LUCKNOW: महीने भर तक चले उतार-चढ़ाव के बाद दाल का दाम थम गया है लेकिन फुटकर विक्रेता इसे मानने को तैयार नहीं है और 25 परसेंट तक के मुनाफे पर दाल का कारोबार लखनऊ में हो रहा है। दाल के दाम में तेजी डेढ़-दो महीने पहले आनी शुरू हुई थी। अरहर की दाल के दाम अचानक बढ़ने शुरू हुए और 50 रुपये प्रति किलो के इजाफे के साथ सवा सौ रुपये पार कर गया। कमोबेश यही हाल बाकी दालों का भी रहा। आखिर कैसे चंद दिनों मे ही दालों के दाम आसमान छूने लगे और अब क्या है स्थिति। इसी को पड़ताल करती हुई पेश है आई नेक्स्ट की यह खास रिपोर्ट।

आवक थमने से बढ़ी थी महंगाई

मार्च और अप्रैल माह में हुई बेमौसम बारिश का सीधा असर दालों पर पड़ा। हालांकि माना जा रहा था कि मार्केट पर इस बेमौसम बारिश का असर अक्टूबर-नवंबर तक पड़ेगा, लेकिन अचानक दाल की आवक कम होने से दलहन के दाम अचानक बढ़ने लगे थे। व्यापार मंडल के कार्यवाहक अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि अब आवक भी नार्मल हुई है और डिमांड भी थोड़ी कम हुई है जिसकी वजह से पिछले दस दिनों में दालों के दाम में कोई बदलाव नहीं आया है। डिमांड कम होने की वजह गर्मी की छुट्टियां है। राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि इस सीजन में अधिकतर लोग बाहर निकल जाते हैं, जिसकी सीधा असर दालों की खपत पर पड़ता है।

तीन हजार कुंतल है लखनऊ में दाल की खपत

दलहन के कारोबार में डील करने वाले और लखनऊ के बड़े दाल व्यापारियों में से एक राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि लखनऊ में दाल की अनुमानित खपत तीन हजार कुंतल तक है। इसमें सिर्फ लखनऊ नहीं, बल्कि आसपास के जिले भी आते हैं जहां के लिए यहां से दाल की सप्लाई होती है। इसमें सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, रायबरेली और सुल्तानपुर शामिल है। इसमें सबसे अधिक डिमांड अरहर की दाल की ही होती है। दूसरे नंबर पर मटर की दाल का नंबर आता है। जिसका दाम अरहर की दाल के मुकाबले एक चौथाई के बराबर है।

राजधानी में है 50 मिलें, एक्टिव सिर्फ 18

राजधानी में दाल की मिलों की संख्या 50 से अधिक है। लेकिन एक्टिव मिलों की संख्या मात्र 18 है। ऐसे में यहां से जो प्रोसेसिंग के बाद प्रोडक्शन होता भी है, वह लखनऊ के लिए बहुत कम होता है। बिना बाहर से दालों का आयात किये यहां का काम नहीं चलता। अरहर की दाल के लिए लखनऊ को महाराष्ट्र के नागपुर और एमपी के कटनी पर निर्भर रहना पड़ता है। लखनऊ में जो मिलें हैं, वह सब मिलाकर भी 500 कुंतल दालों का प्रोडक्शन नहीं कर पाती। अरहर की दाल वैसे भी यहां की मिलों से नहीं मिलतीं। यहां की मिलों में चने और मटर की प्रोसेसिंग अधिक होती है।

रसोई तक पहुंचने में दो गुने तक हो जाते हैं दाम

लखनऊ में दलहन की खेती करने वाले किसान वैसे तो ना के बराबर हैं। लेकिन जो हैं उन्हें मौजूदा बाजार के मुकाबले कहीं कम दाम मिल पाता है। किसान सुरजीत की मानें तो दलहन की खेती सबसे महंगी खेती होती है। इसके बाद भी अपेक्षित दाम मार्केट से नहीं मिल पाता। इसके पीछे बिचौलियों से लेकर सरकार तक का हाथ होता है। सुरजीत का कहना है कि कच्ची दाल के नाम पर मार्केट के थोक भाव के मुकाबले 60 परसेंट तक का रेट उन्हें मिलता है। लेकिन फुटकर दुकानों पर पहुंचते पहुंचते वही दाल डेढ़ से दो गुने तक पहुंच जाती है।

नहीं तय है कोई प्राइज कंट्रोल

कारोबारी सीताराम का कहना है कि मिनिमम प्राइज तो तय है लेकिन मैक्सिमम प्राइज तय नहीं होता। इसका फायदा फुटकर विक्रेता उठाते हैं और मनमानी दामों पर दालों को बेचते हैं। कई दुकानदार इसे 20 से 25 परसेंट तक रेट हाई कर बेचते हैं। हालांकि दाल की गिनी चुनी मार्केट में इसे 8 से 10 परसेंट के मुनाफे पर ही बेच दिया जाता है।

अरहर की दाल सबसे महंगी

पिछले तीन महीनों में सबसे अधिक भाव अरहर की दाल के बढ़े हैं। तीन महीने पहले अरहर की दाल का भाव जहां 70 से 75 रुपये के बीच था वहीं अरहर का भाव अब 125 से 140 रुपये के बीच पहुंच गया है। हालांकि थोक दुकानदारों के यहां सबसे अच्छी अरहर की दाल का रेट 103 रुपये से 106 रुपये तक ही है।

ओलावृष्टि का असर पड़ रहा मार्केट पर

जानकारों का मानना है कि महंगाई का सबसे बड़ा कारण बेमौसम हुई बारिश और ओलावृष्टि है। इससे फसल काफी बरबाद हुई है। अरहर की सबसे अधिक पैदावार महाराष्ट्र और एमपी में होती है। इस बार बारिश से फर्क यहां भी पड़ा है। ओलावृष्टि से फसलें 40 से 50 परसेंट तक बर्बाद हुई हैं।

इन देशों से होता है दाल का आयात

दाल की डिमांड अधिक और पैदावार कम होने की वजह से दूसरे देशों से भी दाल का निर्यात किया जाता है। इसमें अरहर की दाल रंगून से मंगाई जाती है जबकि मटर का सबसे बड़ा निर्यातक देश कनाडा है। चना ऑस्ट्रेलिया से आता है और मूंग की दाल और राजमा चाइना से खरीदा जाता है जबकि उड़द की दाल की सप्लाई रंगून और थाईलैंड से होती है।

जमाखोर भी हैं महंगाई की वजह

एक व्यापारी की मानें तो महंगाई की एक और वजह जमाखोरी भी है। कारोबार के बड़े फिशर ने मार्केट की तेजी को भांपते हुए माल को स्टोर करना शुरू कर दिया था। बड़े फिशर के दो महीने के होल्ड में ही करोड़ों रुपये का वारा न्यारा हो जाता है। लेकिन, असर सीधा आम पब्लिक पर पड़ता है।

दालों के दामों में पिछले दस दिनों से स्थिरता बनी हुई। इसकी दो वजहें हैं एक तो गर्मी की छुट्टियों की वजह से काफी लोग बाहर हैं जिससे दाल की डिमांड कम हुई है और दूसरा आम, खरबूजा और तरबूज के मार्केट में आने के बाद भी दालों की डिमांड कम है। जहां तक दालों की खपत की बात है तो राजधानी में दाल की अनुमानित खपत दो हजार कुंतल से लेकर तीन हजार कुंतल तक है।

राजेंद्र अग्रवाल

कार्यवाहक अध्यक्ष,

लखनऊ व्यापार मंडल

टेबिल

दाल फुटकर रेट प्रति किलो थोक रेट प्रति किलो

अरहर स्टैंडर्ड 125-135 103-106

अरहर स्पेशल 115-122 96-99

चना 55-70 46-50

मटर 35-40 29-30

मसूर 88-95 75-88

उड़द दाल हरी 115-120 82-108

उड़द दाल काली 90-115 75-105

मूंग 105-115 85-90

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शहर में मिलों की संख्या - 50

एक्टिव मिलों की संख्या - 18

विभिन्न दालों का औसतन प्रोडक्शन- 500 क्विटंल

राजधानी में डेली दाल की खपत- 2000 से 3000 क्विटंल

दुकानदारों के पास स्टॉक - 10 से 15 दिन का