-काशी विद्यापीठ में छात्रों की मनबढ़ई पर विवि प्रशासन का लगाम नहीं

-आए दिन छात्र गुटों में हो रही मारपीट, एक्शन न होने से आरोपी छात्रों का बढ़ा मनोबल

-स्थाई छात्रों के सोहबत में कैंपस में अराजकता फैला रहे बाहरी

 

VARANASI : महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में आलम यह है कि छात्रों की मनबढ़ई पर विवि प्रशासन का कोई लगाम नहीं है। यही कारण है कि क्लास से लेकर हॉस्टल तक में छात्र गुटों के अराजकता के चलते आतंक का माहौल है। यहां आए दिन मारपीट की घटनाएं हो रही हैं लेकिन कार्रवाई के नाम पर किसी भी आरोपी छात्र पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता है। स्थाई छात्रों के सानिध्य में बाहरी छात्रों का जुटान रोजाना कैंपस में होता है, एनडी हॉस्टल में दारू-मुर्गा की पार्टी होती है लेकिन चीफ वार्डेन से लेकर चीफ प्रॉक्टर तक को भनक नहीं लग पाती है। यह जानते हुए भी कि स्थाई छात्र के सहारे ही बाहरी छात्र कैंपस में प्रवेश कर रहे हैं। इसके बाद भी पनाह देने वाले इन छात्रों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। गुरुवार को हुई घटना में अधिकतर बाहरी छात्र ही खुलेआम गुंडागर्दी करते नजर आये। जिला जेल में बंद जेएचवी कांड का मुख्य आरोपी आलोक उपाध्याय भी बिना रूम एलॉटमेंट के नरेंद्र देव हॉस्टल में ठहरता था। कई और आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों व बाहरियों का ठिकाना विद्यापीठ का हॉस्टल बन चुका है।

 

किसी का निष्कासन तक नहीं

इससे पहले भी यहां कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिसमें आरोपी छात्रों का निलंबन तय माना जा रहा था। मगर, विवि प्रशासन ने इन्हें बख्शने का ही काम किया। बीते माह शारीरिक शिक्षा विभाग के एक प्रोफेसर को छात्रों ने पीट दिया। आरोपी को पकड़ा गया लेकिन अन्य छात्रों के दबाव में उसे रिहा कर दिया गया। इसके पूर्व भी एक एग्जाम के दौरान एक प्रोफेसर को फोन पर धमकी देने के मामले में एक छात्र पर प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी लेकिन उस मामले में भी गिरफ्तारी तो दूर, आरोपी छात्र के खिलाफ कोई जांच भी नहीं बैठी। इनके अलावा भी कई ऐसी घटनाएं घटित हुई हैं लेकिन किसी भी आरोपी छात्र का निष्कासन नहीं हुआ। यही वजह है कि मनबढ़ छात्रों का मनोबल बढ़ा हुआ है।

 

अराजकता की खुली छूट

वहीं बीएचयू प्रशासन है कि कैंपस में अपराध करने वाले छात्रों को चिन्हित कर उन पर एक्शन लेता है। जांच कमेटी बनती है और आरोपी छात्रों पर कार्रवाई तक की जाती है। क्लास से सस्पेंड करने के अलावा कैंपस से निष्कासन तक होता है। मगर, विद्यापीठ प्रशासन कैंपस व हॉस्टल में अब तक मारपीट की हुई घटनाओं की जांच के लिए कमेटी तक नहीं बना पाया है। ऐसे में कार्रवाई न हो पान से आरोपी छात्र बच निकलते हैं और डिग्री लेकर कैंपस से अलविदा ले लेते हैं।


पुलिस चौकी बनी शोपीस

विद्यापीठ पुलिस चौकी तो शोपीस ही साबित हो रही है। यहां सिर्फ मोबाइल चोरी, गुमशुदगी व छेड़छाड़ के अलावा अन्य कोई शिकायत ही नहीं पहुंच पाती है। कैंपस में मारपीट की शिकायत कोई दर्ज कराता है तो छात्र एक्टिव होकर आरोपियों को छुड़ा ले जाते हैं।

 

बूढ़े कंधों पर सुरक्षा का जिम्मा

 

विद्यापीठ में सिक्योरिटी की बात करें तो बूढ़े कंधों पर यूनिवर्सिटी की जिम्मेदारी सौंपी गई है। रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके होमगा‌र्ड्स की कैंपस में तैनाती की गई है। करीब 95 होमगार्ड तैनात किए गए हैं, जो सिर्फ गेट खोलने और बंद करने तक ही सीमित रहते हैं। हॉस्टल में तो कोई सिक्योरिटी ही नहीं है। बिना आईडी और बगैर रजिस्टर मेंटेन किए बाहरी इंट्री ले लेते हैं। चीफ वार्डेन के कड़ाई का दावा भी हवा हवाई ही साबित हो रहा है।

 

अनुशासन किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बाहरी छात्रों को कैंपस व हॉस्टल में प्रवेश कराने वाले छात्रों की कुंडली भी तैयार कराई जा रही है। आरोपी छात्रों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाया जाएगा।

प्रो। चतुर्भुजनाथ तिवारी, चीफ प्रॉक्टर,

काशी विद्यापीठ