- कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज में छात्रसंघ चुनाव को लेकर स्टूडेंट्स बोले ना

- नहीं करना चाहिए गैर कानूनी तरीके से चुनाव, महज अपने स्वार्थ के लिए लड़ते हैं चुनाव

Meerut। यूपी की सपा सरकार ने सत्ता संभालते ही छात्रसंघ चुनाव कराने का ऐलान कर दिया था। इसके लिए लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप ही चुनाव कराने के लिए कहा गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक छात्रसंघ चुनाव लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के तहत ही होंगे। नए सेशन के शुरु होने के साथ ही सिटी में छात्रदल चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। लेकिन न तो कहीं चुनाव की आचार संहिता ही नजर आती है, न ही लिंगदोह की सिफारिशों पर अमल।

छात्र ही उठा रहे सवाल

कॉलेजों में इलेक्शन जिनके हितों के लिए कराए जा रहे हैं। उन आम स्टूडेंट्स तक को कोई नहीं पूछ रहा है। सवाल ये है कि क्या किसी ने ये जानने की जरुरत की आखिर वो क्या चाहते हैं, क्या वाकई छात्रसंघ चुनाव आज की जरूरत है, क्या वाकई इस चुनाव से आम स्टूडेंट्स को फायदा होता है, क्या छात्र राजनीतिक के नाम पर पॉलिटिक्स पार्टी का कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज में दखल उचित है। ऐसे ही कुछ मुख्य मुद्दों पर कॉलेजों में स्टूडेंट्स की राय जानने के लिए आई नेक्स्ट ने स्पेशल सर्वे किया। क्या है स्टूडेंट्स के दिल की बात, जानने के लिए पढि़ए आई नेक्स्ट की ये एक्सक्लूसिव सर्वे रिपोर्ट

क्या कॉलेजों व यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ चुनाव होने चाहिए?

- हां 11 प्रतिशत

- नहीं 79 प्रतिशत

- नो कमेंट 6 प्रतिशत

- पता नहीं 4 प्रतिशत

नहीं होने चाहिए चुनाव

आई नेक्स्ट ने पहले सवाल में स्टूडेंटस से ये जानने का प्रयास किया कि क्या कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज में छात्रसंघ चुनाव होने चाहिए। आपको जानकर हैरानी होगी कि 79 प्रतिशत स्टूडेंट्स नहीं चाहते कि कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज में छात्रसंघ चुनाव हों, वहीं सिर्फ 11 प्रतिशत ने कहा कि चुनाव होने चाहिए। छह परसेंट ने कमेंट देने से इंकार किया और जबकि चार प्रतिशत को ये भी नहीं पता कि चुनाव हो रहा है।

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क्या सियासी दलों के स्थानीय नेताओं का छात्र राजनीति में दखल उचित है?

- होना चाहिए- 10 प्रतिशत

- बिल्कुल नहीं -70 प्रतिशत

- थोड़ा हो 15 प्रतिशत

- पता नहीं 5 प्रतिशत

नहीं हो स्थानीय नेता का दखल

अधिकतर स्टूडेंट्स का मानना है कि अपना रसूख बढ़ाने के लिए सियासी दलों के स्थानीय नेता छात्रसंघ चुनाव में जबरन घुसपैठ करते हैं। कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज के मैटर्स पर स्थानीय नेताओं की दखलंदाजी स्टूडेंट्स को बर्दाश्त नहीं है। सर्वे में 70 प्रतिशत ने कहा कि ऐसे नेताओं को बस अपने काम से काम रखना चाहिए। वो नहीं चाहते कि स्थानीय नेता इस तरह से दखलंदाजी करें। वहीं दस प्रतिशत का कहना है कि उनकी दखलंदाजी होनी चाहिए।

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पॉलिटिक्स से पढ़ाई का माहौल बिगड़ता है

हां 69 प्रतिशत

नहीं 11 प्रतिशत

थोड़ा असर 15 प्रतिशत

कह नहीं सकते 5 प्रतिशत

करियर पर बुरा असर

आज के स्टूडेंट्स अपने करियर को लेकर पहले अवेयर है, वो अपने करियर के साथ छेड़छाड़ पसंद नहीं करते हैं। छात्रसंघ राजनीति से कॉलेजों व यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई का माहौल बुरी तरह से डिस्टर्ब होता है ऐसा स्टूडेंट्स का मानना है। 69 प्रतिशत स्टूडेंट्स कहना है कि राजनीति से क्लासेज डिस्टर्ब होती हैं और बुरा असर पड़ता है। आए दिन नारेबाजी, धरना प्रदर्शन व रैली जुलूस से क्लासरुम की पढ़ाई नहीं हो पाती है माहौल खराब होता है।

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छात्रनेता स्टूडेंट्स के हितों का क्या ध्यान रखते हैं?

अपना मुनाफा सोचते हैं - 30 प्रतिशत

छोटे मसलों को भी सॉल्व करते है- 15 प्रतिशत

उत्पीड़न करते है और माहौल बिगाड़ते हैं - 35 प्रतिशत

चुनाव के बाद अपनी जिम्मेदारियां भूलते है - 20 प्रतिशत

अपना मुनाफा देखते हैं

करीब 30 प्रतिशत स्टूडेंट्स का यहीं मानना है कि छात्रनेता सिर्फ अपना ही हित देखते हैं। अपने मुनाफे में जुटे रहते हैं। वहीं 35 प्रतिशत का कहना है कि उत्पीड़न करते हैं और माहौल को बिगाड़ते हैं। वहीं 20 प्रतिशत का कहना है कि चुनाव के बाद नेता अपनी जिम्मेदारियां भूल जाते हैं।

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क्या लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों से छात्रसंघ चुनाव से गुंडागर्दी रुकेगी?

हां- 27

कुछा फायदा नहीं 21

पुराना ढर्रा ही ठीक है- 12 प्रतिशत

ज्यादा जानकारी नहीं - 40 प्रतिशत

सिफारिशों के बारे में पता नहीं

सर्वे में एक शॉकिंग फैक्ट यह भी सामने आया कि ज्यादातर स्टूडेंट्स को मालूम ही नहीं कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का क्या मतलब है। जब उनसे पूछा गया कि क्या लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों से छात्रसंघ चुनाव में गुंडागर्दी रुकेगी तो जवाब में 40 प्रतिशत स्टूडेंट्स ने कहा कि उन्हें कमेटी की सिफारिशें की जानकारी ही नहीं है।

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ये कहते हैं स्टूडेंट्स

चुनाव किसी भी कीमत में नहीं होना चाहिए। उसमें बहुत ही हिंसा होती है। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का भी कोई फायदा नहीं होता है।

-मुनीश

छात्रसंघ चुनाव से पहले तो बहुत वादे किए जाते हैं, लेकिन बाद में छात्रनेता केवल अपना फायदा उठाते हैं।

-अंशुल

छात्रनेता चुनाव के बाद बस अपना ही स्वार्थ देखते है, माहौल को भी बिगाड़ने का प्रयास करते हैं। जिससे सीधे पढ़ाई प्रभावित होती है।

-सोनू

चुनाव पर जो बैन लगा था गर्वमेंट ने उसे हटाकर बहुत गलत काम किया है। अब चुनाव से पहले और बाद में बहुत बवाल होते हैं।

- शुभम

चुनाव नहीं होने चाहिए, वीसी सर को भी गलत तरीके से चुनाव नहीं कराने चाहिए। अगर वीसी ही गलत है तो स्टूडेंट्स कैसे सहीं होंगे।

- अकी

छात्रसंघ चुनाव छात्रों के हित के लिए कराया जाता है। जबकि चुनाव जीतने के बाद नेता लोग छात्रों का ही उत्पीड़ करते है, इसलिए चुनाव न हो।

- सागर

छात्रसंघ चुनाव में पॉलिटिक्स पार्टियों का इनवोल्मेंट बहुत ही गलत बात है। छात्रसंघ का चुनाव नियमों के अनुसार होना चाहिए।

-विपिन

मेरे हिसाब से चुनाव नहीं होना चाहिए। छात्रनेताओं को बढ़ावा देने में वीसी सर का भी योगदान है। अगर वो चाहे तो चुनाव न हो और न ही ये राजनीति हो।

-टिन्नी