रोजगार की तलाश में पहुंचते हैं केदारनाथ

असल में, श्रद्धालुओं को मंदिर तक छोडऩे और लाने के लिए केदारनाथ में घोड़ा, खच्चरों के अलावा दंडी का प्रयोग किया जाता है। घोड़े खच्चरों के संचालन में किसी तरह की बाधा न हो इसके लिए वहां पर बकायदा घोड़ा खच्चर यूनियन भी बनाई गई है। इसमें करीब आठ हजार घोड़ा और खच्चर मालिकों का इस साल रजिस्ट्रेशन था। साथ ही रजिस्ट्रेशन में साढ़े पांच हजार से अधिक संख्या मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे। इसके अलावा दंडी के माध्यम से श्रद्धालुओं को मंदिर तक छोडऩे और लाने का काम भी सैकड़ों मुस्लिम सालों से करते आ रहे हैं. 

बरेली, दिल्ली व अन्य स्थानों के हैं मुस्लिम

मुस्लिम समुदाय के ये लोग मुज्जफरनगर, सहारनपुर, दिल्ली, बरेली के साथ अन्य मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों से यात्रा सीजन शुरू होते ही केदारनाथ पहुंचते हैैं। सीजन समाप्त होने के बाद घर लौट जाते हैं। महज कुछ माह चलने वाली यात्रा के दौरान ही ये लोग अच्छी आमदनी कमा लेते हैैं। इस कारण हजारों लोग पिछले कई सालों से हर बार केदारघाटी जाते रहे हैं। इस बार भी हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग केदारनाथ पहुंचे थे।  

हजारों लोग हैं लापता

आज भी केदारघाटी पहुंचे आधे से अधिक मुस्लिम लापता हैं। ऐसा नहीं है कि इनके परिजन इनकी खोजबीन नहीं कर रहे हैैं, लेकिन इनके साथ भी वही हो रहा है जो अन्य लोगों के साथ हो रहा है। तमाम प्रयासों के बाद भी उन्हें कोई जानकारी नहीं मिल रही है। बिना डीएनए टेस्ट और फोटोग्राफी के ही सामूहिक दाह संस्कार को लेकर प्रदेश सरकार पहले से ही तमाम विरोध झेल रही है। अब मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने दाह संस्कार का पूरजोर विरोध किया है।

सामूहिक दाह संस्कार न करे सरकार

हर धर्म के अपने रीति रिवाज होते हैैं। जैसे हिंदू धर्म में व्यक्ति की मौत होने के बाद दाह संस्कार और श्राद्ध (प्रयोदशा) क्रिया करना अनिवार्य होता है। ठीक उसी प्रकार इस्लाम धर्म में व्यक्ति को मौत के बाद नवाजे, जनाजे, कफन, गुसल के बाद दफन किया जाना जरूरी समझा जाता है। केदरनाथ मंदिर में सरकार बिना शिनाख्त के ही सभी का सामूहिक दाह संस्कार कर रही है। यह बात मुस्लिम समुदाय के लोगों को अखर रही है। 'जमी अतुल उलमाÓ भी इसके खिलाफ है। वे चाहती है कि शिनाख्त के बाद शवों का धर्म के अनुसार वैधिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाए। जो लोग हिंदू हैैं उनका दाह संस्कार किया जाए और जो लोग मुस्लिम हैैं उन्हें रिति रिवाज के साथ कब्र नसीब हो।

केदारनाथ में हजारों लोग घोड़ा खच्चर चलाने और नाई का काम सालों से कर रहे हैैं.  इसके अलावा भी सैकड़ों मुस्लिम ड्राइवर भी वहां पर श्रद्धालुओं को लेकर पहुंचे हैैं। कुछ लोग सकुशल वापस लौट आए, जबकि कुछ लोगों की मौत हो गई है और कुछ लापता है। ऐसे में सरकार बिना शिनाख्त के सभी का सामूहिक दाह संस्कार कर रही है जो बिल्कुल गलत है। यदि सरकार शिनाख्त नहीं कर पा रही है तो जमात के कुछ लोग केदारनाथ जाकर शिनाख्त करने को तैयार हैं। सरकार को शिनाख्त के बाद ही जो जिस धर्म का है उसका उसी के धर्म के अनुरूप अंतिम संस्कार कराना चाहिए।

-मोलाना उल्ताफ हुसैन मजाहिरी, प्रदेश सचिव जमीअतुल उलमा उत्तराखंड