उनके जन्मदिन में करोड़ों आ जाते हैं, हमने तो लाख रुपए भी एक साथ नहीं देखे। जब भी माया बहनजी को टीवी पर देखती हूं तो सोच में पड़ जाती हूं कि कहां मेरी किस्मत और कहां उनकी। मुझे उनका नाम तो दिया गया, अगर भगवान ने थोड़ी सी किस्मत भी दे दी होती तो जिन्दगी बदल जाती। मैं और मेरा बेटी सफाई कर्मी हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी हम ये ही करते आए है। आगे कुछ भी बदलता नहीं लग रहा।

मै ऐसी माया हूं, जो मलिन बस्ती में पैदा हुई, यहीं परवरिश पाई, ब्याह हुआ तो उठाकर एक मलिन बस्ती से दूसरी मलिन बस्ती में भेज दिया गया। सर्वसमाज और बहुजन समाज का तो पता नहीं, मेरा तो हर पल इस चिंता में गुजरता है कि ये महीना कैसे गुजरेगा. 

लोग मुझे मायावती कहकर ही बुलाते हैं। और कहते हैं कि माया तुम्हारा ही राज है। इस मलिन बस्ती की तो तुम ही मुख्यमंत्री हो। मै जानती हूं, वो चुटकी ले रहे है। असल में यही वो अंतर है, जो बहनजी और मुझ में है। फिर भी अच्छा लगता है कि मुझे नाम की वजह से मुझे तवज्जो भी काफी मिलती है। जब भी बेनियाबाग में माया बहन जी की रैली होती है तो लोग मुझे उनको दिखाने के लिए ले जाते हैं। मैं भी हर बार जाती हं। मैंने बहनजी को बहुत पास से कई बार देखा है।

- माया, सफाईकर्मी (बनारस)

मैं भी अखिलेश हूं

दोनों का करियर करीब-करीब साथ शुरू हुआ था। दोनों के संघर्ष के दिनों में जरूर जबर्दस्त फर्क है। यह फर्क इसलिए है, क्योंकि अखिलेश जी को राजनीति पिता से विरासत में मिली है और मैंने अपने करियर का रास्ता खुद शुरू किया है। अखिलेश प्रदेश में पार्टी की दशा-दिशा तय कर रहे हैं तो मैं अभी तक अपने लिए ही जमीन तैयार कर रहा हूं।

मेरे लिए कोई रथ नहीं बना। मै तो जमीन से जुड़कर राजनीतिक जमीन तलाश रहा हूं। मेरा इंतजार करती हुई भीड़ कहीं माला लिए नहीं खड़ी, मुझे तो भीड़ में माला लेकर खड़ा होना होता है। वो अखिलेश भी पिता का सपना पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे है। उन्हें अपने पिता का मिशन पूरा करना है। मैैं भी अपने बाप का सपना पूरा करने का लिए जी रहा हूं। जिसने अपनी उम्र का हर गुजरता लम्हा गिरवी रखकर मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है। उनका सपना है कि उनका बेटा भी अपनी मंजिल पा जाए। मै अपनी मंजिल पा लूंगा। मेरे जैसे लाखों है। जिन्हें विरासत में अपेक्षाओं के अलावा कुछ नहीं मिलना। मेरी दुआ है कि वो अखिलेश यादव भी अपनी कोशिशों में कामयाब हों और मैैं अखिलेश भी अपनी मंजिल तक पहुंच सकूं।

- अखिलेश, युवा नेता (इलाहाबाद)

एक ममता ये भी

नाम और चेहरा एक होने से किस्मत एक नहीं हो जाती। सब अपनी-अपनी किस्मत साथ लेकर पैदा होते हैं और उसी हिसाब से पूरी जिंदगी बिताते हैं। जिंदगी को साहू रामस्वरूप डिग्री कॉलेज में हिस्ट्री की लेक्चरार ममता गोयल कुछ ऐसी ही नजर से देखती हैं। हालांकि वे ममता बनर्जी से बहुत प्रभावित हैं। ममता को उनकी साफ गोई और उनका अच्छा बर्ताव प्रभावित करता है न कि उनका पॉलिटिकल करियर। सिर्फ नाम से ही ममता बनर्जी के करीब ममता गोयल ने कहा कि वे केवल नाम से ही अपने आपको ममता बनर्जी के करीब फील करती हैं। उनमें और ममता बनर्जी में जो सबसे बड़ा डिफरेंस है वो है पॉलिटिक्स का।

नेता करते हैं वैल्यू से समझौता

ममता गोयल ने बताया कि आज के पॉलिटीशियन समय, अपने फायदे और राजनीतिक स्वार्थ के लिए अपने मोरल वैल्यू से समझौता कर लेते हैं। मैं इससे सहमत नहीं हूं। न तो मैं खुद ऐसा करती हूं और ऐसे लोगों से परहेज भी करती हूं। उन्होंने बताया कि न केवल डेजिगनेशन वाइस बल्कि पे के मामले में भी मैं अपने आप को उनसे बहुत फासला महसूस करती हूं।

नाम में दो 'म' हैं

बातचीत के दौरान ममता गोयल ने कहा कि श्रीकृष्ण और कंस और श्रीराम और रावण की राशियां भी एक थीं। इसका मतलब ये नहीं है कि वे भी एक दूसरे से मिलते जुलते थे। ममता ने कहा कि मेरे नाम में दो 'म' हैं। इसके चलते मैं अपने अंदर ममता, वात्सल्य, स्नेह के भाव को ज्यादा महसूस करती हूं।

मेरे खर्चे सीमित हैं

ममता ने गोयल ने कहा कि जहां तक बात पे और सुविधाओं में डिफरेंस की है वे अपनी सिचुएशन से बहुत सैटिसफाई और खुश हैं। उसका सबसे बड़ा रीजन ये है कि उनके खर्चे भी उसी के हिसाब से हैं, लेकिन ममता बनर्जी अपनी पे से संतुष्ट हैं ये तो वही बता सकती हैं.             

-ममता, लेक्चरर (बरेली)

मैं भी उमा

इलेक्शन का दौर है तो केंडीडेट की दिनचर्या के बारे में जानने के लिए पब्लिक खासी उत्सुक रहती है। इसलिए आज शुरुआत उमा जी से करते हैं। उमा जी के दिन की शुरुआत अपने बच्चे डुगडुग को प्यारी से लोरी सुनाकर उठाने से होती है। जी हां, जरूरी नहीं हर उमा, उमा भारती ही हो। ये उमा मैडम हाऊस वाइफ हैं। जी हां, ये नाम तो खास है लेकिन इनका जीवन आम है। उमा भारती की तरह इन्हें भाषणबाजी और दुनियादारी से कोई मतलब नहीं रहता है। ये तो बस अपनी फैमिली और किचन से प्यार करती हैं। उमा मिश्रा उमा भारती के बीच बहुत बड़ा अंतर है। वही अंतर जो लीडर और वोटर का है। उमा सब्जी खरीदती है, फिर सब्जी के रेट पर जिरह करती है। घर का बजट हर महीने बनाती है, सामान लाती है, तो बजट गड़बड़ा जाता है। वो दूसरी उमा है। खुद कहती है, उन उमा से मेरा क्या मुकाबला। बस हम दोनों में एक ही समानता है कि हम दोनों नारी है। उनका अलग व्यक्तित्व है, जिससे वो हजारों लाखों लोगों के बीच बोलती हैं। मैं तो 5 बाहरी लोगों के सामने भी ठीक से नहीं बोल पाती। उमा को अच्छा लगता है जब उमा भारती विभिन्न मुद्दों पर बेबाक बोलती है, लेकिन इस उमा को बस अपनी किचन से प्यार है। परिवार के पांच लोग उसकी दुनिया है। देश दुनिया से ज्यादा इस बात का ख्याल रखना पड़ता है कि किसको कौन सी डिश पसंद है।

 -उमा, हाउसवाईफ (कानपुर)

सोनिया तो मैं भी हूं

मैंभी सोनिया हूं। पर एक फिल्म एक्ट्रेस हूं। मेरा सरनेम गांधी नहीं है। मेरा नाम है सोनिया ताकुली। रियल लाइफ और रील लाइफ में काफी अंतर होता है। पर सोचती हूं कि काश सोनिया गांधी का रोल करने को मिले। मैं एक लेवल पर उनसे सिमिलरिटी फील करती हूं। वो है कांफीडेंस। मै जहां हूं, ठीक हूं। संघर्ष एक आम हिंदुस्तानी की कहानी है। लोग फिल्म लाइन के बारे में तमाम किस्म की बातें करते है, लेकिन पॉलिटिक्स की गंदगी देखकर लगता है कि मै कभी पॉलिटिक्स में नहीं जा पाऊंगी। देश के सामने जितने मसले है, चाहे वो करप्शन हो या बेरोजगारी, पॉलिटिक्स की देन है। हां, डिफरेंस जरूर है। उनके आंसू की सबको फिक्र हो जाती है। देश में बहस छिड़ जाती है। अगर मेरी आंख में कभी आंसू आए, तो मेरे परिवार को उसकी चिंता होगी। फिर सोचती हूं कि शायद उनका परिवार ज्यादा बड़ा है। हम दो अलग-अलग शख्सियत है। और मै खुद को किसी भी मायने में, किसी से कमतर फील नहीं करती। ये नए इंडिया, इस देश के यूथ की खासियत है।

-सोनिया, फिल्म एक्ट्रेस (लखनऊ)

मैं मुलायम सिंह यादव

नाम तो इनका भी मुलायम है। लेकिन, इनके पीछे लाखों फॉलोअर्स की भीड़ नहीं है। सुबह से शाम तक दोनों मुलायम के रुटीन में जमीन आसमान का अंतर है। सपा मुखिया सुबह से देर रात तक राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं। जबकि, आगरा का यह मुलायम सुबह जागता है। पीसीएस बनने की चाह में स्टडी करता है और उसके बाद निकल जाता है स्कूल में बच्चों को पढ़ाने। वापस आकर फैमिली को टाइम देता है। फ्रेंड्स से गप्पें मारता है। नाइट में स्टडी करता है और खा-पीकर चैन से सो जाता है।

मुलायम की बात

राजनीति में भी मेरा कोई दखल नहीं है। सही पूछी जाए तो मैं स्टूडेंट टाइम से ही राजनीति से काफी दूर रहा। कभी क्लास का मॉनीटर बनने में भी मेरा कोई इंट्रेस्ट नहीं था। मैं तो बस नाम का ही मुलायम हूं। यह नाम भी मुझे मेरे परिवार और आसपड़ोस के लोगों ने दिया। फिर लोग मुझे चिढ़ाने लगे। एक मुलायम ये भी। मै क्या करता। आखिरकार मैने अपना नाम बदल लिया। मैने अपना नाम कमल सिंह यादव रख लिया। दस्तावेजों में दर्ज करा लिया। लेकिन लोग मुझे मुलायम ही कहते हैैं, मुलायम ही जानते है। उन मुलायम और मुझ मुलायम में भी बस एक समानता है कि वो भी कभी टीचर थे। लेकिन उनके सपने, उनका संघर्ष बहुत आगे ले गया। मेरी ऐसी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।

-मुलायम, टीचर (आगरा)

Myself Rahul

मैं भी राहुल हूं। कांग्र्रेस के युवराज राहुल की तरह मै किसी पार्टी का तो नहीं, अपने घर का युवराज जरूर हूं। मुझे लगता है कि राहुल बहुत कॉमन नेम है। खासतौर पर हमारी जनरेशन में। लेकिन हम तमाम राहुल उन राहुल से अलग है। ये गलत होगा कि मै उनमें और खुद में कोई समानता बताऊं। हर अलग है। हमारी परवरिश अलग है, बैक ग्र्राउंड अलग है, जरूरतें अलग है। कुल मिलाकर जिंदगी अलग है। मेरी जिंदगी इस देश के आम यूथ की जिंदगी है। हम वादे नहीं करते, सपने नहीं दिखाते। हां सपने देखते जरूर है। हमारे सपनों में और उनके सपनों में जमीन आसमान का अंतर है। हमारे सपनों में अच्छे नंबर, अच्छे इंस्टीट्यूट में दाखिला और फिर अच्छी नौकरी शामिल है। हमारे सपने पूरे करने में हमारी मां और मदर भी सपोर्ट करती है, लेकिन वैसे नहीं, जैसे उन राहुल की। मेरी लाइफ मेरी फैमिली, मेरे दोस्त और मेरे गैजेट्स है। पता नहीं राहुल जी अपने वादे पूरे कर पाएंगे या नहीं। लेकिन मै कभी किसी से ऐसा वादा नहीं करता, जो पूरा न कर सकूं। मेरा ड्रेसिंग सेंस उनसे पूरी तरह से अलग हैं। मैं जींस, टीशर्ट पहनता हूं। वो कुर्ता पजामा पहनते हैं। ऐसा नहीं मैं कुर्ता-पजामा नहीं पहन सकता, केवल दिखावे ऐसा करना मुझे ठीक नहीं लगता। राहुल एब्रोड में रहे हैं क्या उन्होंने वहां भी सफेद कुर्ता पजामा ही पहना होगा। खैर, मेरी और राहुल गांधी की उम्र में 15-16 साल का डिफ्रेंस होगा। कॉलेज में दोस्त कहते हैं कि तेरा नेचर काफी कुछ राहुल गांधी से मिलता है। मैं उन्हें टोकता हूं कि मुझे किसी के साथ कंपेयर न करो। राहुल गांधी की अपनी खुद की पहचान है और मैं अपनी पहचान बना रहा हूं। कोशिश करूंगा कि अपनी अलग ही पहचान बनाऊं।

-राहुल, स्टूडेंट (मेरठ)

भाजपा, बसपा और एसपी ने पिछले बाइस सालो में यूपी को तबाह किया। कभी ऐसा नहीं सोचा था कि राज्य इस बदहाली में पहुंच जाएगा। केंद्र सरकार ने यूपी को अब तक एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि का आवंटन किया पर राज्य सरकार ने जानबूझकर उसका फायदा नहीं उठाया है।

-सोनिया गांधी

दूसरों पर उंगली उठाने से पहले राहुल को केंद्र सरकार के आठ सालों के कारनामों का ब्योरा देना चाहिए।

-मायावती

यूपी में पिछले बाइस साल से सत्ता में रहने वाली सरकारों ने इसे बेचने का काम किया जिससे राज्य में अराजकता और गुंडई का बोलबाला रहा है।

-राजबब्बर

अमेठी और रायबरेली में कांग्र्रेस की इज्जत बचाने के लिए पूरा नेहरू खानदान वोट मांग रहा है।

-उमा भारती