कान से लेकर आंख तक

कान, नाक छेदवाना पहले के दौर में सिर्फ गल्र्स के लिए जरूरी था। बॉयज में उन्हीं लड़कों के नाक कान छेदने का रिवाज था जिनको अल्पआयु का बताया जाता था लेकिन दौर बदला और बदल गए कान, नाक छेदवाने की परिभाषा। पहले जहां गली गली हाथ में सूटकेस लेकर कान नाक छेदने वाले घूमा करते थे। वहीं अब मॉल्स व शहर में कई पियरसिंग शॉप्स ने इसकी जगह ले ली है। यही वजह है कि कान नाक छेदने की जगह अब पियरसिंग शब्द का यूज होने लगा है। पहले सिर्फ कान व नाक को छेदा जाता था। अब कान, नाक, आंख, एैबरो, होंठ और नाभी में भी पियरसिंग की जा रही है। क्योंकि पियरसिंग कराने का खर्च एक बार में 50 रुपये से लेकर 500 रुपये ही गिरता है। इसलिए भी यूथ इसे लेकर जबरदस्त क्रेजी हो चला है।

नहीं होता दर्द भी

पहले नाक, कान छेदवाने के लिए बड़ी सूई का यूज होता था। इसमें पियरसिंग कराने वाले को काफी दर्द सहना पड़ता था। लेकिन बदलते वक्त और पियरसिंग की बढ़ती डिमांड के कारण अब ये दर्द भी पियरसिंग कराने के दौरान नहीं सहना पड़ता है। पियरसिंग करने वाले राजू बताते हैं कि इसके पीछे वजह है बॉडी पियरसिंग गन का यूज होना। इस गन का यूज करने से पहले एक खास तरह के स्प्रे का यूज होता है। इससे पियरसिंग किया जाने वाला प्लेस सुन्न हो जाता है। जिसके बाद पियरसिंग कराने के दौरान दर्द भी नहीं होता। साथ ही स्प्रे में एंटी सेप्टिक लिक्विड होने के कारण इनफेक्शन होने का डर भी नहीं रहता।

मुझे पियरसिंग कराने का बहुत शौक है। यही वजह है कि मैंने कान में पियरसिंग कराई है। इससे मेरा लुक भी चेंज हुआ है।

राहुल पाण्डेय, सिगरा

मैंने तो अपने कान में छह टॉप्स पहन रखा है। इससे ये फायदा हुआ है कि मैं जहां जाता हूं वहां सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बन जाता हूं।

कुबेर सिंह, पाण्डेयपुर

पहले थी मान्यता लेकिन अब

कान और नाक छेदवाने को लेकर धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैैं। ज्योतिषाचार्य पवन कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि पहले के वक्त में जो बच्चे अल्पआयु वाले होते थे। उनका कान, नाक छेदा जाता था। इसके पीछे ये भी वजह है कि लड़कों को लड़कियों का लुक दे दिया जाये ताकि काल उनको लड़का नहीं लड़की समझ छोड़ दे। इसके अलावा कान छेदवाने से राहु का असर कम होता है।