- जमाखोरों ने मार्केट से गायब कर दी लीवर की दवा, मरीज बेहाल

-एमआरपी से अधिक रेट में बिक रही है एल्बुमिन

-दवा कंपनियों ने इसके डिस्ट्रीब्यूटर सीमित कर दिए हैं

<- जमाखोरों ने मार्केट से गायब कर दी लीवर की दवा, मरीज बेहाल

-एमआरपी से अधिक रेट में बिक रही है एल्बुमिन

-दवा कंपनियों ने इसके डिस्ट्रीब्यूटर सीमित कर दिए हैं

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: अगर यही हालात रहे तो भविष्य में लीवर के मरीजों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। इलाहाबाद ही नहीं देशभर में लाइफ सेविंग ड्रग एल्बुमिन की भारी कमी ने लीवर के पेशेंट्स को परेशानी में डाल दिया है। दवा कंपनियों की सप्लाई में कमी और जमाखोरी के चलते यह दवा धीरे-धीरे मार्केट से गायब होती जा रही है। डॉक्टरों का मानना है कि अगर सरकार ने समय पर इस दवा को बाजार में उतारने के लिए कदम नहीं उठाया तो आने वाले दिनों में लीवर पेशेंट की समस्या बढ़ सकती है। केमिस्टों का मानना है कि जब से इस दवा के रेट को कंट्रोल करने के लिए नैशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने ऑर्डर जारी किया है, तब से दवा कंपनी ने इस दवा को सीमित कर दिया है और इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

एमआरपी से अधिक दाम में बिक रही एल्बुमिन

शहर के अधिकतर केमिस्टों के पास भी यह दवा उपलब्ध नहीं है। दवा कंपनियों ने डिस्ट्रीब्यूटर सीमित कर दिया है। सूत्रों की मानें तो जब से अथॉरटी ने इस दवा की कीमत भ्0 फीसदी तक घटा दी है, तब से मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ने पुल सिस्टम बनाकर बाजार से दवा का शॉर्टेज कर दिया है। यहां तक कि डिस्ट्रीब्यूशन भी सीमित कर दिया है। जानकारी के मुताबिक फ्ख्00 से फ्फ्00 रुपए एमआरपी होने के बावजूद इस दवा को महंगे रेट पर बेचा जा रहा है। दवा नहीं होने से कई छोटे शहरों में इसकी ब्लैक मार्केटिंग शुरू हो गई है। दूसरा जमाखोरों ने दवा का स्टॉक रोक कर इसे महंगे दामों पर ब्लैक में बेचना शुरू कर दिया है।

इस वजह से हो रही क्राइसिस

जानकारी के मुताबिक चार महीने पहले तक रिलायंस कंपनी इस दवा का प्रोडक्शन करती थी। यह दवा यूएसए में बनती है। कुछ समय पहले रिलायंस कंपनी की इस दवा का एक सैम्पल फेल हो गया था। बस तभी से यह दवा आनी बंद हो गई। चार माह पहले तक देश में एक महीने में डेढ़ लाख के आसपास दवा की सप्लाई थी। वहीं दूसरी ओर बैस्टर इंडिया फार्मा कंपनी और इनटेक कंपनी इस दवा की खपत को पूरी नहीं कर पाई। इनमें बैस्टर लगभग ब्0 हजार और इनटेक केवल चार हजार बोतल प्रोडक्शन ही कर पाती है। क्योंकि इस दवा के सॉल्ट और बनाने की लागत काफी ज्यादा है। ब्0 हजार की यह प्रोडक्शन जो कि देश में खपत का आधा भी नहीं है। स्टॉक कम होने के साथ ही जमाखोरों ने भी इसका खूब फायदा उठाया और लोग आज इस दवा की सौ एमएल की बोतल को चार हजार रुपये तक में खरीदने को तैयार हैं। जबकि इसका एमआरपी मात्र ख्ख् सौ रुपये के आसपास है।

लगातार बढ़ रहे हैं लीवर के मरीज

जिस तरह से लोगों की जीवनशैली बदल रही है, उसके चलते लीवर की बीमारी के मरीजों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। डॉक्टर्स बताते हैं कि शरीर में सूजन या पेट में पानी भर जाने की वजह से इस दवा का डोज मरीजों को दिया जाता है। एमएलएन मेडिकल कॉलेज गैस्ट्रो इंट्रोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट में पिछले कुछ सालों में लीवर के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इलाज के लिए इनको एल्बुमिन देने की सलाह दी जाती है।

गंभीर हो गया है ये मामला

यह एक जीवन रक्षक दवा है। डॉक्टर्स के अनुसार यह दवा मरीज को उस समय चढ़ाई जाती है जब मरीज के खून बनना बंद हो जाता है। या फिर बिल्कुल ही खत्म हो जाता है। अक्सर डॉक्टर्स की भाषा में इसे प्लेटलेट्स कम होना भी कहा जाता है। एल्बुमिन आदमी के खून से बनता है। जब किसी में खून खत्म हो जाता है तो पीडि़त को एल्बुमिन की बोतल चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। यह जल्दी ही रिकवरी करता है। एक तरह से यह जीवनदायनी दवा है। अपने देश में यह दवा आमतौर पर जर्मनी से मंगवाई जाती है। लेकिन अभी यह बाजार में उपलब्ध नहीं है। यह गंभीर मामला है। सरकार को इस पर सोचने की जरूरत है। ड्रग कंट्रोलर को दवा कंपनियों के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए। जब मामला लाइव सेविंग ड्रग का हो तो सरकार को तुरंत फैसला करना चाहिए।

क्या है एल्बुमिन

एल्बुमिन इंसान के बॉडी में पाए जाने वाला मुख्य प्रोटीन है जो ब्लड प्लाज्मा में पाया जाता है। लेकिन जब लीवर एल्बुमिन नहीं बना पाता है तो बॉडी को बाहर से एल्बुमिन की जरूरत पड़ती है। इसलिए एल्बुमिन सीरम ब्लड प्रोडक्ट से बनाया जाता है। यह लाइफ सेविंग होता है और भारत में यह नहीं बनता है। इसका कोई ऑप्शन भी नहीं है। यह सिंथेटिक ड्रग नहीं है। भारत में आमतौर पर जर्मनी और यूएसए से यह मंगाया जाता है। टॉनिक लीवर फेल्योर, बॉडी में प्रोटीन की कमी, सर्जरी के दौरान, फैटी लीवर के पेशेंट को इसकी जरूरत होती है। अगर यह दवा नहीं हो तो खासतौर पर लीवर ट्रांसप्लांट नहीं हो सकता।

-इलाहाबाद में कई जगह एल्बुमिन उपलब्ध है लेकिन धीरे-धीरे शार्टेज बढ़ती जा रही है। कंपनियों ने सप्लाई कम कर दी है। पिछले छह महीने से मरीजों को एल्बुमिन की तलाश में भटकना पड़ रहा है। पहले कई कंपनियां बनाती थीं लेकिन अब इसका प्रोडक्शन सीमित हो गया है।

परमजीत सिंह, महासचिव, इलाहाबाद केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन

-लीवर के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। जरूरत पड़ने पर उनको एल्बुमिन देनी पड़ती है। लागातार शार्टेज बनी हुई है। कुछ मरीजों ने बताया कि वह इसकी परचेजिंग लखनऊ से कर रहे हैं।

डॉ। कुमार कीर्ति सिंह, गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट

-अभी हालात इतने खराब नहीं हुए हैं। शहर में एल्बुमिन उपलब्ध है। अगर जल्द ही सरकार ने इस शार्टेज को खत्म नहीं किया तो भविष्य में मरीजों को प्राब्लम हो सकती है। इलाज के लिए इसे मरीज को हर हाल में देना पड़ता है।

डॉ। मनोज माथुर, सचिव, इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन

-एल्बुमिन नेचुरल प्रोडक्ट है। इसके रिसोर्सेज काफी कम हैं। निर्माण कम होने से दिक्कतें पेश आ रही हैं। अगर जमाखोरी और एमआरपी से अधिक रेट में बेचे जाने की जानकारी मिलेगी तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

एसके चौरसिया, ड्रग इंस्पेक्टर