दंत चिकित्सक दंपत्ति राजेश और नूपुर तलवार की 14 साल के बेटी आरुषी दिल्ली के निकट नोएडा में अपने बिस्तर पर मृत पाई गई थीं.  आरुषि का गला रेता हुआ था और सिर पर गहरे चोट के निशान थे. आरुषि के माता-पिता बगल वाले कमरे में सो रहे थे.

शुरुआत में शक़ की सुई हेमराज की ओर गई, लेकिन अगले दिन उनका शव घर की छत पर पाया गया. शव पर पिटाई के निशान थे. मामले में कई मोड़ आने के बाद तलवार दंपत्ति पर हत्या, सबूतों को मिटाने और जांचकर्ताओं को भटकाने के आरोप लगे. तलवार दपत्ति ने सभी आरोपों से इंकार किया है.

हालांकि नूपुर और राजेश ज़मानत पर जेल से बाहर हैं लेकिन दोनों ही कई बार जेल जा चुके हैं. हत्या के इस अनसुलझे  मामले ने भारत में कई लोगों की रुचि है. देश के 24 घंटों वाले खबरिया चैनलों पर केस की छोटी से छोटी गतिविधि को ज़बरदस्त कवरेज मिलती रही है.

टीवी स्टूडियो में अपराध वाली जगह का निर्माण किया गया और इस पर तीखी बहसें हुईं. दिल्ली और दूसरे कई शहरों में आरुषि को न्याय दिलाने को लेकर कई रैलियाँ आयोजित की गई हैं. लोग इस मामले को लेकर इतने उत्तेजित हैं कि एक व्यक्ति ने राजेश तलवार पर अदालत में हमला भी किया.

खराब जांच

"तलवार दंपत्ति पढ़े-लिखे हैं और दंत-चिकित्सक हैं. उन्होंने मामले में अपना पक्ष बेहद ज़ोरदार तरीके से रखा है और आश्चर्यजनक तौर से उनपर इस अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है"

-वकील सुशील कुमार

उधर कानूनी जानकारों का कहना है कि जिस तरह जांचकर्ताओं ने मामले की जांच की, उससे कई सवाल खड़े होते हैं. पहले केस की जांच स्थानीय पुलिस ने की, उसके बाद मामला केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को सौंप दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट में जाने-माने वकील सुशील कुमार कहते हैं, "अदालत में सबूतों को जिस तरह से पेश किया जाना चाहिए था, वैसे नहीं हुआ. इस केस में कोई गवाह नहीं है और पूरा मामला परिस्थितियों पर आधारित है, जैसा कि ज़रूरत थी कि अपराध की जगह को बचाकर रखा जाता लेकिन जांच और मुकदमें के दौरान कई सबूतों को नुकसान पहुँचा है."

अपराध मामलों के जानकार सुशील कुमार पिछले 50 सालों से वकील हैं और कहते हैं कि उन्होंने इससे पहले ऐसा कौतूहल पैदा करने वाला केस पहले कभी नहीं देखा है. वो कहते हैं, "तलवार दंपत्ति पढ़े-लिखे हैं और डेंटिस्ट भी. उन्होंने मामले में अपना पक्ष बेहद ज़ोरदार तरीके से रखा है."

राजेश और नूपुर तलवार का कहना है कि जबतक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, वो अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. उनका कहना है कि मीडिया ने उनके पक्ष को गलत तरीके से पेश किया है. शुरुआत में इन हत्याओं की तफ्तीश उत्तर प्रदेश पुलिस ने की थी लेकिन जिस तरीके से इसकी जांच की गई, उसकी तीखी आलोचना हुई.

घटना के कुछ घंटों के बाद ही कई दर्जन लोग तलवार परिवार के घर के अंदर घुस गए. इनमें पत्रकार और टीवी कैमरामैन भी शामिल थे. इससे महत्वपूर्ण सबूतों को नुकसान पहुँचा. हत्याओं के एक हफ़्ते के बाद ही डॉक्टर राजेश तलवार को गिरफ़्तार कर लिया गया. तब पुलिस ने दावा किया था कि उसने केस को सुलझा लिया है.

23 मई 2008 को एक प्रेसवार्ता में वरिष्ठ पुलिस अफ़सर गुरदर्शन सिंह ने कहा कि आरुषि की हत्या इसलिए की गई क्योंकि  आरुषि को अपने पिता के एक साथी डेंटिस्ट के साथ कथित अंतरंग संबंधों पर आपत्ति थी. उसी प्रेस कांफ़्रेंस में गुरदर्शन सिंह ने कहा कि आरुषि की हत्या इसलिए हुई क्योंकि उसके हेमराज के साथ 'नज़दीकी संबंध' थे.

नैतिकता

क्या आरुषि तलवार हत्याकांड में मिलेगा न्याय?तलवार दंपत्ति का कहना है कि मीडिया में इस मामले को गलत तरीके से पेश किया गया

पुलिस ने तलवार दंपत्ति की नैतिकता पर सवाल उठाए और उनकी उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के रहन-सहन की जनता के सामने धज्जियाँ उड़ा दीं. आरुषि के चरित्र पर सवाल उठाए क्योंकि पुलिस के अनुसार वो लड़कों से बातचीत करती थी और अपन दोस्तों के यहां सोने जाती थी.

तलवार दंपत्ति को ये कहकर लताड़ा गया कि उन्होंने अपनी बेटी को इतनी आज़ादी दी. तलवार दंपत्ति पर पत्नियों की अदला-बदली का आरोप लगा जिससे तलवार दंपत्ति ने इंकार किया.

दिल्ली विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री प्रोफ़ेसर संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "ये एक तरह से नैतिकता का ड्रामा हो गया है. तलवार दंपत्ति को कलंकित किया गया है. उन पर बुरे माता-पिता होने का आरोप लगा है." संजय श्रीवास्तव इसे एक संस्कृति का टकराव बताते हैं जिसमें पुलिस, मीडिया का एक हिस्सा और समाज नैतिकता की रूढ़िवादी विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है और उच्च मध्यवर्गीय कथित ज़्यादती पर सवाल उठा रहा है.

पुलिस के असंवेदनशील बयानो की कई हलकों में घोर आलोचना हुई और फिर मामले को सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई ने तीन लोगों- तलवार दंपत्ति के सहयोगी कृष्णा, उनके दोस्त के यहां काम करने वाले राजकुमार और उनके पड़ोसी के यहाँ काम करने वाले विजय मंडल की जांच की. तीनों की गिरफ़्तारी हुई और उन्हें भी कई हफ़्तों जेल में रहना पड़ा.

इस दौरान तलवार शक़ के दायरे में नहीं थे और एक जांच अधिकारी का तो ये तक कहना था कि तीनों में से कम से एक ने अपराध स्वीकार कर लिया है.

कमियाँ

जांच के मध्य में एक नई सीबीआई टीम को लाया गया और तलवार दंपत्ति दोबारा शक़ के घेरे में आ गए. इस बार अधिकारियों ने कहा कि सिर्फ़ आरुषि के "माता-पिता ही आरुषि की हत्या कर सकते थे."

सभी की जांच झूठ को पकड़ने वाले मशीन पर हुई लेकिन सच सामने नहीं आया. 30 महीने की जांच के बाद दिसंबर 2010 में सीबीआई ने अदालत से कहा कि उसे विश्वास है कि इस हत्या में डॉक्टर तलवार मुख्य संदिग्ध हैं लेकिन बिना किसी ठोस सबूत और मंशा के कारण वो मामले को बंद करना चाहती है.

अदालत ने ऐसी अनुमति नहीं दी और मुकदमा जून 2012 को शुरू हुआ. अभियोजन पक्ष ने अपना मुकदमा इस बात के इर्ग-गिर्द रखा है कि तलवार दंपत्ति ने आरुषि और हेमराज को बिस्तर पर एक साथ पाया. लेकिन बचाव पक्ष का कहना है कि "उच्च वर्ग में यौन संबंध बहुत बड़ी बात नहीं होती है और इसके कारण हत्याएं नहीं की जातीं."

अदालत में सीबीआई ने नूपुर और राजेश पर अपराध की जगह से छेड़छाड़ का आरोप लगाया. हत्या के हथियार के तौर पर उन्होंने गोल्फ़ क्लब को पेश किया है. लेकिन बचाव पक्ष ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया है.

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