रीबॉक बनाने वाली कंपनी एडिडास ऐसा ही करने का प्रयास कर रही है। सबसे सस्ती कार और फिर सबसे सस्ते टेबलेट के बाद अब भारत सबसे सस्ते जूते की भी प्रयोगशाला बन गया है।

बांग्लादेश में प्रयोग

इसकी योजना काफी़ देर से बन रही थी। एडिडास के मुख्य अधिकारी हरबर्ट हेनर ने वर्ष 2008 में बांग्लादेश के अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस से बांग्लादेश में सस्ता जूता मुहैया कराने पर चर्चा की थी। उद्देश्य था 'सामाजिक व्यापार' उत्पन्न करना ताकि स्थानिक अर्थव्यवस्था को उभारा जाए।

पिछले वर्ष वहाँ एक पायलट परियोजना की शुरुआत हुई जिसमें मूल कंपनी एडिडास ने 1.14 डॉलर और 1.70 डालर के बीच तीन बांग्लादेशी गांवों में 5000 रीबॉक जूते बेचे।

कंपनी का कहना है कि उस परियोजना का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है बल्कि सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए नौकरियां उत्पन्न करना है।

गांवों के लिए

अगली योजना जिस पर काम शुरु हो चुका है वह है भारत के देहात के इलाकों में कम क़ीमत पर जूते उपलब्ध कराना। एडिडास के मुख्य अधिकारी हरबर्ट हेनर ने जर्मनी के एक अख्बार से कहा कि अभी भी उद्देश्य भारत में एक डॉलर का जूता बनाना है लेकिन अभी अंतिम कीमत तह नहीं की गई है।

हरबर्ट हेनर ने कहा, ''जूते को वितरण प्रणाली के तहत गांवों में बेचा जाएगा। हम चाहते हैं कि यह परियोजना आत्मनिर्भर हो.'' इसे कब बाज़ार में लाया जाएगा, इसकी तारीख निर्धारित नहीं की गई है और इसका डिज़ाइन पुख़्ता किया जा रहा है। तो क्या यह संभव हो सकता है रीबॉक ट्रेनर एक डॉलर में बेचा जाए?

बाज़ार की जानकार रमा बीजापुरकर के अनुसार, "यदि आप भारत की सात खरब डॉलर के उपभोक्ताओं के आधार पर चलने वाली अर्थव्यवस्था का फ़ायदा उठाना चाहते हैं तो आपको भारी संख्या में, कम कीमत और प्रति वस्तु बहुत कम लाभ पर चीज़े बेचनी होंगी."

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