एक समय ऐसा था जब गांधी परिवार की ज़रूरत कांग्रेस को थी लेकिन अब गांधी परिवार को कांग्रेस की ज़रूरत है. गांधी परिवार अपने आख़िरी दौर से गुज़र रहा है. मुझे लगता है कि ये उनके आख़िरी पांच-छह साल हैं. इस परिवार ने भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका अदा कर ली है.

एक आम नागरिक की नज़र से बात करें तो आम नागरिक को हर सरकार से यह उम्मीद होती है कि सरकार देश का विकास करेगी और उनके जीवन स्तर में सुधार लाएगी.

लेकिन एक इतिहासकार के तौर पर मैं कहूंगा कि यह 16वां लोकसभा चुनाव है और इससे पहले के 15 लोकसभा चुनाव भी बेहद ख़ास थे इसलिए ऐसा नहीं है कि मैं इसे कुछ ख़ास या ज़्यादा महत्वपूर्ण मानूं.

'मोदी की थोड़ी बहुत लहर'

पिछली बार भी हमने यह नहीं सोचा था कि कांग्रेस 206 सीटों के साथ आएगी. उससे पहले यह किसको पता था कि पोकरण के बाद अटल बिहारी जी की सरकार आएगी. इसलिए हर चुनाव अपने आप में महत्वपूर्ण है. लोग खुलकर आज़ादी के साथ अपना वोट दें यह महत्वपूर्ण है.

ऐसा लगता है कि  नरेंद्र मोदी ने भाजपा को लाभ पहुंचाया है. नेतृत्व की पार्टी को आगे लाने में भूमिका होती है.

पांच-दस साल में कांग्रेस ख़त्म हो जाएगी: गुहा

मोदी ने पार्टी के अंदर जोश भरा है लेकिन यहां अमरीका की तर्ज पर अध्यक्षीय प्रणाली पर चुनाव नहीं होते हैं इसलिए हर सीट से उम्मीदवारी किसकी है यह मायने रखता है.

मोदी की थोड़ी बहुत तो लहर है. पार्टी और कार्यकर्ताओं में जोश आया है इसका असर पड़ेगा. लेकिन नरेंद्र मोदी अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकते हैं.

इतिहास में एक ही नेता थी जिसने अपने दम पर एक बार चुनाव जिताया और एक बार चुनाव हराया भी. वो थी  इंदिरा गांधी. उन्होंने साल 1971 में चुनाव जिताया और अपनी ही वज़हों से 1977 में हराया भी. मोदी उस स्तर पर अभी तक नहीं पहुंचे हैं.

नई पार्टी  आम आदमी पार्टी को मैं दिलचस्पी के साथ देख रहा हूं. इसमें नौजवानों की अच्छी भागीदारी है. उनमें नई दिशा है आदर्शवाद भी है. परंपरागत पुरानी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा से यह पूंजीपतियों से सांठगांठ के मामले में अलग है.

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इनको चंदा देने वाले आम लोग हैं लेकिन ये थोड़ी जल्दबाज़ी में हैं. अगर वो यह सोचें कि 10 या 15 साल में देश के इतिहास को बदलेंगे तब यह बेहतर रहेगा और मेरी निजी राय है कि इस बार लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 50-60 से ज़्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़े तो बेहतर रहेगा.

'खाली जगह'

वामपंथी दल बंगाल और केरल में सत्ता से बाहर हो गए हैं और वे अब सिर्फ त्रिपुरा में बचे हैं इसलिए एक बहुत बड़ा स्पेस खाली पड़ा है और उस स्पेस को आम आदमी पार्टी भर सकती है. वामपंथी दल उस शक्ति के साथ वापस नहीं आ सकते हैं. कांग्रेस में बहुत संकट है. इसलिए आम आदमी पार्टी इन दोनों की जगह ले सकती है बशर्तें वो दूरगामी सोच के साथ काम करे.

आम आदमी पार्टी की राजनीति की शुरुआत जिस अन्ना आंदोलन से हुई उसमें दक्षिणपंथी रूझान दिख रहा था. लेकिन उनकी राजनीतिक विचारधारा अभी साफ नहीं हो पाई है.

इससे कई पूंजीपति भी जुड़ रहे हैं इसलिए वो कभी नहीं चाहेंगे कि पार्टी पूरी तरह से वामपंथी विचारधारा के गिरफ़्त में चली जाए. वो थोड़ा बाज़ार की ताक़तों को भी साथ लेकर चलना चाहेंगे. इसलिए उनकी विचारधारा पर बात करना अभी जल्दबाज़ी होगा.

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