ट्रैक हो जाए, तो बात बन जाए
-बंटवारे के बाद झारखंड में बन गया ट्रैक
-पड़ोसी स्टेट झारखंड में है ट्रैक, पर यहां नहीं
PATNA: साइक्लिंग में कभी बिहार का डंका देश भर में बजता था। लेकिन झारखंड के बंटते ही बिहार का डंका बजना बंद हो गया। बंटवारे के बाद झारखंड ने तो साइक्लिंग का ट्रैक बना लिया पर बिहार में ये अब तक नहीं बना। यहां केप्लेयर्स एनच जैसी सड़कों पर प्रैक्टिस करने को मजबूर हैं। ज्यादातर प्लेयर्स मीडियम फैमिली बैकग्राउंड से आते हैं। गवर्नमेंट की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिलने से भी प्लेयर्स साइक्लिंग से तौबा कर लेते हैं।
पंजाब में सबसे ज्यादा टै्रक, बिहार में एक भी नहीं
झारखंड में टाटा स्टील की साइकिल एकेडमी थी। बंटवारे के बाद बिहार में इसकी हालत बिगड़ी। देश में पंजाब में सबसे ज्यादा ट्रैक है लेकिन बिहार में एक भी साइक्लिंग ट्रैक नहीं है।
यहां है साइक्लिंग ट्रैक
राजस्थान- बीकानेर
कर्नाटक- बीजापुर
दिल्ली
झारखंड- रांची
मध्य प्रदेश- जबलपुर
महाराष्ट्र- वालाबाड़ी
मणिपुर- एनआईएस कैंप
असम- गुवाहाटी
अंडमान निकोबार
केरल- त्रिवेंदरम्
बिहार से 15-20 प्लेयर्स नेशनल लेवल के
बिहार के कई प्लेयर्स नेशनल खेल चुके हैं। इसमें कई गर्ल्स प्लेयर्स भी हैं। इस नई पीढ़ी में कुछ तो ऐसे हैं जो कैटरिंग में काम करते हैं देर रात तक और सुबह सबेरे प्रैक्टिस भी करते हैं। इनमें से कुछ प्लेयर्स के नाम देखिए-
राजश्री भारती- सीतामढ़ी
कोमल कुमारी- सीतामढ़ी
प्रियंका कुमारी- पटना
राजू कुमार- पटना
राजीव रंजन केशरी- पटना
रजनीश कुमार- पटना
केशव पांडेय- मुजफ्फरपुर
आशुतोष कुमार- मुजफ्फरपुर
सतीश कुमार सिंह- दरभंगा
रजनीश मिश्रा- दरभंगा
राहुल कुमार- गोपालगंज
वैभव भारद्वाज- गोपालगंज
चंदन- पटना
शाहब बाबू- पटना
गुलशन कुमार- पटना
संजीव कुमार- मधुबनी
पुरानी पीढ़ी के साइक्लिंग प्लेयर्स
एके लुईस
अर्जुन लाल
राकेश कुमार
गुलाब चद्र गुप्ता
विनिता एक्का
कंचन
नीतू चंद्रा
Highlights
खुद के खर्चे पर साइक्लिंग
ख्0क्क् में साइक्लिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया से एफ्लिएशन मिला साइक्लिंग एसोसिएशन बिहार को। तब से साइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार ने दो नेशनल चैंपियनशिप करवाया। पटना नेशनल और मुजफ्फरपुर नेशनल। सबसे आश्चर्य कि बात ये कि प्लेयर्स खुद के खर्चे पर साइक्लिंग में जाते रहे हैं और खुद के खर्चे पर ठहरना भी पड़ा है।
महंगी है साइक्लिंग
साइक्लिंग के प्लेयर्स बताते हैं कि इसमें डाइट पर ही हर मंथ 8 से क्0 हजार रुपए खर्च होते हैं। एक टायर का तीन हजार रुपए लगता है जो हर म् माह पर बदलना होता है। चेन की कीमत ही ख् हजार से शुरू होती है। साइक्लिंग वाली साइकिल के ज्यादातर पाट पुर्जे अभी भी विदेशों से आती हैं। एक-दो कंपनियां आयी हैं देश में जिन्होंने बनाना शुरू किया है।
साइकिल का इश्योंरेंश नहीं होता
मोटरसाइकिल का तो इंश्योरेंश होता है पर साइकिल का इंश्योरेंस नहीं करती हैं कंपनियां। जबकि रेसिंग साइकिल 80 हजार से शुरू होकर 7-8 लाख तक की आती हैं। बिहार में साइक्लिंग को लेकर ये आरोप लगते रहे हैं कि चार सालों में एक भी कमिश्नरी, डिस्ट्रिक्ट या स्टेट चैंपियनशिप रेस का आयोजन नहीं हुआ। लेकिन साल ख्0क्ख् से ख्0क्फ् तक सैकड़ों रेस को कागज पर दिखाया गया है।
बिहार में कई रेस कराए गए। आरोप लगाने से क्या होगा। कागजों पर रेस हुए तो इतने सारे प्लेयर्स नेशनल कैसे खेला? बिहार गवर्नमेंट को मैंने कई चिट्ठियां लिखीं। लेकिन वेलोड्रेम नहीं बना।
-संतोष त्रिवेदी, जनरल सेक्रेटरी, साइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार
हमारे समय में बिहार साइक्लिंग ने काफी राइज किया। बिहार बंटवारे के बाद गवर्नमेंट की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिला। हमारा एफलिएशन फेयरेशन से था। खुद के खर्चे पर हम खेलने जाते थे। गवर्नमेंट को चाहिए कि साइक्लिंग को इनकरेज करे। इसके प्लेयर्स को गवर्नमेंट सर्विस दे।
-एके लुइस, फेमस प्लेयर
एक बार गवर्नमेंट ने रैली करायी थी दो साल पहले, सुखदा पांडेय उस समय आर्ट कल्चर मिनिस्टर थीं। गजब कि बात तो ये है कि पटना के मास्टर प्लान में आउटडोर और इनडोर गेम के लिए जगह ही नहीं है। पार्क को ज्यादा जगह दी गई है और खेल ग्राउंड्स की संख्या कमती जा रही है।
-मृत्युंजय तिवारी, अध्यक्ष, बिहार प्लेयर्स एसोसिएशन