-परेड कोठी में कैशियर की हत्या के मामले में शक की सुई घूम रही सीएंडएफ के कर्मचारियों के ईर्द-गिर्द

वारदात के वक्त ड्यूटी पर तैनात चौकीदार की भूमिका नजर आ रही संदिग्ध

VARANASI

परेड कोठी में कैशियर अशोक गुप्ता की हत्या के बाद क्क् लाख रुपये लूट के मामले में शक की सुई सीएंडएफ के कुछ कर्मचारियों के ईर्द-गिर्द घूम रही है। सबसे संदिग्ध भूमिका उस चौकीदार की नजर आ रही जो रात में वारदात के वक्त ड्यूटी पर था। पुलिस का कहना है कि जिन्होंने भी घटना को अंजाम दिया है उन्हें ऑफिस के बारे में पूरी जानकारी थी। उन्हें पता थी कि तीन दिन बैंक बंद होने के कारण आलमारी में फ्ख् लाख भ्0 हजार रुपये रखे थे। इनमें से क्क् लाख रुपये उनके हाथ लग गए। लॉकर नहीं टूट पाने की वजह से ख्भ् लाख रुपये बच गए। जाते हुए बदमाश बिल्डिंग में लगे सीसी कैमरे से जुड़ा डीवीआर भी उठा ले गए। पुलिस आसपास के होटलों में लगे सीसी कैमरे के फुटेज की छानबीन कर रही है।

बिना आवाज खुल गए तीन ताले

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की पड़ताल में कई ऐसे सवाल उठ रहे हैं जिनके जवाब सीधे तौर पर चोलापुर निवासी चौकीदार को वारदात में शामिल बता रहे हैं। पुलिस को भी ऐसे सुराग मिले हैं जिनसे लगता है कि मास्टरमाइंड चौकीदार गंगाराम हो सकता है। पुलिस ने कमरे में खून से जमीन पर लिखे विकास के नाम को भी जांच में शामिल किया है। असमंजस है कि विकास नाम के दो लोग काम करते हैं। एक विकाश गोदाम मैनेजर है तो दूसरा सेल्समैन। पुलिस का कहना है कि हो सकता है कि कातिल ने किसी को फंसाने और पुलिस को गुमराह करने के लिए ऐसा किया हो। इसलिए लिखे गए नाम की हैंडराइटिंग की मिलान मृत अशोक गुप्ता की हैंडराइटिंग से की जायेगी। ऑफिस की तीन मंजिला बिल्िडग के मेन गेट पर तीन ताले लगते हैं। एजेंसी मैनेजर राकेश चौबे रात में बाहर से ताला बंद करते थे जबकि अशोक अंदर से ताला बंद करने के बाद सभी चाभियां अपने पास रखता था। जरूरत होने पर पहली मंजिल से चाभी का गुच्छा लटकाता था और नीचे चैनल के बगल में मौजूद गार्ड रूम में रहने वाला चौकीदार खोलता था।

उठ रहे कई सवाल

- चौकीदार की जानकारी के बिना कैसे एक के बाद एक तीनों ताले खुल गए?

- ताला खुला होने की सूचना पर मैनेजर ने चौकीदार को अंदर जाकर चेक करने को कहा तो चौकीदार ने अंदर जाने से क्यों इंकार किया?

- चौकीदार गंगाराम रात में अशोक गुप्ता की धीमी आवाज पर भी सुन लेता था तो फिर हत्यारों के वार के बाद उनकी चीख क्यों नहीं सुनी?

- रोज क्क् बजे खाना खा लेने वाला चौकीदार क्यों अपना टिफिन खत्म नहीं कर सका? खाना टिफिन में ही क्यों पड़ा रहा।

मालिक ने दिया था कमरा

मिर्जापुर के मूल निवासी व महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहने वाले रहे कमल अरोड़ा से अशोक गुप्ता बीते कई वर्षो से जुड़े थे। हत्या की जानकारी पर वो बनारस के लिए निकल गए। फोन पर कमल अरोड़ा के बेटे पवन ने बताया कि टूथपेस्ट व एक वनस्पति घी का सीएंडएफ लेने के बाद दो साल पहले अशोक गुप्ता को कैशियर रखा था। छह माह पूर्व एक सड़क हादसे में अशोक गुप्ता का पैर खराब हो गया था। उनके एक पैर में रॉड पड़ी थी। घर से आने-जाने में दिक्कत होने पर अशोक को परेड कोठी स्थित गोदाम में ही बने कमरे में उनके रहने की व्यवस्था की गई थी। अशोक का बेटा अभिषेक और शिप्रा अभी स्टूडेंट हैं जबकि पत्‍‌नी शशि बच्चों हाउस वाइफ है।