कहीं सुसाइड तो नहीं
पंडरा पुलिस इस प्वाइंट ऑफ व्यू से भी जांच कर रही है कि कहीं रीता ने चारों बच्चियों को डैम में फेंक कर सुसाइड तो नहीं कर लिया, लेकिन ऐसा हुआ तो बाकी तीन डेड बॉडी कहां गई। घटनास्थल से रीता का मोबाइल कौन उठा कर ले गया। पुलिस ने जब पता लगाया तो पता चला कि हसबैंड संजय की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए रीता ने महिलाओं के ग्रुप द्वारा संचालित कमेटी में भाग लिया था। उसे इसमें दस हजार रुपए मिले थे। इसके बदले उसे पांच परसेंट हर वीक कमेटी को देना कंप्लसरी था। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तथा महंगाई बढ़ जाने की वजह से वह कमेटी में पैसे जमा नहीं कर पा रही थी। यही वजह है हसबैंड के साथ लड़ाई का सबब बना और अंत में रीता ने इसका उपाय खोज निकाला, जो बहुत ही दर्दनाक था।


क्या होती है महिला कमेटी
सिटी के हर मुहल्ले में मीडियम व लोअर मीडियम क्लास की महिलाएं अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कमेटी बनाती हैं। कमेटी की प्रेसिडेंट मुहल्ले की वही औरत हो सकती है, जिसके पास अपना मकान हो और वहां की स्थायी निवासी हो। फिर, अन्य महिलाओं को कमेटी में जोड़ा जाता है। कमेटी से जुड़ी महिलाओं को वोटर आई कार्ड और गार्जियन के सिग्नेचर देने होते हैं। कमेटी में शामिल महिलाएं प्राइवेट बैंक या गवर्नमेंट या गैर सरकारी योजना के तहत मिलनेवाले फंड को  सामूहिक रूप से निकालती हैं। कमेटी की हेड इस फंड को बराबर-बराबर महिलाओं के बीच डिस्ट्रीब्यूट कर देती हैं। वह उसी वक्त महिला को जितनी राशि दी गई है, उसमें से पांच परसेंट कमीशन के तौर पर रख लेती हैं। जिस महिला ने अपने घरेलू खर्च और सेल्फ इंप्लॉयमेंट के लिए पैसे लिए हैं, उसे सप्ताह में बंधी रकम के आधार पर लौटाना पड़ता है। यह कमेटी ऐसी है कि जिस दिन कमेटी की मीटिंग मुकरर्र हो गई तो महिलाओं को उसमें हर हाल में शामिल होना है। यदि कोई महिला निर्धारित समय पर कमेटी को पैसे नहीं दे पाती है तो कमेटी की हेड जुर्माने के तौर पर उससे दो प्रतिशत की राशि वसूल करती है। यह राशि उसके खाते में जाता है। इसमें निर्धारित समय पर लिए गए पैसे के परसेंटेज नहीं चुकाने पर महिला के साथ गाली-गलौज और उसे     बेइज्जत करने से भी बाज नहीं आते हैं। ऐसे में कई महिलाएं अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं। वह कमेटी के पैसे देने के लिए जेवर बेचने या दूसरे लोगों से उधार लेने की जुगाड़ लगाती हैं। जब कहीं से कोई हेल्प नहीं मिलती है तो वह सुसाइड तक कर लेती हैं।

सिटी के हर एरियाज में कमेटी  
सिटी के लक्ष्मीनगर, विकासनगर, रातू रोड, मधुकम, अलकापुरी, कांके रोड, डोरंडा, हिनू, धुर्वा, जगन्नाथपुर, हेसाग, इंद्रपुरी, शाहदेवनगर, नामकुम, टाटीसिलवे, बरियातू, चुटिया की अमरावती कॉलोनी, स्टेशन रोड, कोकर, लालपुर, हिंदपीढ़ी, हरमू, अरगोड़ा समेत कई इलाकों में महिलाओं के द्वारा कमेटी खोली गई है.पहले तो महिलाओं द्वारा बैंक से पैसे निकाले जाते हैं, फिर कमीशन के नाम पर उनसे राशि वसूली जाती है। अकाउंट खुलवाने वाली महिला का काम होता है कि वह समय पर राशि की वसूली करे। जब कोई महिला कमेटी के पैसे निर्धारित समय में नहीं दे पाती है तो उक्त महिला (सबकी हेड) अपनी ओर से पैसे दे देती है। बदले में शुरू होता है सूद और शोषण का सिलसिला।

क्यों बनती है कमेटी
कमेटी खेलने के पीछे का उद्देश्य यह होता है कि जो लोअर या मीडियम क्लास की महिलाएं हैं उनकी जरूरतें पूरी होती रहे और उनका काम चलता रहे। गवर्नमेंट या बैंक कम ब्याज पर इन महिलाओं को लोन देती है, जिसे चुकाना आसान होता है, पर कमेटी में शामिल महिलाओं की हेड के द्वारा इन प्रॉसेस को क्रिटिकल बना दिया जाता है.  सिटी में कई सूदखोर हैं, जो कमजोर तबके के बिजनेसमैन को जरूरत के मुताबिक सूद पर पैसा देते हैं। बदले में यह सूदखोर सूद लेनेवालों से गारंटी की तौर पर ज्वेलरी, उनके चेकबुक, दिए जानेवाले रकम की सूद तय कर लेते हैं। सूदखोरों का सूद पांच परसेंट से 10 परसेंट तक होता है। सूदखोर वैसे लोगों का ब्लैंक चेक रख लेता है, ताकि समय आने पर उसमें अपनी मन मर्जी के मुताबिक, रकम भर सकें। चेक पर पैसे लेनेवाले का सिग्नेचर होता है, इसलिए उससे इनकार भी नहीं किया जा सकता है।

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