रोडवेज है life line

रोडवेज की बसें पूर्वांचल की लाइफ लाइन हैं। बनारस रीजन से 450 बसों का संचालन विभिन्न रूट पर किया जाता है। इनमें इलाहाबाद, सोनभद्र, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर समेत कई महत्वपूर्ण रूट शामिल हैं। इन रूट्स पर काफी संख्या में पैसेंजर टै्रवल करते हैं। आम दिनों में इनकी संख्या हर रोज करीब पांच हजार के आसपास होती है जबकि विशेष मौकों पर यह दस हजार तक हो जाती है। इन रूट्स पर प्राइवेट गाडिय़ों की संख्या भी अच्छी खासी है लेकिन रोडवेज का सफर सस्ता होने की वजह से लोग इसे तवज्जो देते हैं। बनारस बिजनेस का बड़ा सेंटर है। पूर्वांचल के कई जिलों से इसके बिजनेस रिलेशन हैं। माल और व्यापारियों का आना-जाना भी इन बसों से होता है। वहीं एजुकेशन हब होने से स्टूडेंट भी बड़ी संख्या में रोडवेज बस की सवारी करते हैं।

खटारा बसों की लम्बी कतार

रोडवेज की बसें रख-रखाव के अभाव में खटारा होती जा रही हैं। इन दिनों कैंट स्थित वर्कशाप में तमाम गाडिय़ां मरम्मत के इंतजार में खड़ी रहती हैं। रोड पर दौडऩे वाली बसों की हालत का पता उसकी बॉडी देखकर ही लगता है। अधिकांश बसों की बॉडी तो डैमेज हो गयी उसके इंजन भी अच्छी हालत में नहीं है। लम्बी दूरी के सफर के दौरान इनमें खराबी आ जा रही है। मजबूरन पैसेंजर्स को बीच रास्ते में उतारना पड़ता है। उनके टिकट के रुपये तो लौटा दिये जाते हैं लेकिन दूसरी सवारी का इंतजाम पैसेंजर को खुद करना पड़ता है। ऐसे में पैसेंजर का नुकसान तो होता ही है रोडवेज को भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। एक अरसे से कैंट रोडवेज को नई बसें नहीं मिली हैं। ऐसे में पुरानी और खटारा बसों को रोड पर दौड़ाना मजबूरी है। यही नहीं जो कुछ अच्छी बसें थी वह भी दूसरे रीजन में चली गयीं। इसके पीछे भी कारण रख-रखाव का अभाव ही बताया जाता है.