- देवदीपावली के बाद घाटों की सफाई के नाम पर गंगा में डाल दी जाती है ढेरों गंदगी

-नदी के सेहत को दुरुस्त रखने के लिए बदलना होगा सफाई का तरीका

VARANASI

देव दीपावली पर गंगा घाट लाखों दीयों की रोशनी से नहायेंगे। बनारस के इस सबसे बड़े पर्व को यादगार बनाने के लिए देवदीपावली से जुड़े लोग जीन जान से जुटे हैं। दीया, तेल, बाती सबका इंतजाम हो रहा है। इस उत्सव का उद्देश्य मां से सम्बोधित की जाने वाली गंगा नदी के संरक्षण का संदेश भी देना है। लेकिन देवदीपावली के अगले ही दिन ये दीये और उसके साथ ढेरों गंदगी गंगा में चली जाएगी और पहले से प्रदूषण की मार झेल रही गंगा और गंदी होगी। इसका असर इसमें रहने वाले जीव-जंतुओं के साथ ही स्नान करने वालों पर भी पड़ेगा। नदी के सेहत पर नजर रखने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि आप भले ही देवदीपावली पर लाखों दीये जलायें लेकिन नदी की सेहत का ध्यान जरूर रखें।

सफाई के नाम पर गंदगी

गंगा के प्रति लोगों की अपार आस्था है। दुनिया की नजरों में बसने वाले घाटों को आकर्षक बनाने के लिए कवायद चलती रहती है। वहीं इसके उलट आस्थावान ही गंगा में गंदगी करते हैं। घाटों की सफाई के नाम पर गंगा से निकली सारी गंदगी उसे लौटा देते हैं। माल-फूल से पूजा-पाठ का सारा सामान गंगा में डाल देते हैं। ऐसे ही देवदीपावली के अगले दिन घाटों की सफाई करने के नाम पर रात में जले दीयों को गंगा में ही डाल दिया जाता है। इसके साथ जली बाती और दीयों में बचा हुआ तेल भी नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। तेल से डूबे घाटों को पानी से साफकर गंदगी गंगा में बहा दी जाती है। इस तरह लाखों दीये गंगा किनारे समा जाते हैं।

होता है नुकसान

पिछले कुछ सालों में तमाम वजहों से नदी की संरचना में बड़ा परिवर्तन हुआ है। बालू खनन नहीं होने से नदी में लगातार बालू की मात्रा बढ़ती जा रही है। वहीं घाट किनारे गंदगी डालने से भी संरचना में बड़ा प्रभाव हो रहा है। जब लाखों दीये गंगा में पहुंचेंगे तो नदी के किनारों को प्रभावित करेंगे। साथ ही इन दीयों के साथ आये तेल आदि नदी के पानी को गंदा करेंगे। दीयों का असर कुछ दिनों नहीं बल्कि लम्बे समय तक रहेगा। एक बार गंदगी नदी में गयी तो निकालना भी आसान नहीं होगा।

बहायें नहीं उठायें

-गंगा के लिए मनाये जा रहे उत्सव की वजह नदी का गंदा ना हो यह सबकी जिम्मेदारी है।

-खासतौर पर वो लोग जो देवदीपावली का आयोजन घाटों पर करते हैं उनकों घाटों की सफाई का ध्यान भी रखना है।

-जरूरी है कि वो दीयों को गंगा में ना डालकर उसे एक जगह पर इकट्ठा करें

-दीयों में थोड़ा बहुत तेल रह जाता है तो उसे भी कहीं अलग कलेक्ट कर लें

-दीयों को कहीं ले जाकर जमीन में दफन कर दिया जाये

अगर दीयों को क्रस करके चूरा कर दिया तो उसका इस्तेमाल किसी बर्तन आदि बनाने में किया जा सकता है

-घाटों पर बिखरे तेल आदि को पानी से गंगा में बहाने की बजाय झाड़ू व गीले कपड़े से साफ कर देना बेहतर है

नदी में किसी तरह की गंदगी जाना उसकी सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है। इससे नदी की संरचना पर असर पड़ता है। जिसकी वजह से उसका बहाव प्रभावित होता है साथ ही उसके जलीय जन्तु भी जीवन संकट में पड़ जाता है।

प्रो। यूके चौधरी

गंगा में पहुंचने वाला तेल आदि उसके इको सिस्टम को डिस्टर्ब करता है। जिसकी वजह से पानी में मौजूद जंतु और वनस्पति का जीवन प्रभावित होता है। नदी की खुद जिंदा रहने के लिए उसमें जीव-जंतुओं का होना जरूरी है

प्रो। शांतनु पुरोहित, पर्यावरणविद्