अप्रैल 2010 में हुई माछिल मुठभेड़ में सेना पर तीन स्थानीय युवकों की हत्या का आरोप था. इस मुठभेड़ के मामले में स्थानीय पुलिस ने भी जुलाई 2010 में 11 सैन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की थी.

29 अप्रैल 2010 की रात को मोहम्मद शफ़ी, शहज़ाद अहमद और रियाज़ अहमद की हत्या कर दी गई थी. परिजनों की शिकायत पर स्थानीय पुलिस ने 27 अप्रैल को ही तीनों युवकों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की थी.

इस फ़र्ज़ी मुठभेड़ के बाद जम्मू कश्मीर में व्यापक प्रदर्शन भी हुए थे.

बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर ने एक विश्वसनीय सैन्य सूत्र के हवाले से कहा, "पुलिस जाँच में मुठभेड़ के फ़र्ज़ी साबित होने के बाद सेना ने अपनी अदालती जाँच शुरू की थी, जिसमें पाया गया कि छह सैनिकों ने अपनी सीमाओं को लाँघा. उनमें दो अधिकारी शामिल थे. अब इन सैनिकों की नौकरी जा सकती है और इन्हें जेल हो सकती है."

हालांकि श्रीनगर में सेना की 15वीं वाहिनी के प्रवक्ता कर्नल एनएन जोशी ने कहा है कि सेना मुख्यालय को ऐसे किसी आदेश के बारे में जानकारी नहीं है.

मानवाधिकार उल्लंघन के मामले

"पुलिस जाँच में मुठभेड़ के फ़र्ज़ी साबित होने के बाद सेना ने अपनी अदालती जाँच शुरू की थी, जिसमें पाया गया कि छह सैनिकों ने अपनी सीमाओं को लाँघा. उनमें दो अधिकारी शामिल थे. अब इन सैनिकों की नौकरी जा सकती है और इन्हें जेल हो सकती है"

-विश्वसनीय सैन्य सूत्र

इस मामले की पुलिस जाँच में पहले ही साबित हो चुका है कि कुछ सैन्य अधिकारियों ने प्रोन्नति और मेडल पाने के लिए तीन कश्मीरी मज़दूरों को अग़वा किया और फिर उन्हें पाकिस्तानी चरमपंथी बताकर फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया.

इन युवकों के परिजनों ने पुलिस को बताया था कि सेना के लिए काम कर रहा एक स्थानीय व्यक्ति इन युवकों को सेना में नौकरी का लालच देकर अपने साथ ले गया था. वहाँ से उन्हें नियंत्रण रेखा के नज़दीक स्थित माछिल गाँव में ले जाकर मार दिया गया था.

पुलिस जाँच में एक कर्नल और दो मेजरों समेत कुल 11 लोगों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में अभियुक्त बनाया गया था लेकिन सेना की आंतरिक जाँच में सिर्फ़ छह लोगों को ही मुठभेड़ के लिए ज़िम्मेदार माना गया.

कश्मीर में तैनात एक शीर्ष सैन्य कमांडर का कहना है कि पिछले बीस सालों में सामने आए मानवाधिकार उल्लंघन की 1524 शिकायतों में से सिर्फ 42 को ही सही पाया गया है. हालाँकि स्थानीय मानवाधिकार संगठन सेना के इन दावों को भ्रामक क़रार देते हैं.

जून 2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कश्मीर यात्रा से पहले हुई इस मुठभेड़ में आरोपों का सामना कर रहे मेजर उपेंद्र को निलंबित कर दिया गया था जबकि कर्नल को कमांड से हटा दिया गया था.

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