विश्व शांति उच्च स्तर की नीतियों से नहीं आ सकती। विश्व शांति वहीं से बढ़ेगी, जहां हम हैं। शांतिपूर्ण व्यक्ति ही शांतिपूर्ण दुनिया का निर्माण कर सकता है। अक्सर, हम देखते हैं कि जो लोग आंतरिक शांति के बारे में बात करते हैं, वे आत्मसंतुष्ट हो जाते हैं और कहते हैं कि जो भी हो रहा है, उसे वैसा होने दो। वे दुनिया की वास्तविकताओं से बेपरवाह, केवल अकेले में ही आनंद लेते हैं। उनके लिए गुफा में एकाकी जीवनयापन ही शांति है। वे हिमालय या किसी शांत कोने में भाग जाना चाहते हैं, जहां कोई भी उन्हें परेशान न कर सके। ऐसी शांति का कोई मूल्य नहीं है! हालांकि उस गतिशीलता का भी कोई मूल्य नहीं है, जिसमें कोई विचार नहीं है, जो मात्र आंदोलित है और जिसने अपने व दूसरों को दर्द पहुंचाया है।

वस्तुत: आज के समय की आवश्यकता है 'आंतरिक शांति और बाहरी गतिशीलता का उत्तम संयोजन’! जब कोई संघर्ष होता है, तो सबसे पहले संवाद खत्म होता है और फिर विश्वास टूटता है। इस अंतर को दूर करने व किसी भी संघर्ष को हल करने के लिए, आपको एक संवाद की डोर चाहिए जो सभी पक्षों को आपस में जोड़ सके। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो बेहद संवेदनशील हैं और किसी भी समय अपना आपा खो देते हैं और कुछ ऐसे हैं जो अपने को समझदार व इतना सही मानते हैं कि अपने निर्णय या अनिर्णय के परिणाम की भी चिंता नहीं करते। दोनों ही अच्छे संवाददाता नहीं बन सकते। हमें वो चाहिए जो संवेदनशीलता और समझदारी का मिश्रण हो! एक सभ्य और शांतिपूर्ण व्यक्ति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक यह है कि वह सभी के साथ अच्छी तरह जुड़ सके। जहां आत्मीयता व संबंध समाप्त होते हैं, वहां भ्रष्टाचार शुरू होता है। हम देखते हैं कि लोग केवल उन लोगों से रिश्वत लेते हैं, जिनके साथ उनका कोई संबंध नहीं है।

उदाहरण के लिए जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो कहता है कि मैंने भी अमुक कॉलेज में अध्ययन किया है, तो आपको एक संबंध की अनुभूति होती है! यही संबंध आपसी संचार में सुधार करता है और जब संचार बेहतर होता है, तो विवाद आसानी से दूर हो जाते हैं।

हम एक ही प्रकाश हैं

वह 'कोई दूसरा’ हमेशा एक खतरा है, लेकिन सही बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक, मूल्यआधारित शिक्षा के साथ यह खतरा या डर समाप्त हो सकता है। आखिरकार जब दृष्टिकोण बदलता है तो विचार प्रक्रिया बदलती है, जो सहयोग और शांति के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। हमारी कई 'पहचान’ हैं। सबसे महत्वपूर्ण, हम एक ही प्रकाश और एक ही मानव जाति के हिस्से हैं।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

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