---एसडीसी सभागार में लादोतोसी पर वर्कशॉप

रांची : डॉ। कामिल बुल्के पथ स्थित एसडीसी सभागार में 'साइन' की ओर से पोप द्वारा जारी विषय 'लादोतोसी' पर कार्यशाला सोमवार को आयोजित की गई। जिसमें कैथोलिक चर्च के नौ डायसिस के पुरोहित और धर्म बहनें शामिल हुईं। दो दिनी कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कार्डिनल तेलेस्फोर पी। टोप्पो ने कहा कि यह गंभीर विषय है कि आज की परिस्थिति में झारखंड का पर्यावरण कहां है। हमें इस पर मंथन करने की जरूरत है।

जल संकट पर चर्चा

उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान समय में जल संकट की समस्या उत्पन्न हो गई है। हमारे पूर्वज पर्यावरण के साथ रहते थे और वे इस तरह के संकट के बारे में जानते तक नहीं थे। लेकिन अभी यह सोचनेवाली बात है कि लोग ग्लोबल वार्मिग को मोबाइल की तरह जान रहे है।

उन्होंने कहा कि साइन ने पर्यावरण संबंधी पोप के संदेश को आगे बढ़ाया है। अब हमारा दायित्व है कि इसे गांव-गांव और शहर-शहर तक ले जाएं। यदि अपने घर को बचाना है, तो माता पृथ्वी को बचाना होगा। इसका देखरेख करना उद्देश्य होना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन बिशप विनय कंडुलना व मंच संचालन साइन के निदेशक फादर क्रिस्टो दास ने किया। दूसरे सत्र में प्रोफेसर रमेश शरण, संजय बसु मल्लिक, ग्लैडसन डुंगडुंग ने भी अपने-अपने विचार रखे। मौके पर बिशप गब्रियल कुजूर, पोनसियन केरकेट्टा, फादर अनिल कुजूर, अभिषेक खेस, वाल्टर केरकेट्टा सहित कई लोग उपस्थित थे।

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प्रकृति की पूजा करता है आदिवासी समाज

बिशप चा‌र्ल्स सोरेंग ने कहा कि हमारा आदिवासी समाज प्रकृति को प्यार करता है। वे प्रकृति में बसे हुए हैं। सरना आदिवासी आज भी पेड़ और प्रकृति की पूजा करते हैं। लेकिन झारखंड में ऐसी आदिवासी परंपरा होने के बाद भी लोग प्रकृति को नहीं समझ रहे है। जंगल को बचाने के लिए पूर्व में लोगों को बोलने की जरूरत नहीं होती थी। पोप के पर्यावरण संबंधी संदेश के साथ आदिवासियों को उनके अधिकारों की जानकारी भी देने की जरूरत है। प्रोविंसियल फादर मरियानुस कुजूर ने कहा कि पोप पर्यावरण के विषय में अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बोल रहे हैं। वह पूरी दुनिया के बारे बोल रहे है। माता पृथ्वी को बचाने के लिए योजना बनानी होगी और लोगों में जागरूकता लाना होगा। तभी असंतुलित होते पर्यावरण को बचाया जा सकता है।

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