इलेक्ट्रीशियन का काम करते हैं

मो। नूर आलम नैनी स्थित पीएसी कॉलोनी में रहते हैं। डेवकॉन केमिकल प्राइवेट लिमिटेड में वह इलेक्ट्रीशियन का काम करते हैं। आलम ईएसआई से भी संबद्ध हैं। 2009 में उन्हें ब्रेन संबंधित कोई बीमारी हुई थी। ईएसआई डिस्पेंसरी से रिफर होकर उन्होंने एसआरएन हॉस्पिटल में अपना इलाज कराया। अक्टूबर 2009 में उन्होंने इलाज खर्च का प्रतिपूर्ति दावा नैनी फस्र्ट डिस्पेंसरी में पेश किया। यहां से 29 अक्टूबर 2009 को दावा संबंधित आवेदन कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय, नैनी को भेज दिया गया।

यहां नहीं वहां जाओ

बकौल नूर आलम, इसके बाद वह लगातार अपने भुगतान के लिए दौड़ता रहा। चिकित्सालय जाने पर डिस्पेंसरी भेजा जाता और डिस्पेंसरी से चिकित्सालय जाने को कहा जाता। उसकी मानें तो शिकायत पर कई बार डिस्पेंसरी से भुगतान दावे की जानकारी के लिए रिमाइंडर भी भेजा गया। हालांकि चिकित्सालय कर्मियों ने उसका जवाब देना उचित नहीं समझा।

आपका तो पेमेंट हो चुका है

नूर आलम ने बताया कि चिकित्सालय में चार दिन पहले सामने आई हकीकत ने उसके होश उड़ा दिए। वहां पता चला कि उसके 1200 रुपए के प्रतिपूर्ति दावे का भुगतान करीब डेढ़ साल पहले किया जा चुका है। उसके लिए ये हैरत की बात थी क्योंकि उसे कोई पेमेंट मिला ही नहीं। जांच पड़ताल करने पर पता चला कि 11 मार्च 2010 को इस संबंध में पेमेंट तत्कालीन चिकित्सालय अधीक्षक एचएल सिंह के नाम पर हुआ है। सवाल ये है कि कैसे बिना पेशेंट के सिग्नेचर ये पेमेंट किया गया?

एकाउंटेंट भी सवालों के घेरे में

जानकारों का कहना है कि मामले में तत्कालीन एकाउंटेंट की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। नियम के मुताबिक डिस्पेंसरी से आए प्रतिपूर्ति दावे का भुगतान वहीं से होना चाहिए। किसी कारणवश चिकित्सालय से होने पर भी भुगतान केवल पेशेंट को ही किया जा सकता है। वह भी पूरे वेरिफिकेशन के बाद। ऐसे में कैसे एंकाउंटेंट ने बिना पेशेंट वेरिफिकेशन अधीक्षक के नाम पेमेंट कर दिया?

आपने पूछा क्यों नहीं

इस मामले में जब चिकित्सालय की अधीक्षिका से बात की गई तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया। उनका साफ कहना है कि ये मामला उनकी नियुक्ति से पहले का है। यहां भी सवाल ये है कि आवेदन भले ही उनकी ज्वाइनिंग के पहले का है। हालांकि भुक्तभोगी अपनी गुहार लिए कई बार उनके कार्यकाल में ही चिकित्सालय गया। आखिर तब क्यों उन्होंने इस मामले की पड़ताल नहीं कराई?

अब किस पर होगी कार्रवाई?

चिकित्सालय रिकॉर्ड के मुताबिक नूर आलम के दावे का पेमेंट पूर्व अधीक्षक एचएल सिंह के नाम है। वे प्रजेंट में निलंबित चल रहे हैं। ऐसे में उनपर क्या कार्रवाई होगी, इस मामले में चिकित्सालय ऑफिसर्स कुछ नहीं बोल रहे हैं। उनका कहना है कि शिकायत पर रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेज दी जाएगी।

मेरी मर्जी, मैं चाहे जो करूं

नूर आलम ने बताया कि प्रतिपूर्ति दावे संबंधित उसने दो और दावे पूर्व में प्रस्तुत किए थे। 4909 और 2391 रुपए के ये दावे नौ सितंबर 2010 को चिकित्सालय में भेज दिए गए थे। आई नेक्स्ट के पास इसके पुख्ता सबूत भी हैं। हालांकि इन दावों को चिकित्सालय से कानपुर हेड ऑफिस के लिए लगभग 10 महीनों बाद भेजा गया। इसमें देरी क्यों हुई, इसका जवाब देने को कोई तैयार नहीं। संबंधित क्लर्क का जवाब तो कुछ और ही था। उसने कहा कि वह अपनी मर्जी के हिसाब से ही काम करेंगी। नियमों के मुताबिक प्रतिपूर्ति के लिए दावा एक साल के भीतर पेश किया जाना जरूरी है।

ये मामला मेरी नियुक्ति से पहले का है। इस संबंध में कुछ जानकारी नहीं है। शिकायत मिली तो उच्चाधिकारियों को मामले से अवगत कराया जाएगा।

डॉ। विपुला बाजपेई, अधीक्षक, कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय नैनी

पेशेंट का भुगतान है तो वह उसे किया जाएगा। फिलहाल शिकायत मेरे पास नहीं पहुंची है। आने पर मामले की जांच कराई जाएगी।

ऊषारमण त्रिपाठी, डायरेक्टर, ईएसआई श्रम चिकित्सा सेवाएं