- सिटी में कोई गुलाल नहीं है सर्टिफाई

- घटिया क्वालिटी के गुलाल बाजारों में मिल रहे हैं

Meerut : अक्सर देखने में आता है कि होली खेलने के बाद लोगों को कई तरह की एलर्जी हो जाती है। कई लोगों की स्किन इतनी सेंसीटिव होती है कि छिल भी जाती है। सवाल ये है कि क्या आपने कभी किसी गुलाल के पैकेट में ये देखा है कि किसमें कौन सा और कितनी मात्रा में केमिकल मिला हुआ है? इस गुलाल में कौन-कौन से इंग्रीडिएंट मिलाए गए हैं? शायद नहीं? जब हमने मार्केट में इस बारे में जायजा लिया तो चौंकाने वाली बातें सामने आई।

नहीं है किसी से सर्टिफाई

जब मार्केट में आई नेक्स्ट ने इस बात की रिसर्च की कि गुलाल किसी सरकारी मान्यता प्राप्त रिसर्च सेंटर से सर्टिफाई हैं या नहीं तो कोई भी ऐसा गुलाल नहीं था जिस पर किसी रिसर्च सेंटर का सर्टिफिकेशन हो। बड़े ताज्जुब की बात तो ये है कि इन केमिकलयुक्त इन गुलालों के लिए सर्टिफिकेशन कोई कराने भी नहीं जाता है। लोकल ही इसे बनाकर पैक्ड कर भेज दिया जाता है।

आखिर क्यों हैं जरूरी?

जानकारों की मानें तो मौजूदा समय में गुलाल में केमिकल की मात्रा काफी होती है, जबकि इन्हें मार्केट में हर्बल के नाम से बेचा जाता है। इसलिए इन गुलालों की टेस्टिंग होना काफी जरूरी है। जानकारों का ये भी कहना है कि इन हर्बल कलर्स के पैकेट में इस बात भी जिक्र नहीं होता है कि इनमें क्या इंग्रीडिएंट डाले गए हैं? जबकि इस बात का जिक्र होना चाहिए। इस बारे में साइंस के टीचर और समय-समय पर जागरुकता अभियान चलाने वाले डॉ। दीपक शर्मा की मानें तो इस तरह की कोई संस्था मेरठ या आसपास नहीं है जो रंगों को सर्टिफाई करती हो। मुझे सिर्फ इतनी जानकारी है कि नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट लखनऊ ने अपना खुद का हर्बल गुलाल इंट्रोड्यूस किया है।

जैसे कि खाने-पीने के सामानों की टेस्टिंग होती है। वैसे ही होली के मौके पर रंगों की टेस्टिंग अनिवार्य रूप से कर देनी चाहिए। क्योंकि मार्केट में कई लोग है जो हर्बल गुलाल के नाम पर लोगों को ठग रहे हैं।

- अक्षय गोयल, फूड सेफ्टी ऑफिसर