- बनारसी परंपरा की बिखरी अनुपम छटा, संगीत रस वर्षा में खूब भीगे रसिकजन

- बजड़े से लेकर गंगा के घाटों पर लगा संगीत प्रेमियों का मेला, देर रात तक लिया आनंद

VARANASI :

सरस सलीला मां गंगा की कलकल बहती धार पर एक बार फिर बनारस की समृद्ध व अनोखी परंपरा जीवंत हुई। गंगा की लहरों पर इठलाते, बलखाते बजड़े से संगीत की स्वर लहरियां उठीं। जिसने हर किसी को मदहोश कर दिया। मौका था खांटी बनारसी कल्चर की पहचान बन चुके सांस्कृतिक संध्या 'बुढ़वा मंगल' का। संगीत साधकों ने सुर और ताल की कुछ ऐसी महफिल सजाई कि बुढ़वा मंगल की गहराती शाम जवां हो उठी। गंगा की धार पर लहराते बजड़ों पर बैठे रसिकजनों ने बुढ़वा मंगल की जवान होती शाम को बड़ी शिद्दत से महसूस किया और संगीत रसवर्षा में जमकर भीगे। पूरे आयोजन पर बनारसी पन की छाप नजर आयी। गुलाब की पंखुडि़यों और बेहतरीन लाइट की सजावट ने आयोजन को खास बना दिया। इस बार प्रशासन की ओर से बुढ़वा मंगल का आयोजन अस्सी घाट पर किया गया। एक मुख्य तथा क्म् बजड़ों पर महफिल सजी।

शहनाई से हुआ आगाज

कार्यक्रम का आगाज मोहन त्यागी की शहनाई से हुआ। उन्होंने बनारसी संगीत की विशेषता समेटे हुए होली और चैती पेश किया। उनके बाद फेमस क्लासिकल सिंगर सोमा घोष ने मंच संभाला। उन्होंने सबसे पहले होरी 'आज बिरज में होरी मोरे रसिया' सुनाकर कर रसिकजनों को भाव विभोर कर दिया। उनके बाद उन्होंने चैती एही ठइयां मोतिया हेरा गइलें हो रामा सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही बटोरी। उन्होंने गजल मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया सुनाकर श्रोताओं को अपनी साधना से परिचित कराया। उसके बाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए बाद डॉ। रीता देव ने राग देस में 'ठुमरी मोरे सइयां बोलावे' आधी रात पेश किया। उनकी प्रस्तुतियों चैती आधी रात बोले रे कोयलिया हो रामा, दादरा लागी बयरिया मैं सो गई ननदी, चैती चइत मासे बोले रे कोयलिया हो रामा ने समा बांध दिया। इसके पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन कमिश्नर आरएम श्रीवास्तव ने दीप प्रज्जवलित कर किया। इस मौके पर डीएम प्रांजल यादव, एसएसपी जोगेन्द्र कुमार, सीडीओ विशाख जी, संगीत मर्मज्ञ राजेश्वर आचार्य सहित बड़ी संख्या में रसिक उपस्थित थे।