83 लाख रुपये में बनी थी यह ऐतिहासिक धरोहर

चार मंजिला अद्र्ध गोलाकार संसद भवन को चमकाने की यह पहल उस समय शुरू की गई है, जब उसकी बाहरी दीवारों पर लगे पत्थर प्रदूषण और धूप के चलते बदरंग होने लगे हैं। मौजूदा संसद भवन का निर्माण कार्य वैसे तो वर्ष 1921 में शुरू किया गया था, लेकिन यह छह वर्ष बाद 1927 में बनकर तैयार हुआ था। तब इस ऐतिहासिक धरोहर को बनाने की लागत 83 लाख रुपये आई थी।

भाप से म‍िलेगी संसद भवन को चमक,इन तरीकों से भी होती हैं ऐत‍िहास‍िक इम‍ारतों की सफाई

एएसआई और इंटेक की देखरेख में

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) और इंटेक की देखरेख में संसद भवन को चमकाने का यह काम वैसे तो शुरू हो गया है, लेकिन इस काम को पूरा होने में लंबा समय लगेगा। यह इसलिए क्योंकि संसद सत्र के दौरान यह काम बंद रहेगा। ऐसे में जब खाली समय मिलेगा, तभी काम होगा। संसद भवन को पुरानी चमक में वापस लौटने के अभियान में जुटे इंटेक से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि फिलहाल वेपर तकनीक के पहले चरण का काम पूरा कर लिया गया है। इसके तहत संसद भवन के सभी 127 खंभे और बाहरी दीवारों पर लगे लाल पत्थरों को चमका दिया गया है। अगले चरण में भवन के बाकी बचे बाहरी हिस्से और अंदर के हिस्से को साफ किया जाएगा। इसके अलावा भवन में लगी कई खास पेंटिंग और टाइलों को भी संरक्षित किया जाएगा।

भाप से म‍िलेगी संसद भवन को चमक,इन तरीकों से भी होती हैं ऐत‍िहास‍िक इम‍ारतों की सफाई

नियमों का कड़ाई से पालन

इंटेक से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक यह काम कब तक पूरा होगा, यह बता पाना मुश्किल है, क्योंकि यह काम तभी होगा, जब संसद भवन खाली मिलेगा। वैसे भी यह एक बार में कम से कम एक-डेढ़ महीने ही खाली मिल पाता है। उनका कहना है कि तकनीक के तहत पानी को वाष्प बनाकर एक विशेष तरह के साबुन की मदद से निर्धारित प्रेशर पर पत्थरों को डाला जाता है। इससे पत्थरों की धुलाई के साथ एक खास तरह की कोटिंग भी होती है। इस पूरे अभियान का जो सबसे अहम पहलू है, वह यह है कि इस कामकाज से भवन का कोई भी हिस्सा खराब या क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए। इसके लिए अफसरों की एक टीम हर दिन के कामकाज को बारीकी से जांचती है। हेरिटेज भवन होने के चलते सभी नियमों का कड़ाई से पालन किया जाता है।

भाप से म‍िलेगी संसद भवन को चमक,इन तरीकों से भी होती हैं ऐत‍िहास‍िक इम‍ारतों की सफाई

ये क्लीनिंग टेक्नीक भी हैं बेहतर

TORC System

ऐतिहासिक इमारतों की सफाई के लिए टॉर्सी सिस्टम बिल्कुल फिट बैठता है। ईंटों, संगमरमर, कंक्रीट, पत्थर और लकड़ी की सफाई के लिए यह सिस्टम बेहतर माना जाता है। यह सिस्टम से घर्षण सामग्री पर निर्भर नहीं होता है। बिना दबाव के इससे सफाई की जा सकती है। इससे छोटे-छोटे कीड़े व धूल साफ हो जाती है। इसके अलावा पेंट अवशेषों और तेल आधारित पेंट हटाने, कार्बन सल्फोन को हटाने के लिए इस क्लीनिंग टेक्नीक का सहारा लिया जाता है।  

भाप से म‍िलेगी संसद भवन को चमक,इन तरीकों से भी होती हैं ऐत‍िहास‍िक इम‍ारतों की सफाई

DOFF System

डॉफ सिस्टम भी सफाई के लिए यूज की जाने वाली एक बेहतर क्लीनिंग टेक्नीक है। डॉफ प्रणाली का उपयोग रंग और तेल के कारण लगे मुश्किल दाग को छुटाने के लिए किया जाता है। यह सफाई प्रणाली उच्च तापमान में भाप के बल पर होती है। जब तापमान काफी ज्यादा होता है तो यह काफी अच्छे से काम करता है। गर्म पानी की हल्की धार के साथ दीवारें अच्छे से साफ हो जाती हैं। सफाई की दूसरी तकनीकों की अपेक्षा इसे ज्यादा सहूलियत भरा माना जाता है।

story by अरविंद पांडेय, नई दिल्ली

 

National News inextlive from India News Desk