कानपुर। तिब्बती धर्मगुरु 14वें दलाई लामा 'लहामो धोंडुप' आज ही के दिन यानी कि 17 मार्च को चीन से भारत आये थे। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा दलाई लामा का जन्म 6 जुलाई, 1935 को तिब्बत में हुआ था। बौद्ध धर्म की वकालत और तिब्बती लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले 14वें दलाई लामा अपने काम को लेकर विश्व में बाकी दलाई लामा की तुलना में काफी मशहूर हुए लेकिन इसके बावजूद उन्होंने खुद को कभी भी बड़ा साबित नहीं किया, वह अपने आप को हमेशा एक साधारण व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करते हैं। बता दें कि 17 मार्च, 1959 को दलाई लामा चीन छोड़कर भारत चले आये थे। आखिरकार ऐसा क्या हुआ, जिससे उन्हें चीन छोड़कर भारत आना पड़ा, इसकी कहानी भी दिलचस्प है।

दलाई लामा चीन से भागकर आज ही के दिन आए थे भारतचीन ने कर दिया हमला

1950 में चीन और तिब्बत के बीच तनाव शुरू हो गया था, मौका देखकर चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया था। इसके बाद चीन ने वहां के प्रशासन को अपने कब्जे में ले लिया। दलाई लामा उस वक्त सिर्फ 15 साल के थे इसलिए वह कोई भी निर्णय नहीं ले पाते थे। तब तिब्बत की सेना में सिर्फ 8,000 सैनिक थे और यह आकड़ा चीन की सेना के आगे कहीं नहीं टिकता था। तिब्बत पर अपना कब्जा जमाने के बाद चीन की सेना वहां की जनता पर अत्याचार करने लगी, जिसके बाद वहां के स्थानीय लोगों ने विद्रोह शुरू कर दिया। फिर, दलाई लामा ने चीन सरकार से बात करने के लिए एक टीम भेजी लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

बंदी बनाना चाहती थी चीन की सरकार

1959 तक तिब्बत और वहां के लोगों की स्थिति बहुत ही खराब हो गई थी। यहां तक कि अब दलाई लामा के जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा था। दरअसल, चीन की सरकार दलाई लामा को बंदी बनाकर तिब्बत पर पूरी तरह से कब्जा करना चाहती थी। चीन की इस मंशा को समझकर दलाई लामा के कुछ शुभ चिंतको ने उन्हें तिब्बत छोड़ने का सुझाव दिया। लोगों द्वारा भारी दबाव के बाद उन्हें तिब्बत छोड़ना पड़ा। 17 मार्च, 1959 की रात वह अपने आधिकारिक आवास से निकल गए और 31 मार्च को वह अपने समर्थकों के साथ पैदल चलकर भारत की सीमा घुस गये, जहां भारत सरकार ने उन्हें शरण दी। जब दलाई लामा भारत आये तब उनकी उम्र 24 साल थी, अब वह 83 साल के हैं। इसका मतलब है कि दलाई लामा अपना 59 साल भारत में बीता चुके हैं। 1989 में उन्हें नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें पूरी दुनिया में शांति के प्रचार-प्रसार और खुशियां बांटने के लिए दिया गया था।

दलाई लामा चीन से भागकर आज ही के दिन आए थे भारत

Mahatma Gandhi peace prize से सम्मानित होंगे दलाई लामा

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