RANCHI : जनता अगर किसी चीज से सबसे ज्यादा त्रस्त है तो वह है रिश्वतखोरी। हर विभाग चाहे वह राज्य के अधीन हो या केन्द्र अथवा नामी गिरामी कंपनी। यहां पोस्टेड 'बाबूओं' को बिना घूस खिलाए काम हो नहीं सकता है। आम लोगों को हर काम के लिए इन बाबूओं के कुर्सियों के आगे-पीछे कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। मामला जमीन जायदाद से संबंधित हो या अपराध से हर स्तर पर घूसखोरी चरम पर है। इस घूसखोरी से आजादी से कैसे मिलेगी यह सवाल हर आम आदमी के जुबान पर है।

कार्यो में मैनेज के खेल

सरकारी की योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए जिन प्रक्रियाओं को किया जता है उसमें सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है मैनेज का खेल। जो भी संबंधित विभाग को मैनेज कर लेता है सिस्टम के सपोर्ट से उसका सारा काम होता है। इसे सरकारी भाषा में प्रोसेसिंग चार्ज (पीसी) कहते हैं।

सबकुछ ऑनलाइन, रिश्वतखोरी ऑफलाइन

सरकार का जोर डिजिटलाइजेशन पर है। मंत्रालयों व विभागों को ऑनलाइन किया जा रहा है ताकि पारदर्शिता लाने के साथ करप्शन पर लगाम कसा जा सके। लेकिन इस ऑनलाइन कामकाज को प्रभावित करने वाला आधार ऑफलाइन होता है। बिना आफलाइन रिश्वतखोरी के ऑनलाइन का सारा काम काज रुका रहता है।

करप्शन का अड्डा है सीओ ऑफिस

सीओ आफिस, इस जगह के चक्कर के लिए हर आदमी को मजबूर होना पड़ता है। किसी भी तरह के जमीन जायदाद, प्रापर्टी आदि का विवरण इसी कार्यालय में रहता है। इस ऑफिस में बिना चढ़ावा चढ़ाए कोई काम नहीं बनता है। कर्मचारी से लेकर सीओ तक का हर फाइल पर पेमेंट बंधा है। निगरानी विभाग के हत्थे सबसे ज्यादा चढ़ने वाले आरोपी इसी विभाग के हैं। म्यूटेशन हो या रशीद निर्गत करना हर काम के लिए रिश्वत देना पड़ता है।

बदनामी के आखिरी स्तर पर है पुलिस

पुलिस विभाग की हालत देखकर पुलिस के वरीय अधिकारी तक अचंभित हैं.मोबाइल खो गया हो या चोरी हो गया हो जैसे छोटे मोटे मामलों में भी मुंशी से लेकर सिपाही तक और थानेदार तक घूस मांगते हैं। जैसे जैसे अधिकारियों का स्तर बढ़ता है वैसे वैसे काम और रिश्वतखोरी का रुपया भी सर चढ़ने लगता है।

रेलवे में सबकुछ मिलता है घूसखोरी से

रेलवे का टेंडर हो या ट्रेन में सीट लेना हो हर तरह के काम के लिए रिश्वतखोरी की प्रथा का पालन करना पड़ता है। कारगो भेजने से लेकर स्टेशन परिसर की सफाई तक में रिश्वतखोरी चल रही है.तत्काल के टिकट तक मैनेज कर बेच दिए जाते हैं और लोग नम्बर लगाकर देखते रह जाते हैं।