डेयरियों से निकलने वाले गोबर से सीवर हुए चोक

शहर में कई स्थानों पर हो गया जलभराव

Meerut। शहरवासियों के लिए डेयरियां नासूर बन चुकी है। हालात यह कि ओडियन नाला जाम हो गया है। यही नहीं सीवर तक चेक हो गए हैं, जिसका नतीजा यह हुआ है शहर में कई स्थानों जलभराव की समस्या हो गई है। बावजूद इसके नगर निगम इसका समाधान नहीं कर पा रहा है। हाईकोर्ट डेयरियों को बाहर ले जाने के लिए अनेक बार आदेश कर चुका है।

सिर्फ 763 डेयरियां!

नगर निगम में कागजों में शहर में 763 डेयरियां हैं। लेकिन हकीकत की बात करें तो छोटी बड़ी मिलाकर शहर में करीब दो हजार डेयरियां होंगी। जिनसे प्रतिदिन हजारों टन गोबर नालों में बेहद जाता है।

फाइलों में सिमटे नोटिस

नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग ने शहर की 150 डेयरियों को नाली में गोबर बहाने पर 20-20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। इसके बाद पिछले महीने निगम ने नोटिस जारी कर चेतावनी दी थी। यदि नाले में गोबर बहाया तो बीस हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भरना पड़ेगा। लेकिन यह सभी आदेश केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गए।

हाईकोर्ट भी दे चुका है आदेश

डेयरियों को बाहर ले जाने के लिए अनेक बाद हाईकोर्ट भी आदेश दे चुका है। शासन भी जमीन चिह्नित कर कैटल कॉलोनी बनाने के आदेश चुका है, लेकिन निगम डेयरियों को बाहर ही नहीं ले जा रहा है। हालांकि निगम ने इतना जरूर किया है कि परतापुर स्थित काशी गांव में जमीन चिंहित कर प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। निगम की माने तो शासन से अभी तक आदेश नहीं आया है।

कब-कब हुआ आदेश

2012 में मकबरा घोसियान की 24 डेयरियों को हटाने का हाईकोर्ट ने आदेश दिया। डेयरी संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की लेकिन कोर्ट से राहत नहीं मिली।

2013 में आरटीआइ कार्यकर्ता लोकेश खुराना की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने शासनादेश 1998 का पालन करने का आदेश दिया।

2014 में कैंट क्षेत्र के संबंध में अरविंद यादव ने जनहित याचिका दाखिल की, कोर्ट ने आदेश दिया तथा दोनों जनहित याचिका को संयुक्त कर दिया।

2014 में आरटीआइ कार्यकर्ता लोकेश खुराना की दूसरी जनहित याचिका पर कमिश्नर को कोर्ट ने आदेश दिया।

2015 अगस्त में एसके अग्रवाल की जनहित याचिका पर कोर्ट ने फिर से शासनादेश का पालन करने का आदेश दिया। निगम प्रशासन ने 90 दिन तक कुछ नहीं किया।

9 मई 2016 को हाजी असलम ने जनहित याचिका के माध्यम से एमडीए के प्रस्तावित इको पार्क की जमीन पर कैटिल कालोनी बनाने की मांग की। जिसमें हाईकोर्ट ने 8 जुलाई तक निगम से रिपोर्ट मांगी थी। इसमें भी निगम ने कुछ नहीं किया।

डेयरियों को तो बाहर ही ले जाना चाहिए। डेयरियों के कारण काफी गंदगी होती है। सारे नाले व नालियां गोबर से ही भरी रहती हैं। प्रशासन इनके खिलाफ कुछ करता ही नहीं है।

शैली

डेयरियों का सारा गोबर नालियों में बहाया जाता है। शहर में अधिकांश नाले के किनारे गोबर ही पड़ रहता है। जोकि बारिश के पानी के साथ नालों में बह जाता है। इसीलिए नाले हमेशा भरे रहते हैं। बारिश के दिनों में वह सड़कों पर आ जाता है।

रिया

प्रशासन को डेयरी एक स्थान पर करनी चाहिए। कम से कम गंदगी तो एक स्थान पर ही होगी। सफाई की ओर किसी का ध्यान नहीं है। डेयरी वाले सुबह शाम सारा गोबर नालियों में बहा देते हैं।

दिनेश कुमार

डेयरियों को बाहर ले जाने के लिए अनेक बाद आदेश आ चुके हैं। लेकिन न तो प्रशासन इस ओर ध्यान देता है और न ही निगम के अधिकारी कुछ करते हैं। यदि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में शहर बारिश पड़ते ही तालाब बन जाए करेगा।

राजीव वर्मा

डेयरियों को बाहर ले जाने के लिए निगम ने काशी गांव की जमीन चिंहित कर शासन को भेज दी है। शासन की मंजूरी मिल जाएगी तो बाहर भेजने का काम किया जाएगा। फिलहाल सभी को नोटिस जारी कर चेतावनी दी गई है। जल्द ही इन पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

डॉ। कुंवर सेन, नगर स्वास्थ्य अधिकारी नगर निगम