-बेसिक स्कूलों के कोर्स में नहीं है ज्यादा अंतर, बुनियादी सुविधाओं का अकाल

-कम्प्यूटर युग में पंखा भी मयस्सर नहीं, बैठने के लिए बच्चे इस्तेमाल करते हैं टाट पट्टी

-सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से पढ़ाई जाती है अंग्रेजी लेकिन मीडियम सिर्फ हिंदी

-सीनियर बेसिक स्कूलों में पहुंचे कम्प्यूटर लेकिन बिजली की व्यवस्था नहीं

ALLAHABAD: कोर्स में मेजर डिफरेंस नहीं है। प्राब्लम है मेंटेनेंस और फेसेलिटीज में। यह गैप इतना बड़ा है कि माननीय की तो बात ही छोडि़ए थोड़ा-बहुत भी कमाने वाला इसकी तरफ मुड़कर भी न देखे। कोढ़ में खाज, सिस्टम को ऐसा बना दिया गया है टीचर्स पढ़ाने पर कम जनगणना, मतगणना, आर्थिक गणना, बाल गणना, पल्प पोलियो अभियान, प्रौढ़ शिक्षा का एग्जाम कराने जैसी एक्टिविटीज पर टाइम ज्यादा वेस्ट करते हैं। आई नेक्स्ट ने गुरुवार को प्राइवेट और प्राइमरी स्कूलों की व्यवस्था का तुलनात्मक अध्य्यन किया। आप भी पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

मॉड्यूल में ज्यादा अंतर नहीं

प्राइवेट और गवर्नमेंट स्कूल के मॉड्यूल में ज्यादा अंतर नहीं दिखा। प्राइवेट की तरह गवर्नमेंट स्कूल्स में भी टीचर्स को आधा घंटे पहले बुलाने की व्यवस्था है। प्रेयर में सभी स्टूडेंट्स और टीचर्स की एक साथ गैदरिंग होती है। हर टीचर अपनी डायरी में मेंसन करता है कि वह किस दिन क्या पढ़ाने जा रहा है और क्या पढ़ाया। हर क्लास के लिए एक टीचर का एलॉटमेंट। एक्सचेंज के थ्रू अलग-अलग टीचर्स के लिए अलग-अलग सब्जेक्ट। एक्टिविटी के लिए पीरिएड। खेलकूद के लिए पीरिएड। टीचर्स-पैरेंट्स की मीटिंग। ऑफिसर्स की रैंडम चेकिंग। यह तो हुई व्यवस्था की बात। लेकिन, इसका पालन कितना होता है? यह बड़ा सवाल है। प्राइवेट स्कूलों में परफारमेंस डे टु डे बेसिस पर चेक होती है और गवर्नमेंट स्कूलों में कई बार यह साल में एक बार भी नहीं होती।

कोर्स भी आलमोस्ट सेम

कोर्स के मामले में भी प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में कोई डिफरेंस नहीं है। अब सरकारी स्कूलों में भी क्लास फ‌र्स्ट से इंग्लिश पढ़ाने की व्यवस्था कर दी गई है। हिंदी और मैथ्स भी पढ़ाया जाता है। बच्चों का उठने-बैठने की ट्रेनिंग दी जाती है। क्लास थर्ड से हिंदी, गणित, इंग्लिश, हमारा परिवेश, नैतिक शिक्षा की पढ़ाई शुरू हो जाती है। फोर्थ में संस्कृत, आर्ट और मोरल साइंस की इंट्री हो जाती है। दोनों के बीच एक बड़ा अंतर लैंग्वेज है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का मीडियम हिंदी होता है जबकि प्राइवेट पहले दिन से अंग्रेजी पर कंसंट्रेट करते हैं। दोनों स्थानों पर ड्रेस पहनना अनिवार्य है। लेकिन, एक स्थान पर पहनकर स्कूल न आने पर या तो क्लास से बाहर कर दिया जाएगा या फाइन लगा दी जाएगी और दूसरे स्थान पर कोई पूछने वाला ही नहीं है।

टाइमिंग भी एक जैसी

प्राइवेट व सरकारी स्कूलों की टाइमिंग भी अब आलमोस्ट एक हो चुकी है। लास्ट इयर हुए परिवर्तन के अनुसार अब प्राइमरी और जूनियर स्कूल भी प्राइवेट स्कूलों की तरह सुबह आठ से दिन में एक बजे तक चलते हैं। सर्दियों में टाइमिंग सुबह नौ से दिन में तीन बजे तक होती है। बेसिक और जूनियर के लिए किताबें सरकार छपवाकर बंटवाती है और प्राइवेट स्कूल सेटिंग के अनुसार प्रकाशक चुनते हैं। कोर्स का बेस दोनों का एनसीईआरटी ही होता है।

फिर अंतर कहां है

अब सवाल यह उठता है कि जब सबकुछ एक जैसा है तो दोनों के बीच खाई क्यों है? एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पैसा नहीं लगता। इससे इसकी वैल्यू अपने आप कम हो जाती है। प्राइवेट स्कूल मोटी फीस लेते हैं। इसलिए पैरेंट्स भी ज्यादा अॅवेयर रहते हैं। सरकारी स्कूलों में खाने की मुफ्त व्यवस्था ने दोनों के बीच की खाई बढ़ा दी है। प्राइवेट स्कूलों में बैठने के लिए बेंच होती है और सरकारी स्कूलों में टाटपट्टी। प्राइवेट स्कूलों में टॉयलेट का प्रापर अरेंजमेंट होता है और सरकारी स्कूलाें का टॉयलेट महीने में बमुश्किल ही कभी साफ होता है। प्राइवेट स्कूल पीने के पानी के लिए आरओ की व्यवस्था देते हैं और गवर्नमेंट स्कूलों में हैंडपम्प ही सहारा होते हैं। प्राइवेट स्कूलों में एक्टिविटी के लिए अलग से टीचर होते हैं और सरकारी स्कूलों में मैथ्स पढ़ाने वाला टीचर ही यह काम करता है। प्राइवेट स्कूलों में पैरेंट्स सिर्फ प्रिंसिपल से मिलकर कुछ कह सकता है जबकि गवर्नमेंट स्कूल में कोई भी कभी भी आ-जा सकता है। सिक्योरिटी नाम की कोई चीज नहीं। आने-जाने का रास्ता नहीं। दीवारों की बुरी स्थिति। ज्यादातर गवर्नमेंट स्कूलों से पंखा गायब। कम्प्युटर भेज दिया गया। चलाने के लिए बिजली का कनेक्शन भी दिया गया लेकिन तार चोर काट ले गए और सिस्टम बैठ गया। इस स्थिति में कौन पैरेंट बच्चों को यहां भेजना पसंद करेगा।

सरकारी स्कूलों में नहीं है सुविधाएं

-दस बजे के बाद स्कूलों में नहीं होती बिजली

-जनरेट या इनर्वटर की नहीं होती कोई व्यवस्था

-कई स्कूलों में लाइट की भी नहीं है व्यवस्था

-स्कूलों में खस्ता हाल हैं शौचालय

-दो या तीन टीचर्स के भरोसे चलती है क्लासेज

-एक ही टीचर सभी विषयों को पढ़ाते हैं

-टीचर्स का ध्यान मिड डे मील बनाने की तरफ अधिक होता है

-स्कूलों में नहीं होता बच्चों के लिए फर्नीचर

-हैंड पंप या खुली टंकी के भरोसे होती है पीने के पानी की व्यवस्था

-ब्लैक बोर्ड की भी नहीं होती प्रत्येक स्कूल में समुचित व्यवस्था

प्राइवेट स्कूलों में व्यवस्था

-स्मार्ट क्लासेज के जरिए बच्चों को दी जाती है एजूकेशन

-नियमित रूप से सभी विषयों के लिए होते हैं टीचर्स

-बिजली के साथ जनरेट की व्यवस्था

-पीने के लिए फिल्टर पानी की होती है व्यवस्था

-अट्रैक्टिव तरीके से बच्चों को दिया जाता है अक्षर ज्ञान

-बच्चों के सेक्योरिटी की भी होती है व्यवस्था

-नियमित रूप से चलती है सभी विषयों की क्लासेज

-पैरेंट-टीचर्स मीटिंग की रेग्युलर व्यवस्था