-नवम्बर में होती है पेंशनर के जीवित होने की जांच

बेटा ले आता था बैंक से रुपये

VARANASI

पेंशन के लिए पांच महीने तक मां की लाश घर में रखने की बात जिसने सुनी हतप्रभ रह गया। पड़ोसियों की सूचना पर मामला नहीं खुलता तो देववंशी परिवार अभी छह महीने और अमरावती देवी की लाश के जरिए पेंशन लेता। कोषागार के अधिकारियों ने बताया कि पेंशन नियमों के मुताबिक हर साल नवंबर महीने में पेंशनर के जीवित होने का सबूत देना पड़ता है। इसके लिए उन्हें कार्यालय में उपस्थिति दर्ज करानी होती है। 12 महीने से पहले इसकी जांच संभव नहीं है। सेंट्रल बैंक की लंका शाखा से उनकी पेंशन जाती थी। बैंक मैनेजर ने बताया कि यह विभाग से सीधे खाते में आती थी और बेटा रविप्रकाश मां के साइन चेक से रुपये निकालता था। खाते में अभी 76 हजार रुपये थे।

 

हर दूसरे दिन आता था युवक

पड़ोसियों ने बताया कि हर दूसरे दिन एक युवक आता था। परिवार के लोगों का कहना था कि वो मां की मालिश और दवा का लेप लगाने के लिए वहां आता था। हालांकि पड़ोसियों का दावा है कि वह लेप के नाम पर लाश को सड़ने से बचाने के लिए केमिकल लगाने आता था। पुलिस इसकी भी छानबीन कर रही है।

 

बेटी ने झाड़ा नेतागिरी का रुतबा

 

घर में पांच महीने से लाश होने की सूचना पर पहुंची पुलिस को बेटी विजय लक्ष्मी ने अरदब में लेने की कोशिश की। उसने खुद को लोकतांत्रिक जनवादी पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बताया। हालांकि पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी।

 

बनारस ने कभी नहीं देखा था ऐसा

 

बनारस शहर ने कभी ऐसी कोई घटना देखी न सुनी। मां की लाश को पांच महीने तक रखने की खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई। देववंशी परिवार को जानने वालों का भी कहना था कि परिवार के सभी सदस्य संदिग्ध ही रहते हैं। कालोनी के घरों में इनका आना-जाना भी बहुत कम है। कुछ परिचित मां का हालचाल लेने के लिए घर जाते भी थे तो परिवार उन्हें अमरावती देवी से मिलने नहीं देता था।

 

याद आ गई कोलकाता की घटना

 

कबीर नगर क्षेत्र में कोलकाता जैसी घटना की जानकारी पर लोग कांप उठे। इसी साल चार अप्रैल को कोलकाता में ऐसे एक मामले का खुलासा हुआ था। सुब्रत मजुमदार नामक युवक ने पेंशन के लिए मां की लाश को तीन साल तक डीप फ्रीजर में रखा और उसके अंगूठे के निशान का इस्तेमाल करता रहा। लाश खराब न हो इसलिए वह उसपर केमिकल लगाता था और मां की किडनी, लिवर आदि को निकालकर उसने फ्रीज में रख दिया था।