Vehicle Claim के मामले अधिक
व्हीकल इंश्योरेंस पॉलिसी लोग इस उम्मीद से लेते हैं कि कोई अनहोनी या दुर्घटना होने पर उन्हें फाइनेंशियल लॉस न हो। क्लेम के जरिए उन्हें प्रॉपर अमाउंट मिल जाएगा, पर फस्र्ट और सेकेंड फोरम में केसेज की कंडीशन कुछ और ही बयां कर रही है। कंपनियां व्हीकल का इंश्योरेंस कर रही हैं, मगर क्लेम के नाम पर मामला उलझा देती हैं। जवाब में कंज्यूमर्स को फोरम का सहारा लेना पड़ रहा है। फिलहाल फोरम में हेल्थ, एजुकेशन, बिल्डर्स व अन्य के 500 से अधिक मामले दर्ज हैं। जानकर हैरानी होगी कि इनमें से 200 मामले तो केवल व्हीकल क्लेम के ही हैं।

Companies करती हैं surveys
क्लेम करने पर इंश्योरेंस कंपनियां बकायदा मौके पर जाकर सर्वे करती हैं। इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि डॉक्यूमेंट्स में अगर कोई गड़बड़ी नहीं है, तो 7 दिन के अंदर क्लेम का अमाउंट मिल जाता है। व्हीकल जलने या चोरी होने की स्थिति में उसकी कॉस्ट का 5 परसेंट काट लिया जाता है। बाकी 95 परसेंट अमाउंट व्हीकल ओनर को दे दिया जाता है। थर्ड और फस्र्ट पार्टी इंश्योरेंस में करीब-करीब सेम रूल्स फॉलो किए जाते हैं।

यहां करें complain
क्लेम के बाद भी इंश्योरेंस का पैसा नहीं मिलता है तो कस्टमर इंश्योरेंस कंपनी की ग्रिवांस सेल में कंप्लेन दर्ज करा सकते हैं। ग्रिवांस सेल में सुनवाई नहीं होने पर न्यूट्रल सेल या फिर इंश्योरेंस रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी (आईआरडीए) में कंप्लेन दर्ज कराई जा सकती है। इसके बावजूद दिक्कत होने पर कंज्यूमर फोरम में कंप्लेन की जा सकती है।

पॉलिसी कराते समय ध्यान दें
- एग्रीमेंट के ऑप्शन ध्यान से पढ़ें।
- पॉलिसी के बारे में प्रॉपर जानकारी लें।
- पॉलिसी फॉर्म खुद पढ़ें और प्रीमियम का ध्यान दें।
- डॉक्यूमेंट की कॉपी सेफ रखें।

क्लेम करते समय
- वाहन के साथ अनहोनी होने पर 24 घंटे के अंदर इंश्योरेंस कंपनी को सूचना देनी चाहिए।
- विशेष परिस्थितियों में 7 दिनों के अंदर इंफॉर्मेशन दे देनी चाहिए।
- पॉलिसी बांड और ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए।
- टूट-फूट की रिपेयरिंग का बिल होना चाहिए।
- किसी की डेथ होने की स्थिति में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और एफआईआर की कॉपी अपने पास रखें।
- क्लेम करते समय इंश्योरेंस कंपनी को जो बातें बता रहे हैं, उन्हें लास्ट तक फॉलो करें।