- ग्रामीण परमिट पर शहर में दौड़ रहे आटो बिगाड़ रहे ट्रैफिक व्यवस्था

- शहर की परमिट सीमित होने के कारण ग्रामीण परमिट पर धड़ल्ले से निकाली जा रही गाडि़यां

गांव से आने वाली हवाएं भले ही शहर का मौसम अच्छा कर दें मगर गांव से आने वाले आटो इस वक्त शहर के ट्रैफिक के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द हैं। शहर में आटो के परमिट सीमित होने के कारण ग्रामीण परमिट पर गाडि़यां निकालकर धड़ल्ले से शहर में चलाई जा रही हैं। पुलिस और आरटीओ के अभियान में पिछले दिनों ग्रामीण परमिट के कई आटो शहरी क्षेत्र में फर्राटा भरते पकड़े गए। शहर की यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए प्रशासन इनके खिलाफ भी कारगर कार्रवाई के मूड में है।

टैक्स बराबर मगर मुनाफा चोखा

किसी भी आटो या सवारी गाड़ी की खरीद के साथ ही उसका टैक्स और परमिट का धनराशि जमा करनी पड़ती है। ग्रामीण और शहरी परमिट का टैक्स बराबर है। मगर शहरी क्षेत्र में 5500 से ज्यादा परमिट नहीं दिए जा सकते। इस दशा में आटो मालिक ग्रामीण परमिट लेते हैं और गाडि़यों को शहरी क्षेत्र में चलवाते हैं। इसका कारण किराया भी है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के किरायों में भी दोगुने से ज्यादा का अंतर है।

शहरी सीमा से बाहर रहने का है नियम

आरटीओ के नियमों के मुताबिक, ग्रामीण परमिट वाले वाहन 5 केंद्रों राजातालाब, बाबतपुर, चौबेपुर, रामनगर और चोलापुर के विभिन्न रूटों पर चल सकते हैं। यहां से 16 किमी की परिधि में यह वाहन शहरी सीमा से बाहर कहीं भी जा सकते हैं। मगर वाहन रोड पर उतरने के साथ ही धड़ल्ले से इस नियम की अनदेखी शुरू हो जाती है। कार्रवाई के अभाव और घूसखोरी के चलते इनका धंधा खूब फलफूल रहा है।

शहर में यहां चलते हैं यह वाहन

ग्रामीण परमिट वाले यह आटो शहर के बाहरी क्षेत्रों में खूब चल रहे हैं। डीएलडब्ल्यू, चितईपुर, सुंदरपुर, लंका, मंडुवाडीह, फुलवरिया, कैंट, पांडेयपुर, शिवपुर और सारनाथ क्षेत्रों में यह आटो खूब सवारियां ढो रहे हैं। कार्रवाई के डर से यह मैदागिन, गोदौलिया और सिगरा जैसे क्षेत्रों में नहीं आते हैं। ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ का अभियान शुरू होते ही यह वाहन ग्रामीण क्षेत्र में लौट जाते हैं।

दौड़ रहे कई 'बुजुर्ग'

नियमों के मुताबिक, किसी भी आटो को जारी होने वाला परमिट पांच साल के लिए होता है। फिटनेस के बाद इस परमिट की अवधि दो साल और बढ़ाई जा सकती है। सात साल के बाद हर डीजल और पेट्रोल चलित आटो को ग्रामीण परमिट देकर शहर के बाहर कर दिया जाता है। मगर शहर की सड़कों पर गौर करें तो ऐसे तमाम 'बुजुर्ग' आटो दौड़ रहे हैं जो जिनकी उम्र सात साल से काफी ज्यादा है।

कमिश्नर हैं सख्त, कार्रवाई के दिए आदेश

शहर की चरमराई यातायात व्यवस्था को लेकर कमिश्नर काफी सख्त हैं। पिछले दिनों बैठक के दौरान उन्होंने आरटीओ और ट्रैफिक विभाग के अफसरों को शहर में दौड़ रही गांव की गाडि़यों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए। अभियान एक बार चलाया भी गया मगर अभी कारगर अभियान की जरूरत है।

बयान

शहर में ग्रामीण परमिट वाले आटो की काफी शिकायतें हैं। इनके खिलाफ अभियान भी चलाया गया है। जल्द ही एक बार फिर कारगर अभियान की शुरुआत होगी। शहर का ट्रैफिक सुधारने के लिए यह कार्रवाई बेहद जरूरी है।

सुरेशचंद्र रावत, एसपी ट्रैफिक

फैक्ट फाइल

- 5500 आटो का परमिट है शहरी क्षेत्र में

- 10,000 से ज्यादा आटो दौड़ रहे शहरी क्षेत्र में

- 16,200 रुपये है आटो का रजिस्ट्रेशन शुल्क

- 1600 रुपये है परमिट फीस पांच साल के लिए

- 1800 रुपये जमा कराया जाता है वार्षिक टैक्स

- 600 रुपये है वार्षिक फिटनेस टेस्ट की फीस