RANCHI : सीडब्ल्यूसी को कोर्ट के आदेशों की भी कोई परवाह नहीं है। मामला बच्चे को उसकी दिव्यांग मां को सौंपने से जुड़ा है। डालसा ने सीडब्ल्यूसी को आदेश दिया था कि वह पहले बच्चे का ट्रीटमेंट कराए और फिर उसे उसकी दिव्यांग मां के हवाले कर दिया जाए। लेकिन, वह बच्चा अपनी मां के बजाय एक एडवोकेट के घर पल-बढ़ रहा है। खास बात है कि बच्चे को गैर कानूनी तरीके से एडवोकेट के हवाले किया गया था। ऐसे में बच्चे को उसकी मां के सौंपने की बजाय एडवोकेट के यहां ही रहने देना कहीं न कहीं सीडब्ल्यूसी की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा है।

क्या है मामला

दिव्यांग महिला अपने बच्चे को पाने की आस में दो सालों से कोर्ट का चक्कर लगा रही थीं। उसे किसी ने सलाह दी थी कि कोर्ट ही उसे उसके बच्चे को सौंपने का आदेश दे सकता है। कोर्ट ने बच्चा सौंपने का तो आदेश दे दिया, लेकिन वास्तविक मां की बजाए एक एडवोकेट के हवाले बच्चे को कर दिया गया। गौरतलब है कि इस बाबत महिला ने कोतवाली थाना स्थित एंटी ह्यूमन ट्रैफिंकिंग सेंटर में प्राथमिकी दर्ज कराई थी़ एंटी ह्यूमन ट्रैफिंकिंग इकाई से केस अरगोड़ा थाने को भेजा गया था़ पुलिस को महिला ने आरोपी का पता भी बताया था, लेकिन पुलिस ने मामले में गंभीरता नहीं बरती, जिस कारण उसे उसका बच्चा नहीं मिल सका।

मदद को डालसा आया सामने

थाना-पुलिस से राहत नहीं मिलने पर महिला ने कोर्ट का दरवाजा खटख्रटाया। दीया सेवा संस्थान की सचिव सीता स्वांसी और बैजनाथ कुमार उसे लेकर सिविल कोर्ट स्थित मध्यस्थता केंद्र पहुंचे थे। यहां पब्लिक लीगल एड के सदस्य व अधिवक्ता चांदनी श्रीवास्तव, मंजूला खलखो, पार्वती सिंह, गीता देवी व सबीता चौधरी महिला को कानूनी मदद दी। इसके बाद ही सीडब्ल्यूसी को आदेश दिया गया कि वह बच्चे को उसकी मां को सौंपने की कवायद करे।

पुलिस एक्टिव होती तो पकड़े जाते आरोपी

महिला ने बताया कि उसके बच्चे के बेचने की आरोपी महिला अरगोड़ा स्टेशन रोड जाने वाले रास्ते व राजू मुंडा कडरू के हज हाउस के समीप रहता है। उसने दीया सेवा संस्थान के सीता स्वांसी व बैजनाथ प्रसाद को उसका घर भी दिखाया था। अगर पुलिस इस मामले में कार्रवाई करती तो दोनों आरोपी पकड़े जाते। लेकिन, उसे अपने बच्चे को पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ गया।