वो हर दिन स्कूल का होमवर्क करता है, फिर अपने हम उम्र बच्चों के साथ खेलने जाता है, लेकिन इतना व्यस्त रहने के बावजूद वो शाम को कार्टून नेटवर्क देखना नहीं भूलता।

उसे कार्टून नेटवर्क और उन में दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों के नाम अच्छी तरह से याद हैं। वो कहता है "मैं कार्टून नेटवर्क हर रोज़ देखता हूं" दूसरी तरफ, अयान के हम उम्र बच्चे मुंबई के शॉपिंग मॉल में वीडियो गेम खेलने में व्यस्त हैं।

टेक्नोलॉजी का असर

आज कल डिजिटल टेक्नोलॉजी की वजह से बच्चों के मनोरंजन के लिए रोज़ नए तरह के खेल निकल रहे हैं और गैजेट्स बाज़ार में उतारे जा रहे हैं।

इन सब के कारण पढ़ने-पढ़ाने का माहौल थोड़ा फीका पड़ गया है और इसका सीधा असर कॉमिक किताबों के बाज़ार पर पड़ा है और वहाँ बहुत मंदी आ गई है।

कार्टून की किताबें छापने वाली एक कंपनी 'होली काउ कॉमिक्स' के मैनेजर कर्मवीर कहते हैं कि टीवी और वीडियो गेम्स की चलन ने कॉमिक किताबें पढ़ने की परंपरा को बर्बाद कर दिया है।

"पहले टीवी और बाद में गेमिंग और कंप्यूटर ने कॉमिक किताबों की बिक्री को कम किया। जो बच्चे पहले पैसे बचा कर कार्टून किताबें ख़रीदा करते थे अब वो डिजिटल गेम खेलना पसंद करते हैं."

नवीनता की कमी

कर्मवीर इसके लिए कार्टून की किताबें छापने वाली कंपनियों को भी इसका दोषी मानते हैं। वे कहते हैं, "प्रकाशकों ने नए कार्टून चरित्र गढ़ना बंद ही कर दिया, वो नई चुनौतियों के लिए तैयार नहीं है। उनमें सुस्ती आ गई है."

जतिन वर्मा ऐसे शख्स हैं जिन्होंने हाल ही में मुंबई में एक कॉमिक्स सम्मलेन का आयोजन कराया, वो कहते हैं कॉमिक उद्योग के सामने कई कठिनाइयां हैं।

वे कहते हैं, "नए विषय नहीं आ रहे हैं, पैसों की कमी है और नए चरित्र गढ़ने वालों की भी कमी हो गई है जिस कारण कार्टून किताबों की बिक्री घट गई है."

मुंबई में हुए इस कॉमिक मेले से पहले, फरवरी में दिल्ली में पहला कॉमिक सम्मलेन हुआ था और दोनों ही मेले काफी सफल रहे हैं। इन सम्मलेन का आयोजन करने वालों का दावा है कि कॉमिक किताबों का भविष्य अभी ख़त्म नहीं हुआ है।

International News inextlive from World News Desk