिलाएं मिट्टी का चूल्हा (ईंट का बना) बनाती हैं। शाम के समय इसी चूल्हे पर रसियाव (चावल, दूध और गन्ने के रस से बनी एक प्रकार की खीर) और रोटी देसी घी लगी हुई बनातीं हैं। इसके बाद पूजन करती हैं और रोटी व रसियाव को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती हैं। खरने के दूसरे दिन फ्राइडे से निर्जल व्रत शुरू हो जाएगा। शाम को डूबते सूर्य को अघ्र्य देने के साथ व्रती महिलाएं विधि विधान से पूजा अर्चन करेंगी। फिर सैटर्डे मॉर्निंग उगते सूर्य को अघ्र्य देकर पूजा संपन्न कर पारन (व्रत तोडऩा) करेंगी।

संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत

सबसे अनूठे इस त्योहार में उगते सूरज के साथ-साथ डूबते सूरज की भी पूजा होती है। महिलाएं यह पूजा संतान प्राप्ति के साथ उनकी लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। मान्यता है कि डाला और सूप संतान अपने सिर पर रखकर पैदल ही घाट तक ले जाते हैं और मां पीछे से हाथ में जल लेकर छठ गीत गाते हुए चलती है। इस त्योहार में परिवार का हर व्यक्ति हिस्सा लेता है।

सूप और बांस का डाला

छठ पूजा में बांस के सूप और डाला में पूजन सामग्री रखी जाती है। इसके लिए मार्केट में बांस की सूप और डाला सज गए हैं। लेकिन आधुनिकता के इस दौर में बांस के बने सूप की जगह अब पीतल और स्टील के सूप यूज किए जा रहे हैं। मॉर्केट में पीतल के सूप 295 रुपए से लेकर 595 रुपए, जबकि स्टील का सूप 375 रुपए में अवेलबल है।

घाट पर बन रही बेदी

छठ पूजा नदी किनारे घाट पर होती है। इसके पीछे मान्यता है कि महिलाएं सूरज डूबने और उगने से पहले घाट किनारे नदी के पानी में खड़ी होकर पूजा करती हैं। सूर्य डूबने और उगने के समय उन्हें दूध या गंगा जल से अघ्र्य देकर सूरज भगवान से मन्नत मांगती र्हं। इसके लिए घाट के किनारे बेदी बनाने का काम भी शुरू हो गया है। यहां भी आधुनिकता हावी होती दिख रही है। वेदी को झालर, बल्ब लगाकर भी सजाया जाता है। रात भर रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। गोरखपुर में लाखों लोग छठ पूजा में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इसके लिए प्रशासन और पुलिस भी पूरी तरह से मुस्तैद है।