यूपी बोर्ड एग्जाम्स के लिए आई आंसर कॉपीज में कोड गायब

बोर्ड के इस कदम नकल माफियाओं की होगी चांदी

BAREILLY: माध्यमिक शिक्षा परिषद, इलाहाबाद का एक कदम डिस्ट्रिक्ट के सभी नकल माफियाओं के लिए सौगात लेकर आया है। यूपी बोर्ड एग्जाम्स के लिए जो आंसर कॉपीज भेजी गई हैं, उन पर से बोर्ड ऑफिस ने इस बार कोडिंग व्यवस्था गायब कर दी है। इस कदम से तो नकल माफियाओं की बांछें खिल गई हैं। हालांकि इस बात की खबर डिस्ट्रिक्ट के अधिकारियों को नहीं है या फिर यूं कहें वे इसका खुलासा करने से बच रहे हैं। अपने कथन में उन्होंने इस बात से साफ इंकार किया है। लेकिन सोर्सेज की मानें तो इस बार बिना कोडिंग के ही कॉपीज भेजी गई हैं। बोर्ड के इस कदम से एक तरफ जहां कॉफियों की हेरा-फेरी की संभावना ज्यादा प्रबल हो गई है, वहीं दूसरी तरफ नकलविहीन परीक्षा कंडक्ट कराने की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

खूब चलती है धांधली

यूपी बोर्ड एग्जाम्स का हाल किसी से छिपा नहीं है। डिपार्टमेंट की लापरवाही तो रहती ही है, जिसका फायदा नकल माफिया भी खूब उठाते हैं। कॉपियों की अदला-बदली, सेंटर से बाहर कॉपियां ले जाकर आंसर लिखवाना, पुरानी कॉपियों पर एग्जाम दिलाना, सेटिंग के बल पर कॉपियां बाद में जमा कराना समेत मास चीटिंग के सारे फंडे अपनाए जाते हैं। समय-समय पर इन खामियों को खबरों के माध्यमों से खूब उछाला जाता भी है, लेकिन नकल माफियाओं के रसूख के चलते विभाग अक्सर इन खामियों की फाइल को निपटाने में लग जाते हैं।

दो वर्ष पहले हुई थी शुारू

आंसर कॉपी पर कोडिंग व्यवस्था कोई नई बात नहीं है। सीबीएसई, यूनिवर्सिटी, डिग्री कॉलेजेज समेत सभी प्रोफेशनल कॉम्पिटीशंस एग्जाम्स की आंसर कॉपी में कोडिंग की व्यवस्था होती है। यह कोडिंग कई प्रकार की होती हैं। यूपी बोर्ड में दो वर्ष पहले कोडिंग की व्यवस्था शुरू की गई थी। इस क्रम में पायलट प्रोजेक्ट के तहत कुछ डिस्ट्रिक्ट्स की इंटर कॉपीज में कोडिंग व्यवस्था लागू की गई। बरेली भी इसमें शामिल था। लास्ट ईयर बरेली के सभी सेंटर पर इंटर की कोडिंग वाली कॉपीज मुहैया कराई गई थी। इन पर सीरियल नम्बर भी था। इसके तहत हर कॉलेज को जो कॉपी मुहैया कराई गई थी उसका कोड नोट कर लिया जाता था। कोड से यह पहचानना आसान था कि कौन सी कॉपी किस कॉलेज को दी गई। इससे कॉपीज की हेरा-फेरी में काफी हद तक लगाम भी लगी।

बिना coding की आई copies

इस बार बोर्ड ऑफिस ने जो कॉपीज बरेली में पहुंचाई हैं, उनमें कोडिंग नहीं है। हमेशा जीआईसी को कलेक्शन सेंटर बनाया जाता है। वहीं पर कॉपीज डिस्ट्रिब्यूशन के लिए रखी गई हैं। डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन की मीटिंग के बाद ही कॉपीज डिस्ट्रिब्यूट कराई जाएंगी। सभी कॉपीज एक समान जैसे दिखती हैं। किसी भी कॉलेज को कोई भी कॉपी दी जा सकेगी। इसके लिए कलेक्शन सेंटर पर केवल यह नोट किया जाएगा कि किस कॉलेज को कितनी कॉपियां दी गई हैं। कोड है ही नहीं तो नोट करने का सवाल ही नहीं।

धांधली के पूरे चांस

कोडिंग खत्म होने के बाद कॉपियों में धांधली के पूरे चांस हैं। नकल माफिया अब नकल की गणित लगाने के लिए एक्टिव हो जाएंगे। सेंटर्स से कॉपियां पहले ही निकलवाई जा सकती हैं। उसे बाहर से लिखवा कर जमा किया जा सकता है। मास चीटिंग और कॉपियों की अदला-बदली की संभावना ज्यादा होती है। पुरानी कॉपियों पर भी एग्जाम दिलाया जा सकता है। अधिकांश यह होता आया है डिपार्टमेंट की लापरवाही के कारण सेंटर्स एग्जाम्स खत्म होने के बाद बची कॉपियों को नहीं लौटाते। इसकी भी संभावना ज्यादा है कि एक सेंटर से कॉपी दूसरे सेंटर पर लिखवाकर पहुंचा दी जाए।

अधिकारियों को पता नहीं

इस पूरे मामले में डिस्ट्रिक्ट के अधिकारी अनभिज्ञता जता रहे हैं। उन्होंने इस संबंध में जानकारी होने से साफ इंकार किया है। वे कुछ भी कहने से बच रहे हैं। उनका बस इतना कहना है कि परिषद से कॉपियां आई हैं, उन्हें खोलकर नहीं देखा गया है, इसलिए इस संबंध में जानकारी नहीं है। उन्होंने ऐसा कोई निर्देश मिलने की जानकारी से भी इंकार किया है।

यूपी बोर्ड की कॉपीज जीआईसी में कलेक्ट होती हैं। उसका लेखा-जोखा उनके पास होता है। कोडिंग है कि नहीं यह उनको ज्यादा मालूम होगा। मुझे इस संबंध में जानकारी नहीं है।

- अचल मिश्रा, डिप्टी सेक्रेट्री, रीजनल यूपी बोर्ड ऑफिस

बोर्ड की कॉपीज आ चुकी हैं, लेकिन उन पर कोड है कि नहीं मुझे इसकी इंफॉर्मेशन नहीं है। वे पैकेट में बंद हैं। पैकेट के उपर कोई कोड नहीं है। कॉपी के उपर कोड है कि नहीं यह तो बंडल खोलने के बाद ही पता चलेगा।

- आरके सिंह, प्रिंसिपल, जीआईसी